Breaking News

Post Top Ad

Your Ad Spot

गुरुवार, 4 जून 2020

इतिहास के इस पन्ने को आज पढ़ना, याद करना बहुत जरूरी है...

तियानमेन चौक नरसंहारः जब चीनी सेना ने 10,000 प्रदर्शनकारियों को टैंकों से कुचल डाला था 

वामपंथी दल आज़ादी के बाद विकसित अपनी वह छवि नहीं बचा पाए हैं, जिसमें उन्हें सत्ता का सबसे प्रतिबद्ध वैचारिक प्रतिपक्ष माना जाता था । वे परिस्थितियों के नाम पर कभी इस तो कभी उस बड़ी पार्टी की पालकी के कहार की भूमिका में दिखने लगे। 

सीताराम येचुरी (फोटो: पीटीआई) 

जून 1989 की एक शाम सीताराम येचुरी जेएनयू पहुंचा था
 उसके पास तत्कालीन चीन सरकार द्वारा तैयार की गई एक फिल्म का कैसेट भी था उस फिल्म में यह सिद्ध करने का पैशाचिक प्रयास किया गया था कि 4 जून 1989 को चीन की राजधानी बीजिंग के थ्येनमान चौक में चीन की सेना द्वारा मशीनगनों से भून दिए गए टैंकों से रौंद दिए गए छात्र एवं नागरिक बुर्जुआ अपराधी थे और अमेरिका की सीआईए के एजेंट थे। सीताराम येचुरी उस फिल्म के सहारे जेएनयू के छात्रों को यही समझाने के लिए जेएनयू पहुंचा था लेकिन थ्येनमान चौक पर चीन की सरकार द्वारा सेना से कराए गए उस नरसंहार से पूरा देश तब तक परिचित हो चुका था अतः जेएनयू के वामपंथी लफंगों के खिलाफ़ शेष छात्र एकजुट हो गए थे। छात्रों ने वह फिल्म देखने से मना कर दिया था और येचुरी को मेस में बंद कर के उससे सवाल जवाब शुरू किए थे येचुरी लगभग पूरी रात मेस में छात्रों के कब्जे में रहा और उनके तीखे सवालों को झेलता रहा सवेरे जैसे तैसे वहां से निकल पाया था

चीन का थ्येनमान चौक जहाँ हुआ नरसंहार...

आज उपरोक्त घटना की चर्चा इसलिए क्यों आज 4 जून है और आज उन दस हजार चीनी छात्रों और चीनी नागरिकों की इकतीसवीं पुण्यतिथि है जिन्हें तत्कालीन चीन सरकार ने राजधानी बीजिंग की सड़कों पर मौत के घाट उतार दिया था, लेकिन भारत में चीन के दलाल कम्युनिस्ट उस नरसंहार को सही तथा मौत के घाट उतरे लोगों को गलत सिद्ध करने में जुटे हुए थे। नयी पीढ़ी सम्भवतः न परिचित हो ! इसलिए 31 वर्ष पूर्व बीजिंग की सड़कों पर आज ही के दिन हुए उस नरसंहार का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहा हूं। 4 जून 1989 को चीन की राजधानी बीजिंग में चीन की सरकार ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर बंदूकों और टैंकों से कार्रवाई की थी बीजिंग में कम्युनिस्ट पार्टी ने लोकतांत्रिक सुधारों की मांग करने वाले छात्रों और मजदूरों के प्रदर्शन को कुचलने के लिए टैंक भेजे थे चीन की सेना ने शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे निहत्थे नागरिकों पर बंदूकों और टैंकों से कार्रवाई की, जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए इसे इतिहास में ‘थ्येनमान स्क्वायर नरसंहार’ के तौर पर जाना जाता है


4 जून, 1989 को चीन के थ्येनमान चौक में प्रदर्शन छात्रों का हुआ था,प्रदर्शन 
वर्ष-1989 में कम्युनिस्ट पार्टी के उदारवादी नेता हू याओबैंग की मौत के खिलाफ छात्रों ने थ्येनमान चौक में प्रदर्शन शुरू किया था। याओबैंग देश में लोकतांत्रिक सुधार की बात करते थे। उनके अंतिम संस्कार में करीब एक लाख लोग शामिल हुए थे। उनकी संदिग्ध मौत/हत्या के बाद तीन दिन तक लोगों सड़कों पर जमा थे। बीजिंग में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था थ्येनमान चौक पर 3 और 4 जून, 1989 को सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू हो गए थे चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने प्रदर्शन का निर्दयतापूर्ण दमन करते हुए भयंकर नरसंहार किया था चीनी सेना ने मशीनगनों और टैंकरों के ज़रिये शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे दस हजार से अधिक नि:शस्त्र नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था। थ्येनमान चौक नरसंहार को दुनिया के सबसे नृशंस नरसंहारों में से एक माना जाता है। उस नरसंहार के करीब तीन दशक बाद, आज भी चीन की कम्युनिस्ट सरकार इस विषय पर किसी भी तरह की बहस, उल्लेख वगैरह की मंज़ूरी नहीं देती पाठ्यपुस्तकों एवं मीडिया में घटना के उल्लेख की मंज़ूरी नहीं है और इंटरनेट पर इससे जुड़ी सूचना प्रतिबंधित है। हद तो यह है कि छात्रों का सबसे बड़ा शुभचिंतक होने का दावा करने वाले जेएनयू के वामपंथी लफंगे भी उस नरसंहार की चर्चा को प्रतिबंधित किए हैं

प्रदर्शनकारियों पर बर्बर कार्रवाई को जायज ठहराता रहा है,चीन...

दुनिया भर में भले ही इस नरसंहार की आलोचना होती हो लेकिन चीन की सरकार और प्रशासन 04 जून, 1989 को निर्दोश लोगों पर की गई सैन्‍य कार्रवाई को सही ठहराता है। चीन के रक्षा मंत्री भी साल 1989 में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई को तत्‍कालीन सरकार की सही नीति करार चुके हैं। जनरल वेई फेंगहे ने सिंगापुर में क्षेत्रीय सुरक्षा के एक फोरम में इस घटना को राजनीतिक अस्थिरता करार दिया था। उन्‍होंने कहा था कि तत्‍कालीन सरकार ने इस सियासी संकट को रोकने के लिए जो कदम उठाए थे वो सही थे। जबकि अमेरिका समेत पूरी दुनिया में चीनी सेना की इस बर्बर कार्रवाई की निंदा की जाती है।

निर्दोष लोगों पर चीनी सेना ने दौड़ाए थे,टैंक...

04 जून, 1989 को मानव सभ्‍यता के इतिहास में काले दिन के तौर पर जाना जाएगा। इस दिन कम्युनिस्ट पार्टी के उदारवादी नेता हू याओबैंग की हत्‍या या मौत के विरोध में हजारों छात्र बीजिंग के तियानमेन चौक पर प्रदर्शन कर रहे थे। कहते हैं कि तीन और चार जून की दरम्यानी रात को लोकतंत्र के समर्थकों पर चीन की कम्‍यूनिष्‍ट सरकार ने ऐसा कहर बरपाया जिसने इतिहास में काले अध्‍याय के तौर पर जगह बनाई। चीनी सेना ने निर्दोष लोगों पर फायरिंग की और उन पर टैंक दौड़ाए। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक इसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे जबकि एक ब्रिटिश खुफिया राजनयिक दस्तावेज में कहा गया है कि इस नरसंहार में 10 हजार लोगों की मौत हुई थी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Top Ad

Your Ad Spot

अधिक जानें