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जैसे अपने सिर की टोपी सही कर रहे हैं, वैसे ही पार्टी सही करना चाहते हैं,सपा सुप्रीमों अखिलेश... |
लखनऊ: सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चुनावों में लगातार मिल रही हार से सबक लेते हुए कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि पार्टी में आपसी गुटबंदी नहीं चलेगी। लोकसभा चुनाव के लिए कार्यकर्ता अभी से जुट जाएं। कार्यकर्ताओं को एक साथ, ईमानदारी से काम करने के निर्देश दिया। लोकसभा चुनाव में कोई भी चूक नहीं होनी चाहिए। भाजपा की विफलताओं को लोगों के बीच में लेकर जाएं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान पिछले चुनावों में हार पर मंथन करते नजर आए।
इस मंथन के जरिए अगले चुनाव यानी 2024 में जीत का गणित जोड़ने की कोशिश की गई। साल 2024 में संभावित लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपने बूते चुनाव में उतरने का ऐलान भी किया। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने रविवार को कोलकाता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समापन के बाद कहा कि यहां जब कार्यक्रम कर यूपी में लौटे हैं तो सपा आगे बढ़ी है। पार्टी की बैठक केवल इस 'शगुन' तक सीमित नहीं रही। पिछले तीन चुनावों की हार के बिंदु भी विस्तार से मथे गए। अतीत की गलतियों से सबक तलाशे गए।
नई रणनीति के साथ 2024 में 2004 के अपने रिकॉर्ड को तोड़ने का लक्ष्य तय किया गया, जब पार्टी ने एक उपचुनाव सहित सर्वाधिक 36 लोकसभा सीटें जीती थीं। लगातार मिल रही हार के बीच जीत का रास्ता तय करने के लिए हौसले का टॉनिक नेता-कार्यकर्ता दोनों के लिए जरूरी है। इसलिए, अखिलेश ने हार से उपजी नाउम्मीदी में छुपी उम्मीदों को भाषण में खास तौर पर जगाया।अखिलेश यादव ने बताया कि साल 2017 के चुनाव में आंतरिक परिस्थितियों के अलावा कांग्रेस को ज्यादा सीटें देना नुकसान की वजह बना। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में हमारे गठबंधन धर्म निभाने के बाद भी बसपा ने साथ छोड़ा।
बसपा से सपा में आए राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज ने तो यहां तक आरोप लगाया कि गठबंधन के बाद भी बसपा कार्यकर्ताओं को ऊपर से साथ न देने के निर्देश थे। अखिलेश ने 2022 में नजदीकी अंतर से हारने वाली सीटों और बूथों का आंकड़ा रखा, जहां थोड़ी मेहनत से नतीजे बदल सकते थे। इसलिए, हर बूथ पर मेहनत और मौजूदा गठबंधन दलों के साथ ही चुनाव लड़ने का फैसला किया गया, जिससे सीटें 'जाया' न हों। सपा के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव ने सुरजीत सिंह बरनाला की पुरानी सलाह याद दिलाई कि गठबंधन तो सीट मांगेगा ही, पर जो सीट हम जीत सकते हैं, उस पर कोई और क्यों लड़े ? इसलिए साल 2024 में सीटों के बंटवारे में दलों से 'केमिस्ट्री' से अधिक जमीनी 'मैथ्स' पर ध्यान देना होगा।
कांग्रेस से दलित वोटबैंक कटा तो बसपा में शिफ्ट हुआ, भाजपा के मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने उसमें भी सेंधमारी कर बसपा वोट बैंक को 35 प्रतिशत अपने पाले में कर लिया। अब दलित वोटबैंक में सपा मुखिया अखिलेश यादव भी नजर गड़ाएं हैं। उसके लिए उन्होंने साल- 2021 में बनी बाबा साहेब वाहिनी को फ्रंटल संगठन का दर्जा देकर नीचे तक विस्तार करने की दिशा में काम कर रहे हैं। दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव- 2022 में जीत के लिए पार्टी पार्टी पोल-खोल अभियान चलाएगी। हर महीने सरकार के वादों-दावों पर सवाल होंगे। मसलन, 34 लाख करोड़ के निवेश के दावे कहां तक पहुंचे ? ऐसे ही दूसरे मुद्दे चुने जाएंगे।
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