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रविवार, 19 जुलाई 2020

कुख्यात अपराधी विकास दुबे की पत्नी, पिता, भाई और नौकर के नाम बने हैं,शस्त्र लाइसेंस

मुकदमे दर्ज होने के बावजूद विकास और उसके परिवार के नाम छः शस्त्र लाइसेंस कैसे जारी हो गए...???
यदि बिकरू वाला विकास दुबे इतना बड़ा दुर्दांत अपराधी था तो सिस्टम पर सवाल उठना लाजिमी है कि उसका नाम टॉप-10 अपराधियों की सूची में पुलिस द्वारा क्यों नहीं शामिल किया गया था...???
पुलिस मुठभेड़ में ढेर होने के बाद भी सुर्ख़ियों में बना हुआ है विकास दुबे...
लखनऊ। एनकाउंटर में मारे गये यूपी के मोस्ट वांटेड विकास दुबे, उसकी पत्नी, पिता समेत परिवार के छह लोगों के नाम से असलहा लाइसेंस जारी है। सभी ने अपने अपराध छिपाकर 3 लखनऊ और 3 लाइसेंस कानपुर से बनवाए हैं। पुलिस ने इन सभी असलहों को निरस्त करने की संस्तुति की है। इस बात की जांच की जा रही है कि इतने मुकदमे दर्ज होने के बावजूद विकास और उसके परिवार के नाम छः शस्त्र लाइसेंस कैसे जारी हो गए ?

कानपुर के एसएसपी दिनेश कुमार पी ने बताया कि जांच में विकास दुबे, पत्नी ऋचा, पिता रामकुमार, भाई दीपू दुबे, अंजलि दुबे और नौकर दयाशंकर के नाम से शस्त्र लाइसेंस जारी हुए हैं। इनमें से ऋचा, दीपू और अंजलि का लखनऊ से शस्त्र लाइसेंस बना है। एसएसपी के मुताबिक विकास दुबे, राम कुमार और दयाशंकर के लाइसेंस कानपुर से बने थे। इन सभी शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने की रिपोर्ट भेजी गई है। यह भी जांच की जा रही कि अपराधिक बैकग्राउंड होने के बाद भी परिवार में छह शस्त्र लाइसेंस कैसे बन गए थे। जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अपराधी और उसके परिवार के पास छह शस्त्र लाइसेंस होने के मतलब नियमों को ताक पर रखकर सभी काम किए गए हैं।

"देश का सिस्टम कितना बिगड़ा हुआ है ? इसकी महज एक बानगी है विकास दुबे के साम्राज्य और उसके राजनीतिक रसूख और उसकी नौकरशाही में पकड़ की ! तभी तो वो सिस्टम से ही भीड़ गया और डिप्टी एसपी समेत 8 पुलिस कर्मियों के खून की होली खेल लिया। अब सिस्टम जागा तो कार्यवाही करने के नाम पर तरह-तरह के दावे और दिखावे किये जा रहे हैं। इन दावे और दिखावे में कितनी हकीकत है ये तो आने वाला वक्त ही तय करेगा, परन्तु एक कटु सत्य ये है कि विकास दुबे को अपराधी विकास दुबे बनाने वाला यही बिगड़ा हुआ सिस्टम है जो आज खुद पर सवाल खड़ा कर रहा है..."

2004 में विकास का लाइसेंस निरस्त हुआ था...
विकास दुबे को कानपुर के कलेक्ट्रेट से भी मदद मिल रही थी। 2004 में उसकी राइफल का लाइसेंस निरस्त कर रिपोर्ट थाने भेजी गई लेकिन असलहा उसके पास ही रहा। बड़ा सवाल यह है कि उसकी फाइल दबाने में मदद की थी। एसआईटी इस बिन्दु पर भी जांच करेगी। एसएसपी दिनेश कुमार पी ने बताया कि 2004 के लाइसेंस निरस्तीकरण की रिपोर्ट थाने के रजिस्टर में दर्ज नहीं पाई गई। उस समय के डिस्पैच और रिसीविंग रजिस्टर के मिलान के बाद स्थिति साफ हो सकती है।  

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