बोये पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय...
कर्नाटक और गोआ में जो हो रहा है वो सियासी सत्कर्म तो कतई नहीं है। कांग्रेस इसे शातिर हथकंडा बताकर संसद से सड़क तक अपनी छाती भी कूट रही है। उसे ऐसा करना भी चाहिए। यह उसका अधिकार भी है। लेकिन साथ ही साथ उसे यह भूलना भी नहीं चाहिए कि भाजपा उसे वही पाठ पढ़ा रही है जिस पाठ को भारतीय राजनीति के पाठ्यक्रम में कांग्रेस ने बहुत धूमधाम से शामिल किया था और गैर कांग्रेसी दलों एवं गठबंधनों को पिछले 50 वर्षों से अपना वह पाठ कांग्रेस प्रचण्ड निर्लज्जता एवं निर्भीकता के साथ पढ़ाती भी रही है। कांग्रेसी वकीलों को याद नहीं आ रहा हो तो याद कराए देता हूं। शुरुआत ताज़ा उदाहरण से करता हूं। कुछ समय पूर्व गोआ के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर जी जब ICU में मृत्युशैया पर बेहोश पड़े हुए अन्तिम सांसें ले रहे थे उस समय सत्ता के कांग्रेसी सौदागर जिस बेशर्मी और बेरहमी से मनोहर पर्रिकर की सरकार गिराने के लिए दिल्ली से गोआ तक जिस तरह ऊधम मचा रहे थे वह शर्मनाक नज़ारा पूरे देश ने देखा था। कर्नाटक में जो जेडीएस पूरे चुनाव भर कांग्रेस को जमकर कोसती गरियाती रही थी उसी जेडीएस को 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में केवल 37 सीटें मिलने के बावजूद बिना मांगे मुख्यमंत्री की कुर्सी और दर्जन भर मंत्री पद की कीमत देकर कांग्रेस ने जिस तरह से कर्नाटक की सत्ता की खरीद की थी वह नज़ारा भी देश ने देखा था।
कर्नाटक और गोआ में जो हो रहा है वो सियासी सत्कर्म तो कतई नहीं है। कांग्रेस इसे शातिर हथकंडा बताकर संसद से सड़क तक अपनी छाती भी कूट रही है। उसे ऐसा करना भी चाहिए। यह उसका अधिकार भी है। लेकिन साथ ही साथ उसे यह भूलना भी नहीं चाहिए कि भाजपा उसे वही पाठ पढ़ा रही है जिस पाठ को भारतीय राजनीति के पाठ्यक्रम में कांग्रेस ने बहुत धूमधाम से शामिल किया था और गैर कांग्रेसी दलों एवं गठबंधनों को पिछले 50 वर्षों से अपना वह पाठ कांग्रेस प्रचण्ड निर्लज्जता एवं निर्भीकता के साथ पढ़ाती भी रही है। कांग्रेसी वकीलों को याद नहीं आ रहा हो तो याद कराए देता हूं। शुरुआत ताज़ा उदाहरण से करता हूं। कुछ समय पूर्व गोआ के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर जी जब ICU में मृत्युशैया पर बेहोश पड़े हुए अन्तिम सांसें ले रहे थे उस समय सत्ता के कांग्रेसी सौदागर जिस बेशर्मी और बेरहमी से मनोहर पर्रिकर की सरकार गिराने के लिए दिल्ली से गोआ तक जिस तरह ऊधम मचा रहे थे वह शर्मनाक नज़ारा पूरे देश ने देखा था। कर्नाटक में जो जेडीएस पूरे चुनाव भर कांग्रेस को जमकर कोसती गरियाती रही थी उसी जेडीएस को 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में केवल 37 सीटें मिलने के बावजूद बिना मांगे मुख्यमंत्री की कुर्सी और दर्जन भर मंत्री पद की कीमत देकर कांग्रेस ने जिस तरह से कर्नाटक की सत्ता की खरीद की थी वह नज़ारा भी देश ने देखा था।
ध्यान यह भी रहे कि कर्नाटक की गठबंधन सरकार की तुलना जम्मू कश्मीर में बनी गठबंधन सरकार से नहीं हो सकती क्योंकि कर्नाटक में मतगणना खत्म होने के कुछ घण्टों बाद ही कांग्रेस ने बिना मांगे ही जेडीएस को मुख्यमंत्री पद देने की घोषणा कर दी थी। जबकि जम्मू कश्मीर में 23 दिसम्बर 2014 को चुनाव परिणाम घोषित होने के 2 महीने बाद BJP और PDP का गठबंधन तब हुआ था जब उन 2 महीनों के दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस द्वारा गठबंधन सरकार बनाने के ऑफर को पहले BJP और फिर PDP द्वारा ठुकराया जा चुका था। भारतीय राजनीति में शुरू किए गए कांग्रेसी पाठ के यह तो 2 ताज़ा उदाहरण हैं। लेकिन इसकी शुरुआत हुई थी 49 साल पहले। देश में यूपी में पहली बार बनी गैर कांग्रेसी गठबंधन सरकार की कमर कांग्रेस ने 1970 में इस तरह तोड़ी थी कि 425 सदस्यीय यूपी विधानसभा में मात्र 82 सदस्यों के समर्थन वाले चौधरी चरण सिंह को कांग्रेसी समर्थन से मुख्यमंत्री बनाने की कीमत देकर यूपी की वह संविद सरकार कांग्रेस ने गिरा दी थी और केवल 8 माह बाद चौधरी चरण सिंह से भी समर्थन वापस ले लिया था। 1979 में एकबार फिर केंद्र की जनता पार्टी सरकार गिराने के लिए चौधरी चरण सिंह को केवल 24 दिन के लिए प्रधानमंत्री बनाकर कांग्रेस ने वो सरकार गिरा दी थी। 1980 में केंद्र की सत्ता में वापसी के साथ ही हरियाणा की गैर कांग्रेसी सरकार गिराने के लिए 37 विधायकों के साथ भजनलाल दलबदल कर के कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
कांग्रेस ने हरियाणा की गैर कांग्रेसी सरकार गिराने की कीमत के रूप में भजनलाल को मुख्यमंत्री बना दिया था। वक्त की मार देखिए कि 2009 में जब हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अलग हो चुके भजनलाल की पार्टी जनहित कांग्रेस के 6 विधायक जीते थे और कांग्रेस बहुमत से 6 सीट दूर रह गयी थी। उस समय भजनलाल की पार्टी के छहों विधायक भजनलाल को ठेंगा दिखाकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। भजनलाल को इसकी खबर 24 घण्टे बाद मिली थी। कांग्रेस के समर्थन में होते रहे ऐसे दलबदल/पालाबदल के 50 वर्ष लम्बे शर्मनाक अध्याय के यह कुछ उदाहरण मात्र हैं। अतः कर्नाटक और गोआ में जो हो रहा है उसपर कांग्रेस अपनी छाती जरूर कूटे, अपना सिर जरूर धुने लेकिन यह कहते हुए कि उसने जो गड्ढा दूसरों के लिए खोदा था उसमें आज वो खुद गिर रही है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें