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सोमवार, 15 जून 2020

कोरोना मरीज की कहानी, जानिए अस्पताल में कैसा बीता एक हफ्ता ?


कोरोना पॉजिटिव रिपोर्टर की आप बीती...

➤पूजा शाली...

 इंडिया टुडे रिपोर्टर पूजा शाली...
डॉक्टर और नर्स ने पूछा क्या बुखार, खांसी है या कोई दवाई चल रही है ? अपनी सारी जानकारी देने के बाद, ये सुनकर अच्छा लगा कि बुखार न आना मतलब वायरस ज्यादा पकड़ नहीं बना पाया है । अभी भी इसको रोका जा सकता है 

अस्पताल के चौथे माले पर अस्पताल का कोविड वार्ड थाकमरे में सिर्फ एक बिस्तर रखा हुआ था और एसी बंद थायूपी सरकार के हेल्थ डिपार्टमेंट का एक अस्पताल था ! जब रिपोर्ट पर कोविड-19 'पॉजिटिव' लिखा देखा, तो थोड़ा डर और काफी कंफ्यूजन महसूस हुआ बुखार था नहीं, मगर कोरोना वायरस शरीर में घुस चुका था। एक साथी की तबीयत खराब होने के बाद, दफ्तर ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग करवाई, जिसमें मैं भी शामिल थी। 

कोरोना पॉजिटिव होने की खबर मिलते ही मैंने खुद को परिवार से अलग दूसरे कमरे में शिफ्ट कर लिया था खाने-पीने का सामान अलग और घर में सफाई भी करवा ली। मगर कुछ ही घंटों में, गौतमबुद्ध नगर प्रशासन से एक फोन कॉल आया मुझे बताया गया कि आपको हॉस्पिटल में भर्ती होना होगा। मैंने उनसे कहा, 'मगर क्यों, मैंने घर में अपने आप को आइसोलेट कर लिया है। आप किसी क्रिटिकल मरीज को वहां भर्ती करें तो बेहतर होगा'

अधिकारी ने जवाब दिया, 'प्रदेश के निर्देशानुसार हर पॉजिटिव केस को इलाके से अलग आइसोलेट में रखना है, आप कृपया तैयार हो जाएं और साथ में कुछ सामान रख लें आपको ठीक अस्पताल मिलेगा आप बेफिक्र रहिएसरकारी अस्पताल की हालत सबको मालूम ही है खासकर एक न्यूज रिपोर्टर को तो कुछ प्राइवेट अस्पताल को कॉन्टैक्ट किया पता चला ज्यादातर बेड खाली नहीं हैं और जहां बेड खाली हैं, वहां जेब भी खाली हो जाएगी। 

अगले आधे घंटे में, एंबुलेंस दरवाजे पर थी और मैं एंबुलेंस के अंदर। मुझे सुपर स्पेशलिटी पीडियाट्रिक हॉस्पिटल एंड पोस्ट ग्रेजुएट टीचिंग इंस्टीट्यूट (SSPH-PGTI) मिला. इस अस्पताल को चाइल्ड पीजीआई के नाम से भी जाना जाता है ये एक सरकारी अस्पताल है, जो उत्तर प्रदेश सरकार के हेल्थ डिपार्टमेंट के अंदर आता है

चौथे माले पर अस्पताल का कोविड वार्ड है। कुछ स्टाफ वहां पहले से तैनात थे, जिन्होंने मुझसे नाम पता पूछा और एक कमरे की तरफ ले गए. आइसोलेशन वार्ड-24 साफ कमरा था और इसके साथ बाथरूम भी था। कमरे में सिर्फ एक बिस्तर रखा हुआ था और एसी बंद था तो मैंने खिड़की खोली और लंबी सांस ली। एक महिला कर्मचारी ने तरार से जवाब दिया, 'आपको एक इलेक्ट्रिक फैन मिलेगा, एसी नहीं चलेगा। अपना दरवाजा बंद रखें बार-बार दरवाजा न खोलें,' इसके बाद प्यास लगी तो पानी आने में ही दो-घंटे लग गए 

पानी के लिए कई बार रिसेप्शन पर रिक्वेस्ट भेजी अपनी बोतल लाना ध्यान नहीं रहा, और सोचा था हॉस्पिटल में पानी की बोतल तो मिलेगी ही। काफी देर बाद, दरवाजे पर कर्मचारी ने दस्तक दी। एक बोतल में पानी भरा, और दूर से ही वापसबोतल हाथ में नहीं, जमीन से खुद उठानी थी। पहली रात दुखी न से गुजरी. बार-बार एक ही ख्याल आ रहा था कि अब हम भी पॉजिटिव हैं, मगर परिवार कैसे रहेगा हमारे पीछे ? क्या वो भी तो नहीं बीमार पड़ जाएंगे ?

  कोरोना संक्रमण काल में इंडिया टुडे रिपोर्टर पूजा शाली की दिनचर्या...
दिनचर्या...
सूरज निकला, जोर से हुई दस्तक से अचानक आंख खुली। नाश्ता एक ट्रॉली पर रखा था, जो खुद उठाना था। “मास्क पहनकर ही दरवाज़ा खोला करो” दलिया, केला, अंडा, पराँठा उठाया और दरवाज़ा बंद। डॉक्टर और नर्स ने पूछा क्या बुखार, खांसी है या कोई दवाई चल रही है ? अपनी सारी जानकारी देने के बाद, ये सुनकर अच्छा लगा कि बुखार न आना मतलब वायरस ज्यादा पकड़ नहीं बना पाया है अभी भी इसको रोका जा सकता है। बस, तो यही दिमाग में ध्यान रखकर मैंने अगले कुछ दिन आराम किया, खाना टाइम पर खाया और अपने शरीर को गिरने नहीं दिया कुछ विटामिन कैप्सूल्स भी खाने को कहा मैंने अपने साथ एक बैग रखा था जिसमें कुछ फल, खजूर, एक तौलिया, साबुन, कपड़े, और एक किताब रखी थी 

भूख लगती तो बैग में से फल निकालकर पेट भर लेती। ऐसे वक्त अकेले में, दिमाग घोड़े दौड़ाता है डर और टेंशन हावी होने लगते हैं मैं ध्यान भटकाने के लिए, अपने परिवार के साथियों से हल्की-फुल्की बातचीत करती, साथ में एक किताब और कुछ कलर-पेंसिल रखे थे जिसमें बिजी रहकर दिन निकल जाता था फोन पर यूट्यूब पर कोई भजन या संगीत बजा दिए तो कभी दिन में खिड़की खोल, बाहर का नजारा देख लिया। कोशिश बस यही थी कि मन शांत रहना चाहिए। 3बजे भोजन मिलता था, शाम को 4 बजे चाय और कभी-कभी हल्दी-दूध

कमरे में टीवी नहीं था तो फोन पर समाचार खबर देख लेती था दिल्ली की खबर पढ़कर अचंभित थी, जहां लोगों को न खाली अस्पताल और न टेस्ट का जरिया मिल रहा था उस लिहाज से ऐसे लगा जैसे नोएडा के हालात बेहतर थे। कम से कम, कुछ बेड तो खाली थे। हालात तो जैसे टाइम बम की तरह हैं। अस्पताल ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया था, मरीज और स्टाफ उस पर बात करते थे और एक नंबर दिया था कम से कम मुलाकात हो, वो एजेंडा था। इस ग्रुप के जरिए पता चला, बाकी मरीज कैसे हैं ?

एक मां अपने बच्चे के लिए दवाई की मांग करती तो एक वृद्ध को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा जा रहा था जिन मरीजों का बुखार नहीं उतर रहा था, उनको हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवाई दी जा रही थी एक लड़का ग्रुप पर रोज पूछता था, 'मैं कब डिस्चार्ज हो पाऊंगा ?' तो कुछ मरीज सिर्फ साबुन और कपड़े धोने का साबुन मांगते रहतेएक दिन अजीब घटना हुई, एक कर्मचारी ने दस्तक दी और कहा मेरा एक्स-रे होना है मुझे शक हुआ तो डॉक्टर को फोन किया और पता लगा कि वो गलत कमरे में गलत मरीज के पास आ गया था इसलिए जरूरी है, ऐसे वक्त पर अपना केस साफ बातचीत में स्टाफ को बताते रहें, वर्ना कुछ और ही दवाई खाने को न मिल जाए। 

कुछ दिनों बाद, जैसे चार दिवारी में दम घुटने लगा तो नर्स ने कहा, आज आपका नया कोविड टेस्ट है कमरे से बाहर निकले और टेस्ट के लिए बैठे वहां, बिना पंखे के कमरे में, पीपीई किट पहने, पसीने से जूझता हुआ मेडिकल स्टाफ आया और मेरा सैंपल ले लिया अब मुझे कुछ दिन का और इंतजार था। तभी हलचल हुई, पता चला कि पीपीई किट में हवा न आने के कारण एक कर्मचारी बेहोश हो गया है ये बात डॉक्टर ने तब बताई जब मरीज परेशानी में खाने में देरी की शिकायत करने लगे। मालूम हुआ, एक नहीं दो कर्मचारी बेहोश हुए थे और अब बाकी कर्मचारी पर दायित्व बढ़ गया था

घर जाने का दिन...

मेरा कोविड टेस्ट नेगेटिव आया तो मुझे पहले कभी किसी बात को लेकर इतनी खुशी नहीं हुई थी, जितनी अपनी रिपोर्ट देखने के बाद हुई. बैग बांधा और बाहर आने का बुलावा आ गया। वायरस मेरा शरीर अब छोड़ चुका था। निकलते हुए स्टाफ से हल्की बातचीत की, तो एक सुनीता ने कहा, 'मैं 3 महीने से इसी अस्पताल में हूं हफ्तों पहले अपने परिवार से मिली थी, वो भी पहले सैंपल नेगेटिव आए तो ये किट पहनने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है, मगर मैं अपने आपको मजबूत रहने की याद दिलाती रहती हूंतभी पानी की ट्रॉली ले जाते हुए, पीपीई किट में एक और कर्मचारी ने कहा, 'परेशानी तो है मगर टेंशन नहीं लेते। 

बस कोशिश करते हैं, मरीज जल्दी ठीक होकर घर वापस चला जाए' एंबुलेंस आ चुकी थी और मैं घर के तरफ निकल पड़ी। मेरे साथ एक लड़का और एक महिला भी ठीक होने पर अपने परिवार के पास वापस जा रहे थे। मगर हमें अब अंदाजा था कि पीछे अस्पताल में कुछ मरीज और काफी कर्मचारी आज भी उस उम्मीद में अपने दिन गुजार रहे हैं कि कब ये आपदा खत्म होगी और वो भी अपने परिवार के साथ बैठकर एक कप चाय पी सकेंगे।

"पूजा शाली इंडिया टुडे ग्रुप में रिपोर्टर हैं। उन्होंने कोरोना पॉजिटिव होने पर अस्पताल में बिताए अपने सात दिनों का अनुभव लिखा है।"

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