आधुनिक समाज में बहुत परिवर्तन हो चुका है, शुरुआत कहां से हुई यह कहा पाना मुश्किल है, कहीं न कहीं आज का युवा वर्ग कम समय में अधिक धनवान बनने की लालशा के चक्कर में शार्टकट रास्ते अपनाकर बड़े से बड़ा अपराध करने के हो चुके हैं, आदी...
एक समझदार और पढ़ा लिखा वर्ग इन घटानाओं को अंजाम दे रहा था। ऐसा करने के पीछे इन लोगों की वजह गरीबी या कोई आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि अपने शौक पूरे करने और अय्याशी पूरा करना था और यह कोई पहली घटना नहीं जिसमें युवाओं की इस कदर भागीदारी हो ! बल्कि बीते दिनों हुए अधिकतर मामलों में ऐसे अपराधियों की भरमार रही जो इस जुर्म की दुनियां में नए चेहरे हैं। कभी ऐय्याशी तो कभी मौज मस्ती तो कभी गर्लफ्रेंड पर खर्च करने के लिए नौजवान पीढ़ी जल्दी पैसा बनाने के इन असमाजिक हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है। यह जानकर बहुत हैरत होगी कि जुर्म की दुनिया में कदम रखने के लिए नौनिहालों के इस रवैये के जिम्मेदार मां बाप ही होते हैं। बचपन में दी जाने वाली पॉकेट मनी और जेब खर्च की आदत जब आगे जाकर बढ़ जाती है, तब खर्चे तो कम होते नहीं पर जरुरतें बढ़ जाती हैं।
ऐसे में इन जरुरतों को पूरा करने के लिए बच्चे हर काम करने को तैयार हो जाते हैं। बचपन में मां-बाप बच्चों को बड़े अरमानों से पॉकेट मनी देते हैं कि उनका बच्चा इसका सही इस्तेमाल करेगा, पर अभिभावक बच्चे को यह सिखा नहीं पाते कि इसका इस्तेमाल कहां करना है ? जब बच्चा थोड़ा बड़ा होता है और आजकल के माहौल के हिसाब से कभी प्रेम प्रसंग या अधिक खर्चा करने वाले बच्चों की संगति में जाता है, तब वह अपने दुनियादारी वाली शौकों को पूरा करने के लिए जुर्म का सहारा लेता है। बचपन में मां-बाप से पॉकेटमनी ले ली। बड़े हुए तो कॉल सेंटर आदि में काम करके गुजारा हो गया। यानि जिंदगी में आज के युवा मेहनत कम से कम करना चाहते हैं। इजी मनी की चाह में कई बार दिमाग मनुष्य को सही और गलत के बीच की खाई को नजरअदांज करने पर विवश कर देता है। अक्सर देखा गया है कि चोरी-डकैती या हत्या के नए मामलों में युवा अपराधियों के शामिल होने की वजह प्रेम प्रसंग या लड़की होती है। प्रेमिका को खुश करने के चक्कर में रोज नए आशिक जुर्म की गलियों के बादशाह बनने को तैयार रहते हैं।
जब महीने की कमाई महज पांच हजार रुपये हो और खर्च एक का हजार रुपए का हो तो बाकी का पैसा जुटाने के लिए आज के युवा हर कोशिश को जायज मानते हैं। इन सब के साथ बेरोजगारी मुख्य कारण है। आजकल तो हालात यह है कि अच्छी शिक्षा के बाद भी बेहतर रोजगार मिल पाना मुश्किल है। अच्छे कॅरियर की चाह में युवा कई बार ऐसे लोगों की संगत में पड़ जाते हैं जो जल्दी पैसा बनाने के सपने दिखाकर इन्हें भटका देते हैं। जुर्म के यह नए चेहरे खुद को बहुत काबिल मानते हैं। इन्हें लगता है कि इन्हें कोई पकड़ नहीं पाएगा। लेकिन जब यह पकड़े जाते हैं तो इनके मासूम चेहरों को देखकर हर कोई कहता है कि यह तो जुर्म कर ही नहीं सकता। इन नए जुर्म के खिलाडियों को पहचान पाना बिलकुल भी आसान नहीं। क्यूंकि यह कोई भी हो सकता है। क्या पता हमारे और आपके ही अपने न जाने कब इस सिस्टम का हिस्सा बन जाएं और हमें पता ही न चले। इस परेशानी से बचने और समाज को बचाने के लिए कोशिश छोटे स्तर से ही होनी चाहिए। इसकी शुरुआत घर से ही करना पड़ेगा। बच्चों को समझाएं कि पॉकेटमनी या जेबखर्च का किस तरह उपयोग करना है, बच्चों की हर गतिविधि पर ध्यान रखें, अपने बच्चों को प्यार की असली परिभाषा समझाइए।
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