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सोमवार, 1 मई 2023

माफिया मुख्तार अंसारी क्यों खरीदना चाहता था सेना से चुराई लाइट मशीन गन खौफनाक प्लान बनाया था

माफिया मुख्तार अंसारी की कहानी शैलेन्द्र सिंह कि जुबानी ....

लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी के विधायक रहे कृष्णानंद राय की हत्या से जुड़े गैंगस्टर मामले में माफिया मुख्तार अंसारी को शनिवार को गाजीपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई। इसी बीच मुख्तार अंसारी के कारण अपनी नौकरी गंवाने वाले स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के पूर्व डीएसपी रहे शैलेंद्र सिंह ने अपनी इच्छा जाहिर की है। शैलेंद्र सिंह चाहते हैं कि मुख्तार अंसारी के उस मामले को दोबारा खोला जाए, जिसमें उन्होंने मुख्तार के खिलाफ पोटा कानून लगाया था। सवाल है कि शैलेंद्र ऐसा क्यों चाहते हैं। साल 2005 में नवंबर महीने में कृष्णानंद राय की हत्या से पहले माफिया मुख्तार अंसारी पर सेना के एक लाइट मशीन गन को खरीदने का आरोप लगा था। आरोप है कि मुख्तार ने साल 2004 के जनवरी महीने में ही कृष्णानंद राय को मारने के लिए सेना के एक लाइट मशीन गन को खरीदने की योजना बनाई थी। इसके लिए मुख्तार ने 2004 में आर्मी के एक भगोड़े से चुराई गई लाइट मशीन गन खरीदने की डील की थी।


विस्तार से जानिए क्या है पूरा  मामला....


एसटीएफ के तत्कालीन डीएसपी शैलेंद्र सिंह,जो सीओ के तौर पर वाराणसी में तैनात थे। शैलेंद्र सिंह को मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय के गैंगवार पर नजर रखने के लिए तैनात किया गया था। इसी तैनाती के दौरान शैलेंद्र सिंह ने जब मुख्तार के फोन को टेप करना शुरू किया तो एक खतरनाक कहानी सामने आई। शैलेंद्र सिंह का दावा है कि उन्होंने वह ऑडियो रिकॉर्ड किया, जिसमें मुख्तार सेना के एक भगोड़े से लाइट मशीन गन खरीदने का डील कर रहा था। एसटीएफ तब मुख्तार के फोन को रिकॉर्ड कर रही थी। मुख्तार और सेना के इस भगोड़े की बातचीत का टेप आज भी अदालत की कार्यवाही में मौजूद है।यह टेप अपने आप में इतना विस्फोटक था कि उस लाइट मशीन गन की बरामदगी के बाद शैलेंद्र सिंह ने मुख्तार पर पोटा कानून लगा दिया और यहीं से मुलायम सरकार की नजरें डीएसपी शैलेंद्र सिंह पर टेढ़ी हो गईं।अंततः शैलेंद्र को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी।


सुनिए पूरी कहानी शैलेंद्र सिंह की जुबानी...


शैलेंद्र सिंह के मुताबिक राजधानी लखनऊ में 2004 में मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय के बीच गैंगवार हुआ था। आपस में गोलियां चलीं और तब एसटीएफ को इन पर नजर रखने के लिए जिम्मेदारी दी गई थी। मुख़्तार और कृष्णानंद पूर्वांचल से थे। दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन थे। शैलेंद्र सिंह ने बताया कि वह पूर्वांचल के चंदौली के रहने वाले हैं। ऐसे में उन्हें मुख्तार और कृष्णानंद राय दोनों पर निगरानी की जिम्मेदारी थी, ताकि कोई खूनी गैंगवार ना हो जाए। शैलेंद्र सिंह ने कहा कि इसी निगरानी के क्रम में जब मैं मुख्तार अंसारी का फोन सुन रहा था तब यह सेना के भगोड़े बाबूलाल यादव से लाइट मशीन गन खरीदने की बात कर रहा था। बाबूलाल कह रहा था कि मेरे पास सेना से चुराई हुई लाइट मशीन गन है जो कि राष्ट्रीय राइफल से चुराई गई थी और उससे लेकर आया हूं और यह करोड़ में सौदा लगभग तय हो गया था।


शैलेंद्र सिंह ने कहा कि जब मुख्तार अंसारी अपने लोगों से बात कर रहा था और वह फोन भी रिकॉर्ड हो रहा था तब उसने कहा था कि उसे हर हाल में यह लाइट मशीन गन चाहिए। उसकी वजह भी वह बताता था कि कृष्णानंद राय की गाड़ी बुलेट प्रूफ है और उस पर इसके राइफल का कोई असर नहीं होगा। अगर लाइट मशीन गन उससे मिल जाए तो वह उसकी बुलेट प्रूफ गाड़ी को भेद सकती है और उसे मारा भी जा सकता है। खास बात यह है कि इस पूरे ऑपरेशन की जिम्मेदारी खुद आरके विश्वकर्मा जो तब बनारस में एसटीएफ के एसपी थे और आज राज्य के डीजीपी हैं। उन्होंने ही शैलेंद्र को यह जिम्मेदारी दी थी कि हर हाल में इस लाइट मशीन गन को मुख्तार के पास पहुंचने से पहले बरामद करना है,क्योंकि अगर यह मुख्तार के पास पहुंच गई तो फिर इसे बरामद करना असंभव हो जाएगा।


 शैलेंद्र सिंह ने कहा कि यह लाइट मशीनगन 24 घंटे के अंदर बरामद करना था, क्योंकि मुख्तार से बाबूराम यादव की डील हो गई थी। पुलिस को मालूम था कि अगर यह एक बार मुख्तार के घर के भीतर चला गया तो फिर किसी भी कीमत पर पुलिस उसे बरामद नहीं कर पाएगी। उन्होंने कहा कि तत्काल हम लोगों ने ऑपरेशन लॉन्च किया।हमने बाबू लाल यादव को उठाया। पता ये चला कि उसने अपने मामा के पास इसे छुपा कर रखा है। जान पर खेलकर हम लोगों ने इसे बरामद किया। शैलेंद्र सिंह के मुताबिक मुख्तार अंसारी हर हाल में कृष्णानंद राय को मार देना चाहता था। उसे लग रहा था कि कृष्णानंद राय की बुलेट प्रूफ गाड़ी सबसे बड़ी अड़चन है। उसका एके-47 या उसके राइफल अचूक नहीं थे। ऐसे में अपने लोगों से बातचीत में उसने हर हाल में इस लाइट मशीन गन को लेने की बात कही थी और वह लगभग इसे ले चुका था।


शैलेंद्र सिंह ने कहा कि फाइनली जब मैंने इसे रिकवर किया तो वादी के रूप में बनारस के चौबेपुर थाने में मैंने यह मामला दर्ज कराया। संबंधित धाराओं में यह मामला दर्ज हुआ, लेकिन मामला सेंसेटिव था। सेना से चुराया हुआ लाइट मशीन गन था। इसे कश्मीर से लाया गया था। यह मुख्तार के हाथों में पहुंचने वाला था, इसलिए हमने आर्म्स एक्ट के साथ-साथ इसमें पोटा भी लगाया और यहीं से पूरा मामला बिगड़ गया। मुख्तार को लग चुका था कि पोटा लगने से उसकी मुसीबत काफी बढ़ जाएगी और वह इससे निकल नहीं पाएगा।


शैलेंद्र सिंह ने कहा कि तब की सियासत इसके मुफीद थी मायावती की सरकार तोड़कर मुलायम सिंह यादव ने सरकार बनाई थी। तब मुख्तार अंसारी कई निर्दलीय विधायकों के साथ सरकार को समर्थन दे रहा था और यही से उसने मुलायम सिंह यादव पर दबाव बनाया। मुलायम सिंह यादव कतई नहीं चाहते थे कि मुख्तार पर पोटा लगे।इस मामले में एक साथ दर्जनों ट्रांसफर मुलायम सिंह यादव ने कर दिया। यहां तक कि बनारस की एसटीएफ यूनिट को भी बंद कर दिया है। यह मैसेज साफ हो गया कि इसमें बीच का रास्ता कुछ नहीं है। मुख्तार को हर हाल में पोटा से बाहर निकालना है।


शैलेंद्र सिंह ने कहा कि मेरे ऊपर भी दबाव था।एफआईआर बदलना चाहते थे। मैंने एफआईआर बदलने से मना कर दिया। लोगों ने कहा कि आप इन्वेस्टिगेशन में नाम मत लेना उनका, लेकिन सब कुछ जुटाया हुआ साक्ष्य मेरा ही था तो मैं अड़ा रहा और मैंने पीछे हटने से मना कर दिया, जिसकी कीमत मैंने अपनी नौकरी छोड़कर चुकाई।उन्होंने कहा कि जब सब तरफ से समझाने की कोशिश भी बेकार हो गई और मैंने भी फैसला कर लिया कि मैं इस मुद्दे पर पीछे नहीं हटूंगा। तब मैंने भी त्याग पत्र लिखा और त्यागपत्र में मैंने साफ लिखा कि जब सरकार का फैसला मुख्तार अंसारी कर रहा है तो यहां मेरे लिए काम करना मुश्किल है।


बता दें कि माफिया मुख्तार अंसारी से लोहा लेने वाले पूर्व डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह चंदौली जिले के सैयदराजा क्षेत्र के फेसुड़ा गांव के रहने वाले हैं। शैलेंद्र सिंह वर्तमान में जैविक खेती कर रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे दादा रामरूप सिंह और पुलिस अफसर पिता स्वर्गीय जगदीश सिंह से बहादुरी विरासत में मिली थी। इसलिए माफिया से मोर्चा लेने में तनिक भी नहीं हिचकिचाए। नौकरी छोड़नी पड़ी, लेकिन जीवन में निराशा को हावी नहीं होने दिया।

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