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मंगलवार, 18 जनवरी 2022

सांप्रदायिक हिंसा कानून विधेयक पारित करके भगवा आतंकवाद की तरह हिन्दुओं को बदनाम करने की यूपीए सरकार में थी, साजिश

सांप्रदायिक हिंसा कानून विधेयक केंद्र और राज्य सरकारों को यह जिम्मेदारी देता है कि वे अनुसूचित जातियों, जनजातियों, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को लक्षित कर की गई हिंसा रोकने के लिए पूरी तरह अपनी ताकत का प्रयोग करें...

सांप्रदायिक हिंसा कानून की असलियत...

यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के आखिरी दो संसद सत्र उसके लिए काफी महत्वपूर्ण और विवादित रहे हैंविवादों के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इनके केंद्र में चुनाव और इसी चुनावी धुरी पर घूमते विधेयक को पास करवाना मुख्य मुद्दा माना जा सकता है उस मानसून सत्र में खाद्य बिल और भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित करवाया तब यूपीए सरकार की अच्छी-खासी फजीहत बन गई थी इस कार्यकाल के आखिरी संसद सत्र (शीतकालीन संसद सत्र) में एक बार फिर यूपीए सरकार एक नए विवादित विधेयक के साथ आई थी फर्क विवादों से नहीं पड़ता, न विधेयक पास कराने से लेकिन इसकी मंशा और आम-हित से जुड़े इन फैसलों को आनन-फानन में पारित कराने की जुगत चुनावी दौड़ में किसी पार्टी के पक्र 5 दिसंबर को संसद सत्र शुरू होते ही ‘सांप्रदायिक हिंसा कानून विधेयक’ पर बहस शुरू हो गई है


हालांकि अब तक यह विधेयक संसद में पेश नहीं किया गया है और पेश करने की तिथि भी तय नहीं है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि खाद्य बिल और भूमि अधिग्रहण विधेयक की तरह इसे भी यूपीए सरकार इस सत्र में हर हाल में पारित करवाना चाहती है क्योंकि यह इस सरकार का आखिरी संसद सत्र है और इसके ठीक बाद लोकसभा चुनाव था उस समय लोकसभा चुनावों के ठीक पहले शीतकालीन सत्र में एक बार इस ‘सांप्रदायिक हिंसा कानून विधेयक’ को इसी प्रकार पारित किए जाने की आशंका मालूम हो रही थी क्योंकि विधेयक के आने से पहले ही इस पर विरोध के स्वर उठने लगे हैं। क्या है, सांप्रदायिक हिंसा कानून ? सांप्रदायिक हिंसा कानून ‘सांप्रदायिक दंगों’ को नियंत्रित करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार के लिए तैयार की गई नियमावली है इसके अंतर्गत अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक वर्ग में हिंसा (दंगे) की स्थिति में इस पर काबू पाने और इसे नियंत्रित करने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों के अलावा इसकी सहभागी इकाईयों पुलिस, न्यायिक व्यवस्था के लिए नियमावली हैं। 


इस विधेयक के आने से पहले ही इससे सहमति और विरोध के स्वर उठने लगे थे भाजपा के उस समय के पीएम इन वेटिंग नरेंद्र मोदी ने साफ शब्दों में इस कानून को लाए जाने का विरोध किया था सपा जैसी कुछ पार्टियां ऐसी भी थीं जो संशोधन के साथ विधेयक को समर्थन देने की बात करती थी। लेकिन इस दिशा में विधेयक की कुछ खास बातें गौर करने लायक थीं सांप्रदायिक हिंसा कानून विधेयक केंद्र और राज्य सरकारों को यह जिम्मेदारी देता है कि वे अनुसूचित जातियों, जनजातियों, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को लक्षित कर की गई हिंसा रोकने के लिए पूरी तरह अपनी ताकत का प्रयोग करें। इस कानून की विशेषता यह है कि इसमें हिंसा को पारिभाषित करने के साथ ही सरकारी कर्मचारियों द्वारा उनके कर्तव्यों की अवहेलना की स्थिति में उनके लिए दंड की स्थिति का प्रावधान किया गया है। मतलब विशेष स्थिति में यह सरकारी अधिकारियों को दंगा रोकने में ढिलाई बरतने पर दंडित भी करता है। विधेयक पर सवाल क्यों ? इस सांप्रदायिक हिंसा कानून विधेयक की कुछ धाराएं अत्यंत ही विवादित हैं जैसे- इस विधेयक की धारा-7 सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति में बहुसंख्यक समुदाय की किसी महिला के साथ अल्पसंख्यक समुदाय के किसी पुरुष द्वारा अगर बलात्कार किया जाता है तो वह अपराध की श्रेणी में नहीं रखता है 


भारतीय संविधान की इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) के तहत यह बलात्कार अपराध जरूर होगा, लेकिन यह हिंसा कानून इस जगह इसे अपराध की श्रेणी से हटा देता है इसका एक और विवादित हिस्सा है। विधेयक की धारा- 8 की नियमावली इस धारा में किसी ‘समूह’ या ‘समूह से संबंध रखने वाले’ व्यक्ति के खिलाफ अगर कोई घृणा फैलाता है तो उसे अपराध की श्रेणी में रखते हुए उस पर कार्रवाई की जाएगी, जबकि अल्पसंख्यकों द्वारा बहुसंख्यकों के विरुद्ध घृणा फैलाने की स्थिति का इस कानून में कोई उल्लेख नहीं हैगौरतलब है कि सांप्रदायिक हिंसा कानून ‘समूह’ शब्द अल्पसंख्यकों के लिए प्रयोग करता है। इस प्रकार इस कानून के साथ विवाद जुड़ता है। यह सांप्रदायिक हिंसा में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के नाम बहुसंख्यकों के अधिकारों का हनन करती है इस कानून में अल्पसंख्यकों को ‘समूह’ से संबोधित किया गया है लेकिन इन अल्पसंख्यकों में मुस्लिम और पिछड़ी जातियां, जनजातियां आती हैं। बहुसंख्यकों में हिंदू संप्रदाय आता है। यहां यह गौर करने वाली बात है कि सांप्रादियक हिंसा जरूरी नहीं कि हमेशा हिंदू बहुल इलाके में ही हो। अगर मुस्लिम बहुल इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा भड़कती है तो उसका जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ हिन्दू ही होगा। चाहे वह सांप्रादियक हिंसा मुस्लिम सम्प्रदायके लोग हे क्यों न फैलाये हों। वर्ष-2013 में कांग्रेस ने वफ्फ कानून बनाया, वैसे सांप्रादियक हिंसा कानून को भी बना देती तो आज हिन्दुओं के लिए किसी दाद, खाज, खुजली से कम नहीं होता


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