भतीजे असद के एनकाउंटर पर बोला अशरफ,अल्लाह की चीज थी,अल्लाह ने ले लिया... |
एसटीएफ ने गुरुवार को झांसी में माफिया अतीक अहमद के पांच लाख के इनामी बेटे असद को एनकाउंटर में ढेर कर दिया। असद के एनकाउंटर के बाद अतीक के मुहल्ले चकिया के लोगों में शुक्रवार को गम और गुस्सा दोनों नजर आया। महिलाएं जहां बुर्के में मातमपुर्सी के लिए बैठी रहीं, वहीं पुरुषों ने एसटीएफ की कार्रवाई पर आक्रोश जाहिर किया। चकिया स्थित अतीक के पुश्तैनी मकान पर पहुंचे शम्सुलरहमान का कहना था कि असद के गुनाहों का फैसला कोर्ट के ऊपर छोड़ना चाहिए था। एसटीएफ ने जो किया वह न्याय नहीं है। असद कोई पेशेवर अपराधी नहीं था कि उसे इस तरह मुठभेड़ में मारा गया। बुजुर्ग उबैद अहमद का कहना था कि किसी को मजहब के नाम पर इस तरह की सजा नहीं दी जानी चाहिए। असद को पकड़ा जा सकता था। उसने गुनाह किया था तो उसे कोर्ट के जरिए सजा दिलाई जानी चाहिए थी। असद को उसके गुनाहों की सजा दिलाने की प्रक्रिया न अपनाया जाना अफसोसजनक है।
जावेद अंसारी ने कहा कि जिस तरह पुलिस और एसटीएफ बर्ताव कर रही है, उससे मानवाधिकारों की बलि चढ़नी तय है। उनका कहना था कि अभी असद बहुत ही कम उम्र का था। किसी को गोली मारने में पहली बार उसका नाम आया था। उसे सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए था। असद को पकड़कर पूछताछ की जानी चाहिए थी और उसे जेल भेजकर उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जाना चाहिए था। सुल्तान हैदर ने भी एसटीएफ की कार्रवाई को अनुचित बताया। उनका कहना था कि इसी तरह होता रहा तो लोगों का कानून-व्यवस्था से भरोसा उठ जाएगा। काश ! इन बयानबाज बुजुर्गों को ऐसी सद्बुद्धि पहले आती, जब असद अपराध की दुनिया में प्रवेश कर रहा था। स्वयं पिता अतीक अहमद और चचाजान अशरफ से मिलकर अधिवक्ता उमेश पाल की हत्या का जिस अंदाज में प्लान बनाया गया और उसे फ़िल्मी अंदाज में अंजाम दिया गया, वह पेशेवर अपराधी से कम भी न था।
जेल में टहलते हुए कटी अली की रात...
नैनी सेंट्रल जेल में बंद माफिया अतीक अहमद का बेटा अली अहमद अपने भाई असद के एनकाउंटर के बाद से ही परेशान है। अली अपने परिवार के बारे में जानने के लिए दिनभर बंदी रक्षकों से सवाल पूछता रहा। बेचैनी में अली ने गुरुवार को पूरी रात टहलते हुए काटी। शुक्रवार को अली रोजा रहा और जुमे की नमाज भी अदा की। भाई असद के एनकाउंटर में मारे जाने की सूचना जैसे ही अली के पास पहुंची तो वह परेशान हो गया। नैनी जेल में बंद बड़ा बेटा अली पिता अतीक और चाचा अशरफ से मिलने के लिए बंदी रक्षकों से गिड़गिड़ाता रहा। जब उसे पता चला कि अतीक और अशरफ को पुलिस पूछताछ के लिए अपने साथ ले गई है तो उसकी बेचैनी और बढ़ गई। वह रात भर बैरक में टहलता रहा। इस दौरान उसने धार्मिक पुस्तकें भी पढ़ीं। उसकी बेचैनी की वजह साफ़ साफ़ दिख रही थी कि भाई असद की तरह कहीं पिता अतीक और चचाजान अशरफ को भी योगी बाबा की पुलिस कहीं मिट्टी में न मिला दें।
शुक्रवार सुबह अली असद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए बेचैन था। अली जानना चाह रहा था कि उसके भाई के शव को कौन सुपुर्देख़ाक कर रहा है ? सेल के बाहर मौजूद बंदी रक्षकों से अली लगातार सवाल पूछता रहा। सेल में पहुंचे जेल अधिकारियों से भी अली ने परिवार के बारे में जानना चाहा। वरिष्ठ जेल अधीक्षक रंग बहादुर ने बताया कि अली अहमद की ओर से किसी तरह का कोई आवेदन नहीं आया है। उसे कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में रखा गया है। आज अतीक अहमद का परिवार जिस दुःख और दर्द के साये में जी रहा है, उसका जनक भी वही लोग हैं। जब मनुष्य की परिस्थिति उसके विपरीत होती है तो वह बहुत मायूस होकर कहता है कि मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है ! पर अगली लाइन भूल जाता है कि जनक भी वही होता है। चूँकि आज जो उसके सामने मुंह फाड़कर परिस्थिति खड़ी है, उसे वही पैदा किया है।
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