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बुधवार, 29 मार्च 2023

माफिया मुख्तार के बाद जमींदोज हुआ माफिया अतीक का किला, चार दशक से कायम था, यूपी में आतंक का साम्राज्य

चार दशक बाद खत्म हुआ अतीक का आतंक... 

योगीराज में बाहुबलियों के आतंक का होगा विनाश...

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह अधिवक्ता उमेश पाल उर्फ कृष्ण कुमार की दिनदहाड़े ताबड़तोड़ गोलियां और बम बरसाकर हत्या कर दी गई। हत्याकांड के बाद यूपी में कानून-व्यवस्था को लेकर भीषण शोर मचा था। इसके बाद जरायम की दुनिया बेताज बादशाह माफिया अतीक अहमद सबकी नजर में आ गया था। पुलिस और अभियोजन की लगातार हो रही मजबूत पैरवी का परिणाम एक बार फिर सामने आया है।


जरायम की दुनिया का दूसरा बेताज बादशाह माफिया मुख्तार अंसारी को 21 सितंबर, 2022 को चार दशक के बाद पहली बार साल 2003 में सूबे की राजधानी लखनऊ जेल में जेलर को धमकी देने के मामले में सजा सुनाई गई थी। इसके बाद मुख्तार को दो अन्य मामलों में सजा सुनाई गई है। ऐसी ही दशा माफिया अतीक अहमद की भी हुई है। चार दशक से ज्यादा खौफ का दूसरा नाम अतीक था। अतीक को हुई उम्रकैद की सजा से अन्य माफियाओं को सीधा संदेश गया है। मुख्तार अंसारी के बाद अतीक अहमद भी अब कभी चुनावी रण में उतरकर माफिया होने के बलबूते सांसद या विधायक नहीं बन पाएगा।


अतीक अहमद के खिलाफ हत्या समेत अन्य संगीन धाराओं में दर्ज मुकदमों में अभियान के तहत अभियोजन के कदम बढ़ रहे हैं। मजबूत पैरवी के बल पर हत्या की संगीन घटनाओं में अतीक को फांसी की सजा भी सुनिश्चि कराई जा सकती है। चार दशक से अधिक समय से कानूनी खेल में पुलिस को धता बताते आ रहे अतीक के लिए लगभग डेढ़ माह पूर्व सुप्रीम कोर्ट का इनकार वह बड़ा कारण था, जिसके बाद यह लगभग तय हो गया था कि अतीक के लिए अब जेल से बाहर आना नामुमकिन होगा। उमेश पाल के अपहरण के मामले में अतीक ने अभियोजन पक्ष के दो गवाहों के फिर से बयान कराने का रास्ता खोल लिया था, लेकिन उसे पता नहीं था कि बीते छह वर्षों में पुलिस पैरवी की बदली चाल-ढाल उसके इरादों को कुचलने के लिए काफी है।


17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अतीक पक्ष की सभी दलीलों को दरकिनार करते हुए एमपी-एमएलए कोर्ट के 18 दिसंबर, 2022 को दिए गए उस आदेश को निरस्त कर दिया था, जिसमें अभियोजन पक्ष के दो गवाहों के फिर से बयान कराए जाने की अनुमति दी गई थी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के 16 जनवरी को दिए गए निर्णय पर 17 फरवरी को मुहर लगाते हुए विचारण न्यायालय को छह सप्ताह के भीतर विचारण पूर्ण करने का आदेश दिया था। इसके बाद ही अतीक व उसके सहयोगियों का काउंट डाउन चालू हो गया था। कल मंगलवार को वह दिन आ गया, जब अतीक का नाम सजायाफ्ता मुल्जिमों में शामिल हो गया।


इस तरह चलता रहा कानूनी दांवपेच...


उमेश पाल के अपहरण के मामले को शुरुआत से देखा जाए तो इसमें अतीक अहमद पक्ष का वह कानूनी दांवपेच सामने आते हैं, जिसकी वजह से माफिया अतीक अब तक सजा से दूर था। उमेश पाल के अपहरण के मामले में धूमनगंज थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी केके मिश्रा ने 26 अक्टूबर, 2007 को आरोपितों के विरुद्ध पहला आरोप पत्र दाखिल किया था। इसके बाद 28 मई, 2011 को दूसरा आरोप पत्र दाखिल किया गया। 27 अक्टूबर, 2007 को कोर्ट ने आरोपपत्र का संज्ञान लिया। इसके नौ वर्ष बाद 3 सितंबर, 2016 को आरोपितों के विरुद्ध आराेप तय हुआ था। इसके बाद गवाहों का परीक्षण चलता रहा और 14 नवंबर, 2022 को बहस शुरु हुई थी। अतीक पक्ष पिछले कुछ वर्षों से अंतिम बहस न शुरु हो, इसके लिए अलग-अलग पैतरे चल रहा था। इसी कड़ी में अतीक पक्ष ने अभियोजन पक्ष के दो गवाहों के फिर से बयान कराए जाने की मांग की थी, जिसे एमपी-एमएलए कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। इसके विरुद्ध सरकार हाईकोर्ट गई थी, जिसके बाद बाद बाजी पलटी।


अतीक का खौफ इतना था कि मुकर जाते थे,सरकारी गवाह...


चार दशक से आतंक का पर्याय रहे माफिया अतीक अहमद का खौफ इतना था कि कोर्ट में उसके खिलाफ सरकारी गवाह तक खड़े नहीं हो पाते थे। यही वजह है कि बीते 43 वर्षों में अतीक अहमद के खिलाफ एक के बाद एक हत्या, जानलेवा हमला, अपहरण जैसी संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज होते गए। कुल 100 मुकदमे दर्ज होने के बाद अब तक अतीक को एक भी मामले में सजा नहीं हो सकी थी। वर्ष- 1979 में हत्या कर जरायम की दुनिया में कदम रखने वाले अतीक ने समय के साथ अपने माफिया होने के बल पर सियासी गलियारों तक  धमक जमा ली थी। 


सियासी दांवपेंच की वजह से अतीक का आतंक का क्षेत्र में बना रहा, दबदबा...


सांसद और विधायक भी बने। सियासत का दबदबा ऐसा बढ़ा कि वर्ष- 2001 और 2002 में सरकार ने अतीक के खिलाफ तीन मुकदमे वापस भी ले लिए थे। 14 मुकदमों में अतीक के खिलाफ गवाह ही नहीं टिक सके। इस मामले में गवाहों के मुकरने और साक्ष्यों के अभाव में अतीक बरी हो गया। छः ऐसे मुकदमे भी रहे, जिनमें पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट लगा दी। जबकि एक मामले में पुलिस ने कहा कि मुकदमे में अतीक को गलत नामजद किया गया। पांच मामलों में अभी विवेचना चल रही है। समय सीमा पूरी होने की वजह से गुंडा एक्ट के चार मामले समाप्त हो गए थे। वर्ष- 1992 में दर्ज शस्त्र अधिनियम के एक मामले में पुलिस समय सीमा के भीतर आरोप पत्र भी दाखिल नहीं कर सकी थी। बता दें कि माफिया अतीक अहमद के खिलाफ वर्तमान में कोर्ट में 49 मुकदमे विचाराधीन हैं। इनमें से 10 ऐसे मामले भी हैं, जिनमें अभी आरोप तय होना बाकी है। अतीक के खिलाफ दर्ज हत्या के 14 मुकदमों में पांच में वह दोषमुक्त हो चुका है।


एक वर्ष में यह माफिया हुए सजायाफ्ता...


माफिया मुख्तार अंसारी, माफिया अतीक अहमद, बाहुबली विजय मिश्रा, ध्रुव सिंह उर्फ कुन्टू सिंह, योगेश भदौड़ा, अमित कसाना, एजाज, अजीत उर्फ हप्पू, आकाश जाट, अनिल दुजाना, मुलायम यादव, राजू मुहम्मद उर्फ चाैधरी, सलीम, सोहराब व रुस्मत ऐसे माफिया रहे जिन्हें योगी सरकार में सजायाफ्ता की सजा मिली और उत्तर प्रदेश के अंदर माफियाओं के अंदर खौफ पैदा हुआ। दर्शल राजनीतिक गलियारे से इन माफियाओं को शासन सत्ता का प्रशय मिलता रहा और ये माफिया उसी संजीवनी से अभी तक अपना साम्राज्य बढ़ाते रहे। परन्तु योगीराज में अब माफियाओं को मिट्टी में मिलाने का कार्य शुरू हो चुका है। माफियाओं की बोलती बंद हो चुकी है। सजा मिल जाने के बाद उनका राजनीतिक भविष्य अंधकारमय होता नजर आ रहा है। 


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