माफिया अतीक अहमद के भाई अशरफ का मदरसा कांड...
प्रयागराज। गुजरात की साबरमती जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे माफिया अतीक अहमद के बारे में भला कौन नहीं जानता। आतंक का पर्याय बन चुके अतीक अहमद समेत उनके पूरे परिवार व अन्य करीबियों पर बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या का आरोप लगा है।इसी बीच अतीक के कारनामों और गुनाहों की जांच कर चुके IO रिटायर्ड इंस्पेक्टर नारायण सिंह परिहार अतीक की कुछ पोल खोली है।
अतीक के भाई अशरफ का मदरसा कांड...
नारायण सिंह ने बताया कि अतीक अहमद पावरफुल था। प्रयागराज में उसके खिलाफ कोई बालने को तैयार नहीं था और उसके साथ पूरा काफिला चलता था।नारायण ने बताया कि मदरसा कांड साल 2007 में हुआ था। इस मामले में अतीक का भाई अशरफ ने मदरसे से तीन लड़कियों को उठाया और फिर उनके साथ घिनौनी हरकत की थी। यह मुकदमा कोर्ट में गया, गवाही भी हुई, लेकिन बाद में गवाह पलट गए। क्योंकि अतीक और उसके गुर्गों ने लड़कियों के माता-पिता और रिश्तेदारों को परेशान किया था, जिसके बाद में गवाह पलट गए और केस नहीं बन पाया। नारायण ने बताया कि मैं जब जांच कर रहा था तो उस दौरान मुझे धमकियां मिली थी। कुछ लोग हमदर्दी में आकर भी कहते थे कि सांसद जी से मत उलझो,लेकिन मैं अपना काम लगातार करता रहा।
जांच अधिकारी ने खोला कच्चा चिट्ठा...
नारायण सिंह ने बताया कि राजू पाल हत्याकांड में कुल 4 जांच अधिकारी थे। पहले जांच अधिकारी ने राजू पाल हत्याकांड में जब जांच शुरू की और क्राइम स्पॉट से जो खोखे वगैरह बरामद किए तब दबाव बनवाकर सांसद अतीक अहमद ने उन खोखे को अपने पास ले लिया। साथ ही दूसरे खोखे के साथ रिप्लेस भी करवा दिया। बाद में जांच अधिकारी ने अपने आप को इस केस से अलग कर लिया। दूसरे अधिकारी ने भी मामले में जांच शुरू की,लेकिन अब्दुल कवी को लेकर कुछ ठोस सबूत इकट्ठा नहीं कर पाए। तीसरे जांच अधिकारी पर अतीक अहमद का दबाव इस तरीके से था कि उन्होंने केस डायरी में लिख दिया कि अब्दुल है ही नहीं।
जांच अधिकारी ने कहा- मेरी जांच को सीबीआई ने बढ़ाया आगे...
नारायण सिंह ने बताया चौथा जांच अधिकारी मैं था। मैंने अपने गुप्त स्त्रोतों को काम पर लगाया और जानकारी हासिल की तो पता चला कि अब्दुल है और वह तीन-चार महीने पर अपने गांव में आता है। वह इस दौरान अपनी बीवी और बच्चों को खर्चे के लिए पैसे वगैरह देकर चला जाता है। इसके बाद मैं गांव के प्रधान से मिला और वोटर रजिस्टर और दूसरे सबूत इकट्ठा करके अब्दुल कवि पर केस दर्ज किया। मेरी ही जांच को सीबीआई ने आगे बढ़ाया। आज मुझे खुशी है कि अब्दुल कवि ने सरेंडर कर दिया है।
गवाह को मरवा देता है,अतीक गैंग...
नारायण सिंह ने बताया कि साल 2011 में वे खुद प्रयागराज से ट्रांसफर लेकर कानपुर आ गए थे, क्योंकि समाजवादी पार्टी की सरकार आने वाली थी और उन्हें भी डर लगने लगा था। नारायण ने कहा कि मैं जब कानपुर आया और मुझे यहां पर थाना के चार्ज मिला। अतीक ने अपने प्रभाव से मुझे थाने से भी हटवा दिया और दफ्तर में मेरी नौकरी लग गई। उस समय अतीक का प्रभाव बहुत ज्यादा था। नारायण ने बताया कि अतीक के घर की औरतें भी अपराध में संलिप्त हैं। अपराध के दौरान मौके पर होना और खुद को दूसरी जगह पर दिखाना। ये सब पुरानी चाल है। 10-12 आरोपियों के अलग- अलग वकील होते हैं। गैंग के लोगों द्वारा गवाहों को परेशान किया जाता है। प्रलोभन दिया जाता है। जब वे नहीं मानते तो वे मरवा भी देते हैं।
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें