सबसे अहम विभाग जो विवादों का कहा जाता है,जन्मदाता... |
यूं ही नहीं पकड़े जा रहे लेखपाल, इनका रेट भी फिक्स है। आय जाति निवास की रिपोर्ट लगाने में भी पांच सौ से पांच हजार तक रेट तय है। पैमाइश के लिऐ बिना पांच हजार दिऐ इनकी बाइक स्टार्ट नहीं होती है। मृत परिवार का वरासत दर्ज करने में भी इनका पांच से दस हजार का वारा न्यारा होता है। सरकारी चकरोड नापता हो तो हर कब्जेदार से इनकी वसूली निर्धारित है। बरसात या तुफान का कहर हुआ तो नुकसान की रिपोट में भी इनकी राशि तय है। न देने पर पात्र ब्यक्ति को अपात्र बना देने में इन्हें कोई परेशानी नहीं होती।
राजस्व विभाग के अधिकारी व कर्मचारी रिश्वत न लें तो इनके पेट में हलचल मची रहती है। इनका हाजमा गड़बड़ हो जाता है। घूंस लेना और मांगना मानों इनका जन्मसिद्ध अधिकार हो ! इसीलिये एक लेखपाल अपने अधीन दो मुंशी रखते हैं और इनकी तनख्वाह घूंस की कमाई पर ही निर्भर होती है। राजस्व विभाग की बात करें तो ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार इस कदर ब्याप्त है कि नीचे के कर्मचारियों की शिकायत उच्चाधिकारियों से कोई हिम्मत करके करता भी है तो उच्चाधिकारी उसी भ्रष्ट के आकंठ डूबे अपने कर्मचारी का पक्ष लेते हुए उसे क्लीन चिट दे देता है। मानों वह भ्रष्ट कर्मचारी हरिश्चंद्र की खानदान का है।
सच बात कही जाए तो राजस्व विभाग की सबसे निचली पायदान पर लेखापाल आते है और इन लेखपालों के मुंह में खून और खून से सनी बोटी की इतनी मिठास लग गयी है कि इन्हें दूध का स्वाद अब अच्छा ही नहीं लगता। गुलाबी और हरी नोट दिए वगैर इनका बस्ता ही नहीं खुलता है। साल भर में राजस्व लेखपालों पर जिले में घूस लेते कई मामले वायरल हुए। मजे की बात तो यह है कि लेखपाल खुद रिश्वतखोरी न करके अपनी सहभागिता में घूस की रकम लेने के लिए अपने साथ क्षेत्रीय बिचौलिए रखते हैं जो लेखपालों का साया बनकर गाँव के गरीब लोगों का शोषण जमकर किया जाता है। किसी की हिम्मत नहीं कि इन भ्रष्ट लेखपालों के खिलाफ आवाज उठा सके।
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