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रविवार, 24 फ़रवरी 2019

लोकसभा 2019 के चुनावी रण में बसपा+सपा व काँग्रेस+का मतलब होगा भाजपा का फायदा

पुलवामा हमले के बाद बीजेपी सवार हो गयी है राष्ट्रवाद के घोड़े पर तो विरोधियों को अभी तक नही सूझ रहे कैसे पकड़े नकेल...!!! 
दिल्ली की कुर्सी तक भेजने में महत्त्वपूर्ण यूपी में 2अलग गठबंधनों के चुनावी ताल ठोकने से सेक्युलर वोटों का है,बटना तय...!!! 
राहुल-अखिलेश की जोड़ी को विधानसभा चुनाव में यूपी ने साबित कर दिया था लड़को की जोड़ी...!!! 
बहन प्रियंका के चेहरे व तेवर के भरोसे काँग्रेस की नैया पार करवाना चाहते है काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी...!!! 
राजनीतिक दायरे में अक्सर कही जाने वाली यह उक्ति कि ‘दिल्ली की राह लखनऊ से गुज़रती है’ कई बार सही साबित हो चुकी है।अकेला उत्तर प्रदेश  2014 में भारतीय जनता पार्टी  के शानदार प्रदर्शन के लिए ज़िम्मेदार था व यहीं से पार्टी को लोकसभा में बहुमत मिला। इसलिए आश्चर्य नहीं कि 2019 में भाजपा को पराजित करने की हसरत रखने वाली हर पार्टी यूपी में गठबंधन बनाने में व्यस्त है।
दो कट्टर प्रतिद्वंद्वियों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनावों के लिए अपने चुनावपूर्व गठबंधन की घोषणा की| दोनों ही दल राज्य की 38-37 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।
उन्होंने मात्र दो सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी हैं।कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की अमेठी सीट व यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की रायबरेली सीट। इस तरह से देश की सबसे पुरानी पार्टी को खारिज़ किया जाना पूरे देश में मोदी-विरोधी गठबंधन तैयार करने के पार्टी के प्रयासों के लिए एक बड़ा झटका है।
बसपा नेता मायावती ने कांग्रेस को खारिज करने के फैसले को सही ठहराते हुए देश की सबसे पुरानी पार्टी पर तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का सत्ता में आना भाजपा की वापसी जैसा ही होगा।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में मायावती ने कहा था कि‘हमने यह जानते हुए भी कांग्रेस को शामिल नहीं किया कि आज़ादी के बाद से सिर्फ कांग्रेस ने लंबे समय तक राज किया है।उसके शासन में किसानों और समाज के विभिन्न वर्गों को कष्ट उठाना पड़ा, और भ्रष्टाचार चरम पर था। कांग्रेस की सत्ता में वापसी और भाजपा की सत्ता में वापसी एक जैसी ही बात है… कांग्रेस के साथ तालमेल करने पर वोट उसे स्थानांतरित नहीं होते, बल्कि भाजपा को चले जाते हैं, इसलिए हमने उसे अपने गठबंधन में शामिल नहीं किया है।
यह बयान महत्वपूर्ण है क्योंकि बसपा किसानों और पारंपरिक पिछड़ा वर्गों को लक्षित करेगी, जबकि सपा अपने खुद के वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित करेगी। इन दो वोट बैंकों के निकलने के बाद, कांग्रेस के पास ज़्यादा विकल्प नहीं रह गए हैं।भ्रष्टाचार के आरोपों से मायावती को नुक़सान नहीं पहुंचेगा – जैसा कि ऐसे आरोप कांग्रेस के लिए नुक़सानदेह साबित होते हैं – क्योंकि उनके समर्थक भ्रष्टाचार में ‘दलित की बेटी’ के शामिल होने पर सवाल नहीं करेंगे।
जहां तक सपा की बात है तो कांग्रेस से 2017 के विधानसभा चुनावों में इसका गठबंधन फ्लॉप साबित हुआ था।2012 में सपा (224 सीटें) और बसपा (80 सीटें) को मिली कुल सीटें (324) मानो 2017 में भाजपा के खाते में आ गई थीं,जब पार्टी ने 325 सीटें जीतीं थी।
इससे कहा जा सकता है कि यूपी ने राहुल-अखिलेश दोनों लड़को के साथ को नापसन्द कर दिया था। कांग्रेस की सीटें 2012 से ही लगातार कम हो रही हैं।इसलिए, आश्चर्य नहीं कि सपा और बसपा दोनों के कांग्रेस से किनारा करने के यही ठोस कारण होंगे।यदि 2018 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो भाजपा के खिलाफ़ अकेले लड़ी कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में प्रभावशाली जीत दर्ज़ की।
मध्य प्रदेश और राजस्थान में उसकी जीत ज़्यादा संतोषप्रद नहीं रही, क्योंकि इन दो राज्यों में उसे कहीं अधिक संख्या में सीटें जीतने की उम्मीद थी।
हाल के प्रदर्शन को देखते हुए, कांग्रेस पार्टी का सत्ता में वापसी की उम्मीद करना लाज़िमी है। राहुल गांधी ने गठबंधन की राजनीति में ‘अछूत’ की तरह देखे जाने के अपमान को छुपाने की भरसक कोशिश की, और कहा कि उनके मन में ‘मायावती जी, मुलायम सिंह यादव जी और अखिलेश जी के प्रति अगाध सम्मान है, और वे जो चाहें करने के लिए स्वतंत्र हैं।
भाजपा से लड़ाई को ‘वैचारिक’ बताते हुए उनके पास यह कहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था कि ‘ज़ाहिर है हम यूपी में चुनाव लड़ेंगे, हम अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे।
यूपी में ‘गठबंधन’ राजनीति की हवा का बनना, भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है खासकर प्रियंका वाड्रा गांधी के मैदान में उतरने से क्योकि अल्पसंख्यक वोटरों के सामने दुविधा की स्थिति दोनों गठबंधनों को लेकर पैदा होना लाजिमी है। कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही सीधे मुक़ाबले में चुनावी लाभ मिल चुके हैं।भाजपा ने 2017 में यूपी में बुंदेलखंड की सभी 19 सीटों पर, और पश्चिमी यूपी की 76 में से 66 सीटों पर जीत हासिल की थी।
पिछले विधानसभा चुनावों के प्रदर्शन के आधार पर देखें तो भाजपा के लिए सपा-बसपा गठबंधन का मुक़ाबला करना आसान होगा, क्योंकि मध्य और पूर्वी यूपी में कांग्रेस भी गठबंधन के वोट काटेगी।
साथ ही, इस बात पर भी संदेह है कि इन दोनों दलों के सामाजिक रूप से जागरुक जातिगत मतदाता प्रतिद्वंद्वी रही पार्टी के स्थानीय नेताओं और उम्मीदवारों को स्वीकार करेंगे, भले ही प्रदेश स्तर के नेता सार्वजनिक रूप से परस्पर भाईचारे का प्रदर्शन कर रहे हों।
आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्ण जातियों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण संबंधी संविधान संशोधन विधेयक से गैर एससी-एसटी वोट बैंक के बीच एक प्रभावी संदेश गया है कि मोदी सरकार समाज के अन्य वर्गों (यानि ब्राह्मणों और अन्य सवर्ण जातियों) के गरीबों के हित की भी सोचती है, साथ ही इस विधेयक को जाति आधारित आरक्षण से वर्ग आधारित आरक्षण की ओर कदम बढ़ाने वाले एक मास्टरस्ट्रोक के रूप में प्रचारित किया भी गया है।
हालांकि कांग्रेस ने विधेयक का समर्थन किया है, पर इस वोट बैंक का समर्थन जुटाना उसके लिए कठिन होगा,जो कि विगत दो दशकों में भाजपा की ओर खिसक चुका है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और अन्य मंदिर-समर्थक समूहों के दबाव में, और मंदिर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के अनिर्णय और बारंबार सुनवाई टाले जाने की स्थिति के मद्देनज़र, मोदी आम चुनाव से पूर्व संसद के अंतिम सत्र में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का विधेयक लाने की कोशिश कर सकते हैं ऐसा भी राजनैतिक पंडितो का मानना है।
उधर पिछले ही दिनों पाकिस्तान समर्थित कुख्यात आतंकवादी संघठन जैश-ए-मोहम्मद सरगना ने अपने आत्मघाती हमलावर के जरिये सीआरपीएफ के 44 जवानों को शहीद करवा दिया था।
अब वर्तमान वक़्त में देश की राजनीति के प्रमुख केंद्र बन चुके पुलवामा हमले पर राजनीतिक लाभ लेने की भी सियासत,सियासतदानों द्वारा प्रारम्भ कर दिए गए है।
मोदी और बीजेपी को अपने कट्टर समर्थकों के वोट तो अब थोक के भाव से मिलने में कोई भी संशय नही रह गया है तो वही पाकिस्तान को मिट्टी में मिलने की कामना करने वाले अधिकतर तमाम वर्गों,जातियों को भी इस मुद्दे पर बीजेपी की झोली में जाने से रोकना अब विपक्षियों के लिए कठिन होता जाएगा।ऐसे में अब कांग्रेस,सपा,बसपा,ममता,ओवैसी,महबूबा,अब्दुल्ला, जैसे दल/लोग खुल कर मोदी सरकार पर ये आरोप लगाने से पीछे नही हट रहे है कि लोस चुनाव जीतने के लिए पुलवामा हमला करवाया गया है यही बयान पाकिस्तान भी दोहरा रहा है।
शायद मोदी विरोधी दलों की ये चुनावी रणनीति हो कि राष्ट्रवाद कद मुद्दे पर मोदी अजेय रहेंगे तो देश के एक ऐसे वर्ग को अपने पाले में लाने के लिए पाकिस्तान के सुर में सुर मिला लेने से उन मतों को पाया जा सके।
चूंकि पिछले कुछ चुनावो से पाकिस्तान खुलकर काँग्रेस आदि कुछ पार्टियों को जिताने व मोदी की बीजेपी को हराने के लिए अपील कर देती है।
इसी संदर्भ में दो दिन पूर्व राजस्थान की टोंक रैली में पीएम मोदी ने अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान जी भाषा बोलने का आरोप जड़ देशविरोधी के खाँचे में फिट करने के दाव चले है।
मोदी व बीजेपी पुलवामा हमले के साथ ही अब ज़ोरदार ढंग से विकास के मुद्दे उठाने, नए 10 प्रतिशत आरक्षण और मंदिर निर्माण के वादे, दावे के कारण भाजपा के पक्ष में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बयान अबकी बार 300 पार कितना सच साबित होगा ये लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद स्पष्ट होगा।

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