दामिनी को अगवा कर जबरन धर्मांतरण कराना,उस परिवार को भारी पड़ा, जिसने दामिनी के साथ जोर जबरदस्ती कर उसका धर्म परिवर्तन कराया...
उस घर से जोर-जोर से महिलाओं के रोने की आवाजें आ रही थी। कुल जमा 8 मर्दों की लाशें जमीन पर जो पड़ी थी। सभी के मुंह से झाग निकल रहा था। लेकिन ऐसा क्यों ? अभी 4 दिन पहले ही तो एक हिंदू लड़की को अगवा कर धर्मांतरण करके उसका निकाह घर के एक बांके जवान से हुआ था और अब वह भी इन्हीं लाशों की भीड़ में शामिल था और उस हिंदू लड़की का कोई पता ना था। शायद वह बहुत दूर जा चुकी थी। उसका नाम दामिनी था। कराची के एक मोहल्ले में अपने भाई व माता-पिता के साथ घुट-घुट कर जी रही थी। वह और उसका परिवार मध्यम श्रेणी का जीवन गुजर-बसर कर रहे थे।
दामिनी से रेशमा और रेशमा से दामिनी का सफर... |
दामिनी पढ़ने में बहुत अच्छी थी और वह डॉक्टर बनने का सपना देखा करती थी। उसके पिता रेहड़ी लगाकर परिवार का भरण पोषण करते थे। वह तारीख थी 15 मई 2020 की जब उसका मेडिकल एंट्रेंस का परिणाम आने वाला था। घर में सभी बहुत उत्साहित थे। दामिनी से सभी को उम्मीदें जो थीं। परंतु कुदरत को शायद कुछ और ही मंजूर था। मुसलमानों के मोहल्ले में दांतो के बीच जीभ जैसे वह और उसका परिवार हमेशा डर के साए में रहा करते थे और तारीख 15 मई का वह मनहूस दिन। रिजल्ट आने से पहले ही मोहल्ले के वसीम, अहमद, तौसीफ और उसके वालिद उस्मान वगैरह 5-6 लोग दामिनी के घर में जबरिया घुसकर उसे अगवा कर ले जाते हैं।
दामिनी के घर में कोहराम मचा है। सभी सीख रहे हैं, चिल्ला रहे हैं। बचाओ, मेरी बेटी को उन दरिंदों से बचाओ। मां चीत्कार कर रही थी, परंतु इस्लामिक देश पाकिस्तान में उन बेचारों की आवाज सुनकर भी अनसुनी करते हुए लोग मजमे में से छंटने लगे। कोई भी मदद को आगे नहीं आया और दामिनी अगवा हो गई। दामिनी की आंखों से पट्टी हटाई जा रही थी। अब कुछ-कुछ धुंधला दिखाई पड़ रहा था। वह डर के मारे थर-थर कांप रही थी। वैसे तो वह बहुत साहसी थी, परंतु वह संख्या में भी अधिक थे और वहां का प्रशासन भी उन दरिंदों के साथ था। दामिनी ने मन ही मन में कुछ सोचते हुए हालातों से समझौता करने का निश्चय किया। अब उसे एक सब कुछ साफ साफ नजर आ रहा था। वहां पहले से उपस्थित मौलवी ने दामिनी से कलमा पढ़ने को कहा और स्वयं ऊंची आवाज में बोलने लगा।
अब दामिनी को वही सारे शब्द दोहराने थे, जिससे उन दरिंदों की निगाह में वह भी मुस्लिम हो जाएगी। उन दरिंदों के आगे उसने विरोध करना उचित समझा और अब वह एक मुस्लिम लड़की थी। मौलवी ने उसका नामकरण भी कर दिया था। रेशमा, उसे नया नाम मिला था। उसकी अपनी पहचान कुचल दी गयी थी। अगले दिन उसके नये घर में दावतों का दौर चल रहा था। रेशमा का निकाह उस्मान के बड़े पुत्र वसीम से कर दिया गया था। तमाम मेहमानों का आना जाना लगा था, लेकिन दामिनी के दिल में प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी।जिसे उसने किसी प्रकार से काबू में कर रखा था। धीरे-धीरे सभी मेहमान चले गए और घर में सिर्फ घर के ही 8 मर्द और उसकी तथाकथित सास रह गई थी। अब उस घर में कुल 10 प्राणी थे। धीरे-धीरे रात गहरा रही थी। रेशमा को एक कमरे में भेज दिया गया, जहां वसीम उसका इंतजार कर रहा था। दिनभर की थकावट से उसका शरीर टूट रहा था।
धीरे-धीरे 3 दिन बीत गए। रेशमा से उसकी सास भी काम लेने लगी थी। रेशमा के हाथ में जादू था। उसके बनाए खाने को कोई भी बिना तारीफ किये बिना नहीं रह सकता था। चौथे दिन रेशमा ने अपनी सास से कुछ सामान लाने के लिए बाहर जाने की इजाजत मांगी। सास बोली क्या मंगाना है, बताओ ? मैं ही मंगवा देती हूं। परंतु निजी सामान का बहाना कर रेशमा बाजार से कुछ जरूरी सामान लेकर थोड़ी देर में ही घर आ जाती है। रात के लगभग 9:00 बज चुके थे। घर के सभी मर्द रोज की तरह एक साथ खाने पर बैठे रेशमा के हाथ के बने खाने की तारीफ कर रहे थे। उस दिन भी रेशमा ने लज्जतदार पकवान बनाए थे और सभी ने छककर पकवानों का लुत्फ उड़ाया। रेशमा ने अपनी सास से भी खाना खाने को कहा तो उन्होंने कहा बहू आज इच्छा नहीं हो रही है, तू रख दे कल खा लूंगी। यह कहकर वह भी अपने कमरे में चली गई।
रेशमा को मौके की तलाश थी और उसे मौका मिलते ही वह घर से निकल पड़ी क्योंकि वह अपना काम कर चुकी थी, उसे अपनी मंजिल की तलाश थी। रेशमा घर से सबकुछ समेट कर चुपके से निकल ली ! उसकी सुबह न जाने कहां हुई, उसे पता भी न था ? सारी रात वह चलती जा रही थी। आज उसके दिल की ज्वाला शांत हुई थी। क्योंकि वह अपने साथ हुए जबरन धर्म परिवर्तन का बदला अपने मन मुताविक ले लिया था। इधर रेशमा की सास दहाड़ें मार-मार कर रो रही थी। सारा मोहल्ला इकट्ठा था। घर में आठ-आठ लाशें। उफ्फ। मोहल्ले वालों का कलेजा मुंह को आ रहा था। एकत्र हुए लोग जानना चाहते थे कि आखिर हुआ क्या ? रेशमा की सास सिसकियाँ भरते हुए सिर्फ इतना कह पा रही थी कि वही कलमुही दामिनी ने सबको खाने में जहर खिलाकर हरदम के लिए सुला दिया। इधर रेशमा का कुछ पता न था। रेशमा ने अपना बदला रात के खाने में जहर मिलाकर पूरा कर लिया था। अब वह अपनी पुरानी पहचान दामिनी के साथ कहीं दूर, सुकून से चली जा रही थी।
नोट-कहानी लेखक के मन की कल्पना से है,इस कहानी के पात्रों का नाम महज काल्पनिक है जिसका किसी से कोई लेनदेन नहीं है। यदि किसी का नाम कहानी के किसी पात्र से मिले तो वो महज संयोग माना जाए...
नोट-कहानी लेखक के मन की कल्पना से है,इस कहानी के पात्रों का नाम महज काल्पनिक है जिसका किसी से कोई लेनदेन नहीं है। यदि किसी का नाम कहानी के किसी पात्र से मिले तो वो महज संयोग माना जाए...
प्रस्तुति :- शरद केसरवानी
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