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बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

आईये जाने नियमित जमानत, अंतरिम जमानत और अग्रिम जमानत में अंतर 

नियमित जमानत ( Regular Bail)किसे कहते हैं...

सीआरपीसी की धारा- 437 और 439 के तहत नियमित जमानत दी जाती है...

"नियमित जमानत" एक ऐसी जमानत है, जिसे गिरफ्तारी के बाद अदालत द्वारा किसी व्यक्ति को दी जाती है। जब कोई भी व्यक्ति गैर-जमानती अपराध और संज्ञेय करता है तो पुलिस उसे हिरासत में ले लेती है। पुलिस हिरासत की अवधि जब समाप्ति हो जाती है। अगर किसी जुर्म में किसी अपराधी को गिरफ्तार किया जाता है तो वो साधारण या नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। सीआरपीसी की धारा- 437 और 439 के तहत नियमित जमानत दी जाती है। पुलिस हिरासत की अवधि, यदि कोई हो, समाप्त होने के बाद आरोपी को जेल भेजा जाना चाहिए। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि नियमित जमानत अदालत में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए हिरासत से एक अभियुक्त की रिहाई है। इसलिए कहा सकता है कि नियमित जमानत मुकदमे में उस व्यक्ति को अपनी मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए हिरासत से अभियुक्त की रिहाई हो सकती है।  
 
अंतरिम जमानत (Anticipatory Bail)किसे कहते हैं... 

अंतरिम जमानत कुछ शर्तों के साथ दी जाती है, जिन्हें पूरा करने की आवश्यकता होती है...

"अंतरिम जमानत" कुछ समय के लिए जमानत दी जाती है। यह किसी भी आवेदन की पेंडेंसी के दौरान अदालत द्वारा दी जाती है। यह किसी भी आवेदन की पेंडेंसी के दौरान अदालत द्वारा दी जाती है या यह तब तक दी जाती है, जब तक कि नियमित या अंतरिम जमानत (एंटीसिपेटरी बेल) के लिए आपका आवेदन न्यायालय के सामने लंबित नहीं होता है। अंतरिम जमानत कुछ शर्तों के साथ दी जाती है, जिन्हें पूरा करने की आवश्यकता होती है। बता दें कि जमानत की अवधि समाप्त होते ही आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार कर लिया जा सकता है। अंतरिम जमानत रद करने की कोई विशिष्ट प्रक्रिया नहीं है। अगर अंतरिम जमानत की समय समाप्त हो जाती है तो इसे बढ़ाया भी जा सकता है।
 
Interim Bail क्या होती है और किन परिस्थितियों में दी जाती है ये किसी भी व्यक्ति को ​किसी भी अपराध के लिए दोषी साबित होने तक उसके निर्दोष होने की अवधारणा को जमानत के माध्यम से उजागर किया जाता है, जो भारतीय कानूनी प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए अंतरिम जमानत तब दी जाती है, जब अदालत निश्चित है कि ऐसा करने से आरोपी को अनुचित रूप से कैद या हिरासत में लेने से रोका जा सकेगा। हमारे देश के संविधान मेंं व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है और उसे मौलिक अधिकार का दर्ज़ा दिया गया है। आपराधिक कानून के अंतर्गत जमानत का मूल उद्देश्य व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बनाए रखना ही है। जमानत का सीधा सा मतलब एक आश्वासन होता है कि जब भी आवश्यक होगा, तब आरोपी अदालत में पेश होगा और मामले की जांच और सुनवाई में पूरा सहयोग करेगा।
 
किसी भी व्यक्ति को ​किसी भी अपराध के लिए दोषी साबित होने तक उसके निर्दोष होने की अवधारणा को जमानत के माध्यम से उजागर किया जाता है, जो भारतीय कानूनी प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए अंतरिम जमानत तब दी जाती है, जब अदालत निश्चित है कि ऐसा करने से आरोपी को अनुचित रूप से कैद या हिरासत में लेने से रोका जा सकेगा। अंतरिम जमानत हमारे देश की न्यायपालिका का एक ऐसा नियम है, जिसे किसी विशेष धारा या अधिनियम के तहत परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन देश की अदालतों द्वारा कई मामलों में आरोपी को अंतरिम जमानत दी जाती है।
 
अंतरिम जमानत का आधार...

जब आरोपी द्वारा न्यायालय के समक्ष दायर किया गया कोई आवेदन लंबित हो, इसमें डिस्चार्ज, नियमित जमानत या अग्रिम जमानत के लिए आवेदन शामिल है। अग्रिम जमानत की अर्ज़ी पर सुनवाई को यदि अदालत द्वारा टाल दिया जाता है, तो इस स्थिति में भी अंतरिम जमानत दी जा सकती है। यह जमानत तब भी दी जाती है, जब अदालत को ऐसा लगे कि आरोपी को जेल में या हिरासत में रखने का कोई पुख्ता कारण नहीं है। आरोपी को स्वास्थ्य कारणों से परेशानी है और उसके उपचार की नियमित जरूरत हो सकती है, जिसके लिए उसे जमानत देना अनिवार्य है। किसी कैदी के किसी निकट रिश्तेदार की मृत्यु होने की स्थिति में या बीमार होने की स्थिति में भी दी जाती है, अंतरिम जमानत। आरोपी या किसी कैदी के निकट रिश्तेदार की शादी के मौके पर भी अदालते अंतरिम जमानत देती रही है।
 
अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail)किसे कहते हैं... 

अग्रिम जमानत स्वीकार करने की शक्ति केवल सेशन न्यायालय एवं उच्च न्यायालय को हैं...

अग्रिम जमानत एक ऐसी जमानत है जो किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी से पहले भी दी जाती है। भारतीय कानून में गिरफ्तारी के बाद ही नहीं अपितु गिरफ्तारी के पहले भी जमानत दिए जाने के प्रावधान है। दंड प्रक्रिया संहिता में ऐसी जमानत देने की शक्ति सेशन न्यायालय और उच्च न्यायालय को दी गई है। यह दोनों न्यायालय किसी अपराध में आरोपी को गिरफ्तारी के पूर्व ही जमानत दे सकते हैं। इस प्रावधान का मूल उद्देश्य असत्य रूप से मुकदमे में फंसाए गए आरोपी को जेल की पीड़ा से बचाना है। अगर न्यायालय किसी मुकदमे में यह पाता है कि अभियुक्त को गलत और असत्य आधारों पर फंसा दिया गया है और मामले में प्रथम दृष्टया कोई आधार दिखाए नहीं देते हैं तब वह जमानत दे सकता है। इस आलेख के अंतर्गत अग्रिम जमानत से संबंधित कानून पर जानकारी प्रस्तुत की जा रही है।


अग्रिम जमानत अत्यधिक प्रचलित शब्द है। इसे 'प्रत्याशित' अथवा 'आशयित' जमानत भी कहा जाता है। अग्रिम जमानत स्वीकार करने की शक्ति केवल- (i) सेशन न्यायालय एवं (ii) उच्च न्यायालय को हैं। यह एक असाधारण शक्ति है, जिसका उपयोग आपवादिक मामलों में किये जाने की अपेक्षा की जाती है। दण्ड प्रक्रिया संहिता- 1973 की धारा- 438 में अग्रिम जमानत के बारे में प्रावधान किया गया है। उपधारा (1) में यह कहा गया है कि जब किसी व्यक्ति के पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसे गैर-जमानती अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जा सकता है तो वह इस धारा के अन्तर्गत उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को ऐसा निदेश जारी करने के लिए आवेदन कर सकता है कि ऐसी गिरफ्तारी की दशा में उसे जमानत पर छोड़ दिया जाए और न्यायालय अन्य सभी बातों के साथ-साथ निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए या तो प्रार्थनापत्र को तत्काल निरस्त कर सकेगा या अग्रिम जमानत प्रदान करने हेतु एक अन्तरिम आदेश पारित कर सकेगा।

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