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रविवार, 13 मार्च 2022

जौनपुर में मल्हनी विधानसभा का चुनावी मल्ल युद्ध में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी लकी यादव और जनता दल यु के प्रत्याशी धनंजय सिंह के बीच में हवा हो गए भाजपा के प्रत्याशी के पी सिंह

शाहगंज विधानसभा में सपा के कद्दावर नेता एवं अखिलेश सरकार में मंत्री रहे शैलेन्द्र उर्फ ललई यादव का किला भाजपा और निषादराज पार्टी के संयुक्त प्रत्याशी रमेश सिंह ने ढहा दिया...

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जौनपुर जनपद में विधानसभाओं की स्थिति...

जौनपुर जनपद की मल्हनी विधानसभा पूरे प्रदेश की सबसे चर्चित विधानसभा में से एक थी, उसके दो कारण थे, पहला ये कि विधानसभा समाजवादी पार्टी की गढ़ है। प्रदेश की गिनी चुनी विधानसभा में एक है जो पार्टी के परंपरा गत वोटो के लिहाज से लगभग एक लाख चालीस हजार (यादव और मुस्लिम) है। दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण बाहुबली सांसद धनन्जय सिंह का दुबारा निर्दल (जद यू को यूपी में निर्दल ही समझिए) कूद जाना था, जिस विधानसभा में बड़ी-बड़ी पार्टियों के पसीने छूट जाए, वहाँ से निर्दल ताल ठोकना शेर के मुँह में हाथ डालने के बराबर का साहस होता है और वो साहस बार-बार पूर्व सांसद करते हैं।

पूर्व सांसद धनंजय सिंह...

मल्हनी के पहले ये सीट रारी थी वो भी इतनी कठिन थी कि समझ लीजिए कांग्रेस इंदिरा गांधी के देहांत के बाद उपजी लहर में यहाँ से हार चुकी है। साल 85 में बीजेपी कभी जीती नही, मंदिर आंदोलन में साल 91, साल 92 में लगभग तीस हजार वोट तक पहुँच पाई थी, वहाँ से दो बार धनन्जय सिंह निर्दल विधायक बनके लोगो को अचंभित कर दिए, फिर परिसीमन में यह मल्हनी हो गई, रारी विधानसभा का वह हिस्सा कट गया जिसमें ठाकुर, ब्राह्मण वोट हुआ करता था और यादव मुस्लिम बाहुल्य, करंजा कला ब्लॉक जुड़ गया जिसके कारण यह समाजवादी पार्टी का किला हो गया और पारसनाथ यादव जैसा लड़ाकू आकर इसको और मजबूत कर दिया। उधर धनन्जय सिंह भी हार मानने वाले योद्धा नही है। किसी भी परिस्थितियों से लड़ जाना और तूफानों में घिरे रहने के बाद भी भयभीत नही होना उनकी आदत है। साल 2017 का चुनाव लड़ गए मल्हनी से 50 हजार वोट पाए। बीजेपी अपने प्रचंड लहर के बाद भी चौथे नम्बर पे चली गई। 

स्व. पारसनाथ यादव के पुत्र लकी यादव जो वास्तव में हैं, लकी...

साल 2020 में पारस नाथ यादव के देहांत के बाद उपचुनाव हुआ। धनन्जय सिंह फिर मैदान में कूद पड़े। एक तरफ लकी यादव अपनी पिता की विरासत बचाने के लिए, दूसरी तरफ सत्तादल बीजेपी के बड़े-बड़े योद्धा मल्हनी को जीतने में लग गए और बीच मे धनन्जय सिंह हाहाकार मचाने लगे। चुनाव के समय किसी पार्टी को लग नहीं रहा था कि धनन्जय सिंह ठीक से लड़ रहे हैं, लेकिन मतगणना होते ही सबकी सांसे अटक गई, जब धनन्जय सिंह के मत ईवीएम मशीन से निकलने लगी और लगभग 70 हजार निकली, वो बहुत मामूली वोटों से लगभग चार हजार वोटों से चुनाव हार गए। हार जाने के बाद भी लोगों ने धनन्जय सिंह के लिए ताली बजाई कि पूरे चुनावी युद्ध मे अकेला योद्धा यही था। उस उप चुनाव में बीजेपी जैसी पार्टी की जमानत जब्त हो गई। उप चुनाव में धनन्जय सिंह ने अपने वोटो में बीस हजार का इजाफा कर लिया पचास हजार से सत्तर हजार पहुँच गए निर्दल, तब लोगों को लगने लगा कि अगर इस योद्धा को थोड़ा साथ मिले तो किला भेदा जा सकता है, हार बहुत मामूली मतों से हुई।

ललई यादव के किले को ध्वस्त किया रमेश सिंह... 

जिला पंचायत का चुनाव हुआ, सभी समीकरणों को ध्वस्त करते हुए उन्होंने अपनी पत्नी को निर्दल जिला पंचायत अध्यक्ष जिताकर पूरे प्रदेश को आश्चर्य चकित कर दिया। लोगों ने मान लिया कि इस आदमी में चुनावी रणकौशल है। ये राजनीति का बड़ा योद्धा है। फिर आ गया साल 2022 का आम चुनाव। समर्थको ने जोर लगाया कि धनन्जय सिंह किसी पार्टी से चुनाव लड़े। उन्होंने भी जोर लगाया कि भारतीय जनता पार्टी के किसी घटक दल से उनको चुनाव लड़ने का मौका मिल जाय तो अच्छा है, लेकिन बताया जाता है कि उनकी बाहुबली छवि के कारण ये बात नहीं बनी। कुछ लोग सहमत थे, कुछ नही। जनपद का संगठन भी सहमत नही था। उसके बाद समर्थको ने कहा कि चुनाव मत लड़िये, बिना दल के निर्दल बहुत मुश्किल है। चुनाव इतने बड़े दलदल में फंस जाता है कि निकलना मुश्किल होता है। लेकिन पूर्व सांसद धनन्जय सिंह किसी का कहा मानने वाले। उन्होंने अपने लोगो से कहा अगर कोई टिकट न दे तो क्या चुनाव न लडू ? चलो ताल ठोको, जो होगा देखा जाएगा। 

जननेता ललई यादव को हराकर रमेश सिंह ने रचा इतिहास...

इस बार हम लोग जीतेंगे और नारा दिया अबकी बार एक लाख पार। इसी के साथ चुनावी समर में कूद पड़े और लगभग 80 हजार वोट तक पहुँच गए, लेकिन चुनाव फिर हार गए। पूर्व सांसद धनन्जय सिंह ने चुनाव जोरदार लड़ा, इसमे कोई दो राय नही है और निर्दल देखे तो धनन्जय सिंह को दांतो तले उंगली दबा लेने वाले वोट भी मिले। धनन्जय सिंह ये चुनाव जीतते नजर आ रहे थे और लग रहा था आराम से जीत लेंगे। लेकिन यहीं से दूसरे योद्धा यानी लकी यादव ने लड़ाई अपनी ओर मोड़ ली जो उनके चुनावी कौशल को दर्शाती है। जैसे धनन्जय सिंह का नारा आया, अबकी बार एक लाख पार। इनकी तरफ के कार्यकर्ताओं में जोश आ गया। उत्साह में भरकर वो बीजेपी के वोटरों को अपनी तरफ करने लगे। जद यू से लड़ने के कारण भी बीजेपी के वोटर थोड़ा धनन्जय सिंह की तरफ आकर्षित हुए। उधर का दस हजार वोट कम भी हुआ। बीजेपी 28 हजार से 18 हजार पर आ गई। लेकिन उस नारे को लकी यादव ने भी उतनी गम्भीरता से लिया। उनको एक लाख का नारा मजाक नहीं लगा। 


उन्हें लग गया कि अगर इस पर काम नहीं किया गया तो धनन्जय सिंह चुनाव को फंसा देंगे और लकी यादव ने अपनी रणनीति के तहत वो काम किया जिसका अंदाजा पूर्व सांसद और उनके समर्थको को भी नहीं हुआ। सपा उम्मीदवार लकी यादव ने पूर्व सांसद के बीस साल से वोट देने वाली छोटी-छोटी जातियों में पैठ बनानी शुरू कर दी। जैसे मौर्या, पाल, सरोज, कहार, नाई। उधर जद यू के टिकट के कारण मुसलमान वोट भी जो पांच से सात हजार मिलता था, उनके व्यक्तित्व के कारण वो भी सपा की तरफ चला गया। यहाँ समाजवादी पार्टी के विधायक लकी यादव की रणनीति की प्रशंसा करनी होगी कि कम राजनैतिक अनुभव होने के बावजूद पूर्व सांसद के गढ़ और उनके बीस साल के वोटरों में छेद कर दिया। सात से आठ राउंड बूथ यानी लगभग शुरू के सौ बूथों पर पूर्व सांसद की सबसे मजबूत पकड़ है, वहाँ भी लकी यादव ने अपना वोट उपचुनाव से लगभग 8 हजार बढ़ा लिया जो कि आश्चर्य जनक है। समझ लीजिए उन्होंने जेब काट ली और किसी को अंदाजा नही हुआ। पूर्व सांसद का रणकौशल यहाँ फेल हो गया। उनके उत्साहित रणनीतिकार अपना वोट ये सोचते रहे कि ये कहा जाएंगे वही से खिसक गया।


इसका एक छोटा उदाहरण यह समझिए कि एक बूथ है, पूरा बघेला, सांसद जी के गांव का, वहाँ सपा के चार या पांच वोटर गिने जाते हैं। यानि एक घर यादव का है, उस बूथ पर समाजवादी पार्टी को 56 वोट मिल गया। ये सब उत्साहित होकर अपना नया वोट तो बढ़ा लिए, लेकिन लकी यादव ने पूर्व सांसद धनन्जय सिंह के लगभग 20 हजार वोटरों को अपनी तरफ खींच कर अपना वोट 97 हजार कर लिया। जबकि उपचुनाव में 74 हजार वोट मिला था। इसको ऐसे समझिए, उप चुनाव में लकी यादव लगभग 74 हजार वोट पाए। धनन्जय सिंह निर्दल लगभग 70 हजार वोट। मनोज सिंह बीजेपी से 28 हजार वोट। बसपा 26 हजार वोट। इस चुनाव में बीजेपी का दस हजार वोट घटा और बसपा का चार हजार वोट और 19 हजार वोट अधिक पड़े थे। यानि इस 33 हजार वोट में लकी यादव ने अपने 23 हजार वोट बढ़ा लिए और पूर्व सांसद ने दस हजार, मतलब साफ है कि लकी यादव ने अपनी चाल से पूर्व सांसद के परंपरागत वोट झटक लिया। 


जौनपुर के पूरे चुनाव में सबसे जबरदस्त चुनाव धनन्जय सिंह ने लड़ा। जौनपुर क्या पूरे प्रदेश में सबसे जबरदस्त लड़ा निर्दल के तौर पर, लेकिन लकी यादव की भी प्रशंसा करनी होगी कि वो चतुराई से लड़े और शेर की माद से उसका शिकार खिंच लिया। वही जौनपुर में शाहगंज सीट से पांच या छह बार के विधायक पूर्व मंत्री ललई यादव अपना वोट नहीं बचा पाए हार गए। बदलापुर से बाबा दुबे उस अनुपात में नही लड़ पाए और वह चुनाव हार गए। शहर की सीट समाजवादी पार्टी के अनुरूप थी, लेकिन वहाँ भी उन लोगो को वो सफलता नहीं मिली। मड़ियाहूं तो लगता था, समाजवादी पार्टी के लिए सबसे सरल सीट होगी। वहाँ से विधायक सुषमा पटेल लड़ रही। उनके पूरे खानदान की सीट थी, ससुर, सास सब वहाँ से जीते थे, खुद लोकप्रिय थी, लेकिन अनजान चेहरे से हार गई। वहा भी समाजवादी पार्टी अपने वोटों में उतनी बढ़त नहीं कर पाई, जितना जरूरी था। इसी के साथ समाजवादी पार्टी के संस्थापक ने करहल और मल्हनी में आकर चुनाव प्रचार किया था तथा दोनों शीट जिताकर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने संस्थापक की मर्यादा को बचाये रखा। 


मल्हनी में लकी यादव ने सही कोशिश की, जबकि पारस नाथ यादव जैसा लड़ाकू साल 2012 के सपा लहर में 82 हजार वोट पाए थे। इस बार लकी यादव अपना वोट 97 हजार कर लिए। सामने लड़ाकू योद्धा के कारण उन्होंने भी अपने दम का प्रदर्शन किया। इसके लिए उनकी प्रशंसा करनी चाहिए। इस मल्हनी के मल्ल में दो योद्धा लड़े, एक निर्दल था, लेकिन लड़ा जबरदस्त और दूसरा दल के साथ था, लेकिन लड़ा बेहद रणकौशल के साथ और सफल रहा। दोनों लोगो को बधाई शानदार लड़ाई के लिए और लकी यादव को बधाई उनके जीत के लिए। इसके साथ ही दोनों योद्धाओं के समर्थकों से अनुरोध है कि प्रेम से रहें, जातिवाद पर न आये, नफरत और घृणा का भाव त्याग दें। दोनों नेता बड़े-बड़े है, इनका आपस मे कुछ नहीं होगा।लात हम तुम खाएंगे, लड़ोगे तो आपस में भी, इसके बाद थाने में भी और लड़ना तो एकदम नहीं, नहीं तो योगी बाबा और उनकी पुलिस, साथ में उनका बुलडोजर चटनी बना देगा। आराम से गेंहू फसल देखो, काटो, मड़ाई करो। मौसम भी खेती किसानी का आ गया है, नही तो जेल में पीसिंग, चक्की पीसिंग याद है न शोले फिल्म।


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