UPमें राजनीतिक अपराधीकरण का बढ़ावा सपा मुखिया मुलायम के दौर से शुरू हुआ...
सरकारी संरक्षण/वरदहस्त प्राप्त किसी अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए तीन थानों के पुलिस कर्मियों की संयुक्त टीम रात में एक बजे उस अपराधी के घर छापा मारने नहीं जाती और उसे गिरफ्तार करने के प्रयास में 8 पुलिस कर्मियों की जान नहीं जाती। इसके बजाय हत्यारे अपराधियों को सरकार जब संरक्षण देती है तो एक पुलिस उपाधीक्षक की हत्या करने वाली भीड़ में शामिल रहे बलवाई तथा जमीन कब्जे के लिए हुई गैंगवार में मारे गए दबंग को सरकारी खजाने से 40 लाख रुपये अखिलेश सरकार मुआवजा देती है।
देश के संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाकर अपराधियों आतंकियों के खिलाफ दर्ज केस वापस लेती है। उन अपराधियों आतंकियों की बिना शर्त रिहाई का आदेश देती है। अब जानिए क्या और कैसा होता है वो सरकारी संरक्षण जो किसी अपराधी को किसी सरकार द्वारा दिया जाता है। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने 24 अप्रैल, 2013 को फैसला सुनाते हुए जेल में बंद 18 आतंकवादियों के खिलाफ दर्ज सभी केस वापस लेकर उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दे डाला था। उन 18 आतंकियों की सूची में वो आतंकी भी शामिल थे। जिन्हें सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर हमले के मामले 3 नवंबर 2019 को न्यायालय ने फांसी की सजा सुनाई है, लेकिन इन आतंकियों के भी मुकदमे वापस लेने का आदेश अखिलेश यादव ने 2013 में ही दे दिया था। भला हो इलाहाबाद हाइकोर्ट का जिसने समाजवादी पार्टी की सरकार के इस तुगलकी फैसले को तत्काल रद्द कर के आतंकवादियों की रिहाई पर रोक लगा दी थी।
इसी प्रकार 20 दिसम्बर, 2019 को हरकत उल जिहाद इस्लामी (हूजी) के आतंकवादी तारिक कासमी को फैज़ाबाद कचहरी बम विस्फोट के लिए उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई थी, यह उस आतंकी को सुनाई गई उम्रकैद की तीसरी सजा थी। इससे पहले 23 अगस्त, 2018 को लखनऊ की एक विशेष अदालत ने तथा 24 अप्रैल, 2015 को बाराबंकी की एक अदालत ने आतंकवादी तारिक कासमी को उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। तारिक कासमी उम्रकैद की यह सभी सजाएं आजकल जेल में काट रहा है। वाराणसी, लखनऊ और फैजाबाद की कोर्ट में 23 नवंबर 2007 में जो सीरियल बम धमाके हुए थे, उनका मुख्य अभियुक्त मास्टर माइंड तारिक कासमी ही था। इन बम धमाकों में 18 नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया गया था। लेकिन अदालतों के उपरोक्त फैसलों से कई साल पहले ही उत्तरप्रदेश की तत्कालीन समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने 24 अप्रैल, 2013 को फैसला सुनाते हुए जेल में बंद तारिक कासमी समेत 18 आतंकवादियों के खिलाफ दर्ज सभी केस वापस लेकर उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दे डाला था।
भला हो इलाहाबाद हाइकोर्ट का जिसने समाजवादी पार्टी की सरकार के इस तुगलकी फैसले को तत्काल रद्द कर के आतंकवादियों की रिहाई पर रोक लगा दी थी। अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट हस्तक्षेप नहीं करता तो उम्र कैद की तीन सजाएं भोग रहा आतंकवादी तारिक कासमी तथा सीआरपीएफ कैंप पर हमले के अपराध में फांसी पाए आतंकी आज बेखौफ खुला घूम रहे होते। ना जाने कितने निर्दोषों को मौत के घाट उतार चुके होते। यह उदाहरण है, उस शर्मनाक सच्चाई का कि जब सरकार किसी अपराधी आतंकी को संरक्षण देती है तो उसे गिरफ्तार करने के लिए रात को एक बजे भारी भरकम पुलिस टीम उसके घर नहीं भेजती। इसके बजाय देश के संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाते हुए जेल में बंद उस अपराधी आतंकी के खिलाफ़ दर्ज डेढ़ दर्जन हत्याओं और आतंकी बम विस्फोटों के केस वापस लेती है और उसे बिना शर्त रिहा करने का आदेश दे देती है।
दूसरा शर्मनाक उदाहरण उल्लेखनीय है कि 2 मार्च, 2013 को प्रतापगढ़ के कुंडा में भूमि पर कब्जे के विवाद में सपा समर्थक दबंग ग्राम प्रधान नन्हे यादव की हत्या उसके विरोधी पक्ष ने कर दी थी। जवाब में नन्हें यादव के समर्थकों ने गांव में जबर्दस्त हिंसक बलवा शुरू किया था। भारी तोड़फोड़ करते हुए कई घरों को आग ली दी थी। स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए अपने साथ पुलिस बल लेकर गांव पहुंचे पुलिस उपाधीक्षक जियाउलहक पर भी नन्हें यादव के समर्थकों की हिंसक भीड़ ने गोलियों की बौछार करते हुए जानलेवा हमला कर दिया था। परिणामस्वरुप छाती में लगी गोली के कारण पुलिस उपाधीक्षक जियाउलहक की मौत हो गयी थी और उनका गनर तथा एक उपनिरीक्षक मरणासन्न हो गए थे। इस हमले के जवाब में पुलिस बल द्वारा की गयी फायरिंग में हिंसक भीड़ की अगुवाई कर रहा एक सुरेश यादव नाम का बलवाई जो नन्हें यादव का भाई था, वो भी मारा गया था।
मृतक पुलिस उपाधीक्षक जियाउलहक के परिजनों को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरकार की तरफ से 50 लाख रुपए की आर्थिक सहयता प्रदान की थी। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सनसनीखेज मोड़ तब आया था जब नन्हें यादव तथा पुलिस उपाधीक्षक जियाउलहक की हत्यारी हमलावर हिंसक भीड़ में शामिल सुरेश यादव के परिजनों को भी सरकारी खजाने से 20-20 लाख की सरकारी सहायता का चेक देने उनके घर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्वयं चल कर गए थे। तो यह होता है, बलवाईयों अपराधियों को सरकारी संरक्षण। जब सरकार का मुखिया एक पुलिस उपाधीक्षक की हत्यारी भीड़ में शामिल रहे बलवाई और जमीन कब्जाने के लिए हुई गैंगवार में मारे गए दबंग की हत्या पर 40 लाख रुपए की सरकारी रकम की सहायता का चेक देने प्रदेश का मुखिया स्वयं उनके घर जाता है।
प्रस्तुति :- सतीश मिश्र
सत्ता सुख के लिए अपराधियों से भी रखना पड़ता है,सम्बन्ध... |
देश के संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाकर अपराधियों आतंकियों के खिलाफ दर्ज केस वापस लेती है। उन अपराधियों आतंकियों की बिना शर्त रिहाई का आदेश देती है। अब जानिए क्या और कैसा होता है वो सरकारी संरक्षण जो किसी अपराधी को किसी सरकार द्वारा दिया जाता है। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने 24 अप्रैल, 2013 को फैसला सुनाते हुए जेल में बंद 18 आतंकवादियों के खिलाफ दर्ज सभी केस वापस लेकर उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दे डाला था। उन 18 आतंकियों की सूची में वो आतंकी भी शामिल थे। जिन्हें सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर हमले के मामले 3 नवंबर 2019 को न्यायालय ने फांसी की सजा सुनाई है, लेकिन इन आतंकियों के भी मुकदमे वापस लेने का आदेश अखिलेश यादव ने 2013 में ही दे दिया था। भला हो इलाहाबाद हाइकोर्ट का जिसने समाजवादी पार्टी की सरकार के इस तुगलकी फैसले को तत्काल रद्द कर के आतंकवादियों की रिहाई पर रोक लगा दी थी।
इसी प्रकार 20 दिसम्बर, 2019 को हरकत उल जिहाद इस्लामी (हूजी) के आतंकवादी तारिक कासमी को फैज़ाबाद कचहरी बम विस्फोट के लिए उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई थी, यह उस आतंकी को सुनाई गई उम्रकैद की तीसरी सजा थी। इससे पहले 23 अगस्त, 2018 को लखनऊ की एक विशेष अदालत ने तथा 24 अप्रैल, 2015 को बाराबंकी की एक अदालत ने आतंकवादी तारिक कासमी को उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। तारिक कासमी उम्रकैद की यह सभी सजाएं आजकल जेल में काट रहा है। वाराणसी, लखनऊ और फैजाबाद की कोर्ट में 23 नवंबर 2007 में जो सीरियल बम धमाके हुए थे, उनका मुख्य अभियुक्त मास्टर माइंड तारिक कासमी ही था। इन बम धमाकों में 18 नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया गया था। लेकिन अदालतों के उपरोक्त फैसलों से कई साल पहले ही उत्तरप्रदेश की तत्कालीन समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने 24 अप्रैल, 2013 को फैसला सुनाते हुए जेल में बंद तारिक कासमी समेत 18 आतंकवादियों के खिलाफ दर्ज सभी केस वापस लेकर उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दे डाला था।
भला हो इलाहाबाद हाइकोर्ट का जिसने समाजवादी पार्टी की सरकार के इस तुगलकी फैसले को तत्काल रद्द कर के आतंकवादियों की रिहाई पर रोक लगा दी थी। अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट हस्तक्षेप नहीं करता तो उम्र कैद की तीन सजाएं भोग रहा आतंकवादी तारिक कासमी तथा सीआरपीएफ कैंप पर हमले के अपराध में फांसी पाए आतंकी आज बेखौफ खुला घूम रहे होते। ना जाने कितने निर्दोषों को मौत के घाट उतार चुके होते। यह उदाहरण है, उस शर्मनाक सच्चाई का कि जब सरकार किसी अपराधी आतंकी को संरक्षण देती है तो उसे गिरफ्तार करने के लिए रात को एक बजे भारी भरकम पुलिस टीम उसके घर नहीं भेजती। इसके बजाय देश के संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाते हुए जेल में बंद उस अपराधी आतंकी के खिलाफ़ दर्ज डेढ़ दर्जन हत्याओं और आतंकी बम विस्फोटों के केस वापस लेती है और उसे बिना शर्त रिहा करने का आदेश दे देती है।
दूसरा शर्मनाक उदाहरण उल्लेखनीय है कि 2 मार्च, 2013 को प्रतापगढ़ के कुंडा में भूमि पर कब्जे के विवाद में सपा समर्थक दबंग ग्राम प्रधान नन्हे यादव की हत्या उसके विरोधी पक्ष ने कर दी थी। जवाब में नन्हें यादव के समर्थकों ने गांव में जबर्दस्त हिंसक बलवा शुरू किया था। भारी तोड़फोड़ करते हुए कई घरों को आग ली दी थी। स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए अपने साथ पुलिस बल लेकर गांव पहुंचे पुलिस उपाधीक्षक जियाउलहक पर भी नन्हें यादव के समर्थकों की हिंसक भीड़ ने गोलियों की बौछार करते हुए जानलेवा हमला कर दिया था। परिणामस्वरुप छाती में लगी गोली के कारण पुलिस उपाधीक्षक जियाउलहक की मौत हो गयी थी और उनका गनर तथा एक उपनिरीक्षक मरणासन्न हो गए थे। इस हमले के जवाब में पुलिस बल द्वारा की गयी फायरिंग में हिंसक भीड़ की अगुवाई कर रहा एक सुरेश यादव नाम का बलवाई जो नन्हें यादव का भाई था, वो भी मारा गया था।
मृतक पुलिस उपाधीक्षक जियाउलहक के परिजनों को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरकार की तरफ से 50 लाख रुपए की आर्थिक सहयता प्रदान की थी। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सनसनीखेज मोड़ तब आया था जब नन्हें यादव तथा पुलिस उपाधीक्षक जियाउलहक की हत्यारी हमलावर हिंसक भीड़ में शामिल सुरेश यादव के परिजनों को भी सरकारी खजाने से 20-20 लाख की सरकारी सहायता का चेक देने उनके घर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्वयं चल कर गए थे। तो यह होता है, बलवाईयों अपराधियों को सरकारी संरक्षण। जब सरकार का मुखिया एक पुलिस उपाधीक्षक की हत्यारी भीड़ में शामिल रहे बलवाई और जमीन कब्जाने के लिए हुई गैंगवार में मारे गए दबंग की हत्या पर 40 लाख रुपए की सरकारी रकम की सहायता का चेक देने प्रदेश का मुखिया स्वयं उनके घर जाता है।
प्रस्तुति :- सतीश मिश्र
धन्यवाद
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