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बुधवार, 15 नवंबर 2023

रास नहीं आया पत्रकारों को गिफ्ट पैकेट में आरक्षण ब्यवस्था, दूल्हे के फूफा सरीखे मुंह फुलाकर जताई आपत्ति

प्रतापगढ़ के पूर्व सांसद कुंवर हरिवंश सिंह ने भी प्रेस कांफ्रेस करके पत्रकारों को दीपावली के शुभ अवसर पर खुलेआम एक हजार रूपये देने पर कई पत्रकारों ने जताई थी, आपत्ति... 

दीपावली पर पत्रकारों को रसमलाई गिफ्ट फिर से विवाद में...

प्रतापगढ़। उत्तर प्रदेश के बड़के जिला प्रतापगढ़ में दीपावली पर पत्रकारों को जनप्रतिनिधियों द्वारा दी जाने वाली रसमलाई और गिफ्ट पैकेट के साथ करेंसी में आरक्षण ब्यवस्था लागू करने से कुछ पत्रकार अपने आपको अपमानित महसूस किया। त्योहारों पर गिफ्ट और नगदी दिये जाने की परम्परा पुरानी है। परन्तु बदले जमाने के इस अर्थवादी युग में सबको संतुष्ट नहीं किया जा सकता। 


जनप्रतिनिधियों और पत्रकारों का सम्बंध चोली और दामन की तरह होता है। दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं। पहले गिने चुने लोग ही पत्रकारिता क्ष्रेत्र में होते थे, जिससे उनकी आवभगत बहुत अच्छी तरह से हो जाती थी। अब संख्या इतनी अधिक हो चुकी है कि जिला मुख्यालय पर कितने पत्रकार हैं, इसकी गणना न तो सांसद के पास है और न ही विधायक के पास है। ऐसे में जब संख्या अधिक हो जाती है तो सबको एक जैसा सम्मान दे पाना भी मुश्किल हो जाता है। 


दीपावली और होली सहित नववर्ष पर विशेष रूप से सांसद और विधायक और उनके प्रतिनिधियों व मीडिया प्रभारियों द्वारा पत्रकारों को गिफ्ट और करेंसी भेंट की जाती है। विवाद तब शुरू होता है, जब बड़े बैनर के ब्यूरो प्रभारियों को उनके दफ्तर में गिफ्ट और करेंसी सम्मान पहुँचा कर भेंट दिया जाता है। ऐसे में अन्य पत्रकार फोन करके विधायक और सांसद के यहाँ जाने की ब्यवस्था में लग जाते हैं। यहीं से ब्यवस्था में गड़बड़ी शुरू हो जाती है। ब्यवस्था में दो फाड़ होने से समस्या उत्पन्न हो जाती हैं।


गिफ्ट प्राप्त करने में दोहरा मापदंड स्वयं पत्रकारों द्वारा अपनाया जाता है। जब विधायक और सांसद कुछ चुने हुए लोगों को उनके घर या दफ्तर पर गिफ्ट पहुँचा देते हैं तो अन्य पत्रकारों को विधायक और सांसद अथवा उनके प्रतिनिधि या मीडिया प्रभारी से सम्पर्क कर गिफ्ट की डिमांड नहीं करनी चाहिए। एक पत्रकार का स्वाभिमान वहीं मर जाता है, जब वह अपना आत्म सम्मान गिरवी रखकर विधायक और सांसद के घर या उनके प्रतिष्ठान पर पहुँच कर गिफ्ट लेने की इच्छा ब्यक्त कर देता है।


सही बात तो यह है कि गिफ्ट जब सम्मान से मिले तो वह गिफ्ट रहता है, परन्तु जब किसी को मजबूर होकर किसी को कुछ देना पड़े तो वह गिफ्ट नहीं रह जाता। पहले जब पत्रकारों की संख्या कम हुआ करती थी और उनमें स्वाभिमान जीवित था, तब ऐसी समस्या नहीं उत्पन्न होती थी, परन्तु बदलते दौर में सबको धन की जरूरत है। बस इसी समस्या से वर्तमान जनप्रतिनिधि हैरान व परेशान हैं। कैसे सबको एक नजरिये से देखे ? गिफ्ट व नगदी बाँटने में भी आरक्षण ब्यवस्था लागू हो चुकी है। इस बार दीपावली पर तीन तरह की ब्यवस्था बनाई गई। 


विधायक के यहाँ एक किलो रसमलाई और 1000 रुपये श्रेणी "ए" के पत्रकारों को दिया गया। श्रेणी "बी" के पत्रकारों को एक किलो रसमलाई के साथ 500 रुपये दिया गया। तीसरे श्रेणी "सी" के पत्रकारों को एक किलो रसमलाई और 200 रुपये दिया गया। कुछ स्वयंभू स्वाभिमानी पत्रकार उस वक्त नाराज हो गए जब उन्हें पता चला कि विधायक के प्रतिनिधि ने उन्हें थर्ड क्लास की ब्यवस्थामें रख दिया है। कुपित पत्रकारों ने प्रतापगढ़ विधायक राजेन्द्र मौर्य के प्रतिनिधि अरुण मौर्य से अपनी नाराजगी जताकर उनका गिफ्ट और करेंसी उन्हें वापस कर दिया। 


स्वयंभू स्वाभिमानी पत्रकारों का कहना है कि विधायक के प्रतिनिधि अरुण मौर्य ने पत्रकारों का अपमान किया। जिस तरह शादी विवाह में कन्या पक्ष के लोग सुबह बारातियों को मिलना देते हैं। ठीक उसी तरह विधायक प्रतिनिधि अरुण मौर्य ने सबके सामने पत्रकारों की क्राइटेरिया तय कर वरिष्ठ पत्रकारों को एक किलो रसमलाई और 200 रुपये नदगी देकर उन्हें अपमानित करने के प्रयास किया। दीपावली के शुभ अवसर पर विधायक प्रतापगढ़ के यहाँ विवाद का यही असली वजह थी। जबकि नपाध्यक्ष हरी प्रताप सिंह इन सबसे फुर्सत में रहते हैं। 


सांसद प्रतापगढ़ संगम लाल गुप्ता के यहाँ भी यही ब्यवस्था थी, परन्तु उनके यहाँ गिफ्ट में एक सेट कपड़ा था और करेंसी में 5000 रुपये से लेकर 3000 रुपये व 2000 रुपये दिया गया था। उनके  यहाँ करेंसी बन्द लिफाफे में थी। इसलिए तत्काल कोई जान न सका कि किसे क्या मिला ? 2000 रुपये पाने वाला भी सीना ठोंक कर कह सकता था कि उसे 5000 रुपये मिले हैं। विधायक के यहाँ यही चूक हो गई। चूँकि सांसद संगम लाल गुप्ता अब परिपक्व हो चुके हैं। उनका राजनीतिक कार्यकाल 7 वर्ष का हो चुका है, जबकि विधायक में अनुभव की कमी है। उन्हें सिर्फ दो साल का ही अनुभव प्राप्त है।


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