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मंगलवार, 13 जून 2023

एसटीएफ मुख्यालय जाकर सरेंडर करने वाले डॉन त्रिुभवन सिंह से कांपता है माफिया मुख्तार अंसारी

एसटीएफ मुख्यालय जाकर सरेंडर करने वाले डॉन त्रिुभवन सिंह से कांपता है माफिया मुख्तार अंसारी.....

लखनऊ। जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बांदा जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी अभी तक का उत्तर प्रदेश का सबसे कुख्यात माफिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब से उन 61 मोस्ट वान्टेड माफियाओं की ब्लैक-लिस्ट तैयार की है, जिन्हें जल्दी से जल्दी खामोश करना है। उस लिस्ट में एक नाम ऐसा भी है, जिससे गली के गुंडे से माफिया बना मुख्तार अंसारी भी थरथर कांपता है। आइए जानें मुख्तार अंसारी के दुश्मन नंबर वन डॉन बृजेश सिंह के जिगरी दोस्त त्रिभुवन सिंह के बारे में।


उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के सैदपुर मुढ़ियार गांव के माफिया डॉन त्रिभुवन सिंह मूल निवासी हैं।त्रिभुवन सिंह किसी जमाने में पिता और पुलिस में हवलदार रहे भाई के कत्ल का हिसाब बराबर करने के लिए पुलिस की वर्दी में माफिया मुख्तार अंसारी एंड गुंडा कंपनी के गुंडों के ऊपर ही गोलियां झोंक दी थीं।त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह ने जहां अपनों की हुई हत्याओं का बदला लेने के लिए जरायम की जिंदगी के जंजालों में उलझना कुबूल किया। 


वहीं मुख्तार अंसारी ने जरायम की दुनिया में उतकर लोगों की गाढ़ी कमाई लूट, कत्ल-ए-आम से हथियाकर खुद को धन्नासेठ बनाने के लिए पांव रखा था। मुख्तार अंसारी और त्रिभुवन सिंह जरायम की दुनिया में उतरे, लेकिन दोनों की नियत में खोट या कहिए फर्क साफ और एकदम अलग नजर आता था। त्रिभुवन सिंह अपनी इज्जत,खुद की और अपनों की जिंदगी महफूज रखने की जंग में जरायम की दुनिया के झंझटों में फंसते चले गए तो वहीं मुख्तार अंसारी अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए लूट,धोखाधड़ी शुरू कर दी।


म‌ई 1985 में वाराणसी में बृजेश सिंह के पिता हरिहर सिंह की हत्या कर दी गयी। बदले में कुछ महीने बाद ही 1986 में चंदौली जिले के सिकरौरा गांव में पूर्व प्रधान समेट 7 लोगों की लाशें बिछा डालने का आरोप बृजेश सिंह के ऊपर लगा। उस गोलीकांड में बृजेश सिंह भी जख्मी हुए थे। बृजेश सिंह के पैर में गोली लगी थी। इस हत्याकांड में नाम आने के बाद जब बृजेश सिंह जेल पहुंचे तो त्रिभुवन सिंह पहले से बंद मिले। दोनो में ऐसी दोस्ती हुई जो आत तक बरकरार है। पुलिस को त्रिभुवन सिंह न मिलें, तो वो बृजेश सिंह को और बृजेश सिंह न मिलें तो, त्रिभुवन सिंह को तलाशने लगती है। मतलब दोनो में से अगर कोई एक भी पुलिस को मिल जाएगा तो समझिए दूसरा मिल ही गया।


बृजेश सिंह से त्रिभुवन सिंह उम्र में बड़े हैं। इसलिए बृजेश सिंह उन्हें बड़े भाई और पिता का सम्मान देते हैं।त्रिभुवन सिंह भी बृजेश सिंह के लिए मजबूत कवच बने रहने में कभी पीछे नहीं रहे। दोनो दांत काटे की दोस्ती वाले दोस्तों की इस जुगल जोड़ी का मुख्तार अंसारी दुश्मन नंबर पहला और आखिरी एक ही है।त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह जाति समीरकरण की वजह से करीब हैं हीं। दोनो ने अपने-अपने परिवार के कई सदस्यों को खोया है। इसलिए दोनो का दर्द भी एक सा ही है। त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह की ससुराल एक ही गांव में होने से इनकी एक दूसरे के बीच आपसी समझ-सामंजस्य की कहानियां पूर्वांचल के गैंगस्टर्स के घरों में आज भी कही-सुनी सुनाई जाती रहती हैं।


त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह में बड़ा फर्क है।फर्क यह है कि बृजेश सिंह एक गरम मिजाज के हैं तो त्रिभुवन सिंह नरम मिजाज के हैं।अक्सर जब जब बृजेश सिंह तैश में आकर कोई ऐसा कदम उठाने जा रहे होते हैं कि जो उनके लिए और त्रिभुवन सिंह को अहित में होगा तो बड़े भाई की तरह अवसर गंवाए बिना त्रिभुवन सिंह बृजेश सिंह के पांव उस तरफ बढ़ने से रोक लेते हैं और बृजेश सिंह भी। बृजेश सिंह त्रिभुवन सिंह की हर बात मानने में खुद का सम्मान समझते नहीं अघाते हैं।


बात अगर काले-कारोबारों की करें तो बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह रेलवे के ठेका, बालू का ठेका, रेलवे स्क्रैप और कोयला आपूर्ति का ठेका लेते हैं और यही सब धंधा कल का गली का गुंडा और आज उम्रकैद का सजायाफ्ता माफिया मुख्तार अंसारी का भी है ऐसे में दुश्मनी का इनके बीच जो आलम बीते तीन-चार दशक से मौजूद वो फिर गलत कैसे हो सकता है। हां इतना जरूर है कि जिस माफिया मुख्तार अंसारी की वजह से आज भी आमजन की रूह फनाह होती है।


वहीं मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह के नाम से मुंह खोलना भूल जाता है। थरथर कांपने लगता है,क्योंकि मुख्तार जानता है कि जो त्रिभुवन सिंह पुलिस की वर्दी पहन कर या अपने आदमियों को पुलिस वर्दी पहनाकर मुख्तार के शूटर को पुलिस हिरासत में गोली से उड़वा सकता है वो त्रिभुवन सिंह भला मौका मिलने पर मुख्तार अंसारी के सीने में या बदन में गोलियां झोंकने में शर्माएगा देर नहीं लगाएगा। कानून की शायद ही ऐसी किसी धारा में मुकदमा बाकी बचा हो, जिसमें त्रिभुवन सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज न हो चुका हो। अधिकतर मुकदमे त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह पर एक साथ ही दर्ज हुए हैं और इनमें से अधिकतर मुकदमों में दोनों डॉन दोस्त बरी भी हो चुके हैं। कुछ मुकदमे अभी भी अदालतों में लंबित है।


त्रिभुवन सिंह को जेल में अभी भी खतरा बना रहता है। इसलिए जेल प्रशासन अक्सर त्रिभुवन सिंह को एक जेल से दूसरी जेल में एहतियातन शिफ्ट करती रहती है। एक साल के लिए त्रिभुवन सिंह को दिल्ली की तिहाड़ जेल में रखा गया था। वो मामला मकोका कानून से जुड़े मुकदमे का था। जब त्रिभुवन सिंह को दिल्ली लाया गया था। तिहाड़ जेल से त्रिभुवन सिंह को निकाल कर यूपी की पीलीभीत जेल भेजा गया था। मकोका के मुकदमे में त्रिभुवन सिंह बरी हो चुके है।यह वही त्रिभुवन सिंह हैं, जिनका नाम आजगमढ़ के पखरी कांड में खूब उछला था। 


जरायम की दुनिया का खुद को बादशाह मानने वाले त्रिभुवन सिंह के मिर्जापुर जेल में बंद रहने के दौरान एक बार छापा पड़ गया। जानकारी के मुताबिक तब त्रिभुवन सिंह की बैरक में टीवी लगा मिला था। जो नियम विरूद्ध था। त्रिभुवन सिंह के बैरक में वीडियो कांफ्रेंसिंग का कैमरा भी उस छापे में खराब मिलने से मिर्जापुर के जेल अफसरों की घनघोर बेइज्जती की गई। जेल के भीतर में रुतबे के आलम का हाल जानने के लिए ये काफी है कि त्रिभुवन सिंह की मिर्जापुर जेल में बंदी के दौरान वहां पड़े छापे में इनसे मिलने आने वाले मुलाकातियों के मोबाइल नंबर तक विजिस्टर रजिस्टर ने गायब मिले।


त्रिभुवन सिंह को दिल्ली की तिहाड़ जेल से यूपी की पीलीभीत जेल और फिर पीलीभीत जेल से निकाल कर मिर्जापुर जेल में साल 2016 में ले जाकर बंद किय गया था। बरहाल जेल में बंद त्रिभुवन सिंह का नाम पर योगी सरकार की नजर टेढ़ी होने के बाद यूपी पुलिस द्वारा हाल ही में बनाई गई 61 मोस्ट वान्टेड माफियाओं की ब्लैक लिस्ट मे शुमार होने से त्रिभुवन सिंह फिर चर्चाओं में हैं।


त्रिभुवन सिंह का एक और भी किस्सा मशहूर है।यह बात साल 2009 की है। एक दिन त्रिभुवन सिंह राजधानी लखनऊ के विज्ञानपुरी में एसटीएफ मुख्यालय में अपनी बुलेटप्रूफ पजेरो  से खुद ही जा पहुंचे।विजिटर रजिस्टर में अपने असली नाम पते से इंट्री की और एसटीएफ प्रमुख के सामने जाकर खड़े हो गए और बोल मैं आपका 20-22 साल से मोस्ट वान्टेड फरार गैंगस्टर त्रिभुवन सिंह हूं। आप मुझे गिरफ्तार कर लीजिए। यह सुनकर एसटीेएफ प्रमुख को ही खुद की आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि जिस वान्टेड अपराधी की तलाश में उनकी टीमें दुनिया भर में कई साल से धूल फांक रही हैं वो इस कदर  बेखौफ होकर एसटीएफ प्रमुख के सामने सरेंडर करने पहुंच जाएगा।


एसटीएफ चीफ ने पूछ कि एसटीएफ के सामने ही सरेंडर करने क्यों आए कोर्ट क्यों नहीं गए। जैसे बाकी सब फरार अपराधी सरेंडर करने के लिए कोर्ट ही पहुंचते हैं। जवाब में त्रिभुवन सिंह कहा कि कोर्ट भी कौन सा अपने घर ले जाकर मुझे पालती-पोसती। कोर्ट में सरेंडर करता तो कोर्ट भी आपको ही बुलाकर (एसटीएफ या पुलिस) आपके ही हवाले कर देती। इसलिए हम सीधे आपके ही पास चले आए हैं। 

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