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गुरुवार, 4 जून 2020

मानवीय मूल्यों का हो रहा है हर पल ह्रास


"देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गई भगवान...
कितना बदल गया इंसान..." 

 प्यास से ब्याकुल जल ग्रहण करती हथिनी... 
भारत में केरल जैसे शिक्षित राज्य में एक गर्भवती हथिनी मल्लपुरम की सड़कों पर खाने की तलाश में निकलती है। उसे अनानास फल खाने के लिए प्रेरित किया जाता है। वह मनुष्य पर भरोसा करके अनानास फल खा लेती है। वह नहीं जानती थी कि उसे पटाख़ों से भरा अनानास खिलाया जा रहा है। पटाख़े उसके मुँह में फटते हैं। उसका मुँह और जीभ बुरी तरह चोटिल हो जाते हैं। मुँह में इतने जख्म हो गए कि घायल हथिनी उन ज़ख्मों की वजह से कुछ खा नहीं पा रही थी। संयोग से उसके पेट में गर्भ था। गर्भ के दौरान भूख अधिक लगती है। उसे अपने पेट में पल रहे बच्चे का भी ख्याल रखना था। लेकिन मुँह में ज़ख्म की वजह से वह कुछ खा नहीं पाती हैभारत में जानवरों से प्रेम करने की प्रेरणा फिल्मों में दिखाया गया है ताकि लोगों में मनुष्यता कायम रहे और वो अपने साथ जानवरों से भी प्रेम करना सीखे। फिल्म हाथी मेरे साथी में हाथी और मनुष्य के प्रेम का चित्रण इसीलिए किया गया कि मनुष्य जानवरों के साथ प्रेम करना सीखे। 

नफ़रत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार, इस झूठ की नगरी से तोड़ के नाता जा प्यारे अमर रहे तेरा प्यार...

घायल हथिनी भूख और दर्द से तड़पती हुई सड़कों पर भटकती रही। इसके बाद भी वह किसी भी मनुष्य को नुक़सान नहीं पहुँचाई, कोई घर नहीं तोड़ी। अपनी ब्याकुलता और प्यास से तड़पते हुए हथिनी पानी की खोज में  नदी तक जा पहुँचती है। पटाखों के बारूद से मुँह में जो आग महसूस हो रही होगी, उसे बुझाने का यही उपाय हथिनी को सूझा होगा। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को जब इस घटना के बारे में पता चलता है तो वे उसे पानी से बाहर लाने की कोशिश करते हैं, लेकिन हथिनी को शायद समझ आ गया था कि उसका अंत अति निकट है और कुछ घंटों बाद नदी में खड़े-खड़े ही वह दम तोड़ देती है। फिर फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के ऑफिसर अपनी टीम के साथ हथिनी के शव को बाहर निकालते हैं और उसका अंतिम संस्कार कराते हैं

दम तोड़ने के बाद हथिनी को बाहर निकालते फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के ऑफिसर
फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के जिस ऑफिसर के सामने यह घटना घटी, उस ऑफिसर के अन्दर मानवीय संवेदनाएं जीवत थी, सो उन्होंने दुःख और बेचैनी में हथिनी के साथ घटित घटना से द्रवित होकर उसके बारे में अपनी फेसबुक पर पूरी दास्तान लिखा। जिसके बाद यह बात मीडिया में आई। पढ़े-लिखे मनुष्यों की सारी मानवीयता क्या सिर्फ मनुष्य के लिए ही हैं ? ख़ैर पूरी तरह तो मनुष्यों के लिए भी नहीं। हमारी प्रजाति में तो गर्भवती स्त्री को भी मार देना कोई नई बात नहीं। इन पढ़े-लिखे लोगों से बेहतर तो वे आदिवासी हैं, जो जंगलों को बचाने के लिए अपनी जान लगा देते हैं। जंगलों से प्रेम करना जानते हैं। जानवरों से प्रेम करना जानते हैं। अधिक पढ़े-लिखे लोगों में मानवीय मूल्यों का जिस तरह ह्रास हो रहा है उसी का परिणाम है कोविड-19 कोरोना संक्रमण। मरने के बाद घर परिवार, नात रिश्तेदार, सगे सम्बन्धी भी आगे नहीं आ रहा है। मृत शरीर को वो लोग भी हाथ लगाने से कतरा रहे हैं जो कल तक उसी जीवित शरीर से प्यार करते थे और उसी की कमाई खाते थे। 

 गर्भवती हथिनी के मृत होने के बाद पेट से निकला उसका बच्चा...
वह ख़बर ज़्यादा पुरानी नहीं हुई है जब अमेज़न के जंगल जले। इन जंगलों में जाने कितने जीव मरे होंगे। ऑस्ट्रेलिया में हज़ारों ऊँट मार दिए गए, यह कहकर कि वे ज़्यादा पानी पीते हैं। कितने ही जानवर मनुष्य के स्वार्थ की भेंट चढ़ते हैं। भारत में हाथियों की कुल संख्या 20000 से 25000 के बीच है। भारतीय हाथी को विलुप्तप्राय जाति के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। एक ऐसा जानवर जो किसी ज़माने में राजाओं की शान होता था आज अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। धरती का एक बुद्धिमान, समझदार याद्दाश्त में सबसे तेज़, शाकाहारी जीव क्या बिगाड़ रहा है हमारा जो हम उसके साथ ऐसा सलूक कर रहे हैं ? कोरोना ने हम इंसानों का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया है। यह बता दिया है कि हमने प्रकृति के दोहन में हर सीमा लाँघ दी है। लेकिन अब भी हमें अक्ल नहीं आई। हमारी क्रूरता नहीं गई। मनुष्य इस धरती का सबसे क्रूर और स्वार्थी प्राणी है। इससे अधिक कुछ कहना ब्यर्थ है। 

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