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बुधवार, 2 मार्च 2022

समाजवादी पार्टी को शिखर तक पहुंचाने में क्षत्रियों के योगदान को भुला बैठे हैं, पार्टी सुप्रीमों अखिलेश यादव

देश के दो पूर्व प्रधानमंत्री बी.पी. सिंह व चंद्रशेखर सिंह, उप प्रधानमंत्री देवीलाल चौधरी, बेनी प्रसाद वर्मा और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की जोड़ी से उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी अखिलेश यादव जरा सा भी सीख नहीं ले सके यदि सीख लिए होते तो  बुआ मायावती के नक्शे कदम पर न जाते और पार्टी में सिर्फ सुप्रीमों बनकर एकछत्र राज करने की इच्छा न रखते...


अखिलेश यादव यदि अतीत के आईने को गंभीरता से देंखे तो इनके पिता मुलायम सिंह यादव ने किस प्रकार  क्षत्रियों को बैसाखी बनाकर राजनीति के धरातल पर समाजवादी पार्टी के स्थायित्व हेतु किए गए संघर्ष अवश्य महसूस कर पायेंगे, अखिलेश यादव पूर्णतः सवर्ण विरोधी मानसिकता से ग्रस्त हो चुके हैं...

समाजवादियों के कंधे पर सवार होकर समाजवादी पार्टी का किया था,गठन...

देहात में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है। कालिन बानिन आजुवई सेठ। दूसरी कहावत है कि राजा छुए रानी बनी अहा। सपा के सुप्रीमों बने अखिलेश यादव की स्थिति वही हो चुकी है। वर्ष-2012 में समाजवादी पार्टी को जो जनादेश उत्तर प्रदेश की जनता ने दिया वह अखिलेश के चेहरे पर नहीं दिया था, बल्कि मुलायम सिंह यादव के चेहरे पर दिया था। परन्तु चुनाव परिणाम में अपेक्षा से अधिक सीट मिलते ही सपा मुखिया मुलायम सिंह को लगा कि वह अपने जीवन काल में ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकार की कमान अपने बड़े पुत्र अखिलेश यादव को सौंप दें और समय के साथ राजनीति से सन्यास ले लें। इस तरह सपा के मुखिया मुलायम सिंह ने पुत्रमोह में अपने बड़े पुत्र अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया और यह भी नहीं सोचा कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी का पद हम पुत्रमोह में सौंप रहे हैं। क्या पता वह जिम्मेदारी अखिलेश यादव संभाल पायें भी या नहीं। फिलहाल सत्ता का विकेन्द्रीयकरण कर सूबे का मुखिया अखिलेश यादव को कमान दे दी गई जो पाँच साल के अन्दर मुलायम सिंह के परिवार में ज्वालामुखी की तरह फूटी तो सत्ता से बेदखल हो गई।     

सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव का सिर चढ़कर बोलता घमंड...

सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव में इस कदर जातिवाद का बीज अंकुरित हुआ कि उतना बड़ा जातिवादी तो स्वयं मुलायम सिंह यादव भी नहीं थे। दूसरा सबसे बड़ा ऐब उनमें घमंड तो मानो कूट-कूट कर भरा गया हो ! सपा मुखिया अखिलेश यादव प्रतापगढ़ में क्षत्रियों का इतिहास बता रहे थे। परन्तु यह भूल गए कि वह बता क्या रहे हैं ? अखिलेश यादव को कुछ बताने से पहले यह जानना चाहिए कि उनका ज्ञान कितना गहरा है ? क्षत्रियों का इतिहास की बात करें तो अखिलेश यादव को इतिहासकार नहीं हैं जो क्षत्रियों का इतिहास बतायेंगे। यदि मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की औलाद न होते तो कहीं अखिलेश यादव भी भैंस चराते होते। जिन क्षत्रियों का इतिहास बताने की कोशिश अखिलेश यादव किये उन्हीं राजपूतों का हाथ पकड़कर उनके पिता मुलायम सिंह यादव राजनीति में आगे बढ़े थे। चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर जी का और वी. पी. सिंह जी का हाथ पकड़कर मुलायम सिंह यादव राजनीति में आगे बढ़े। जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की स्थापना की तो उस समय पार्टी को चलाने के लिए पैसे की आवश्यकता थी। तो उस समय एक राजपूत ठाकुर अमर सिंह ने सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी को चंदा दिया और पार्टी की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभायी। 


समाजवादी पार्टी की स्थापना से लेकर अखिलेश यादव के पढ़ने और पिता मुलायम सिंह यादव के विरोध के बाद अखिलेश यादव की लव मैरेज शादी को अरेंज मैरेज में तब्दील करवाने तक की व्यवस्था ठाकुर अमर सिंह ने किया था। क्योंकि उत्तराखंड की रहने वाली डिम्पल रावत का अफेयर अखिलेश यादव से पढ़ाई के समय से चल रहा था और उत्तराखंड के रावत भी राजपूत होते हैं। फिर भी ठाकुर अमर सिंह ने अपने अंदाज में अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव को मित्रवत होने के कारण राजी करा लिया था लेकिन वही अखिलेश यादव उस अमर सिंह के भी नहीं हुए। अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह अपनी जुबान के पक्के नहीं हैं अखिलेश यादव वचन निभाना पहले सीखे, फिर दूसरों को वचन निभाने का ज्ञान दें क्षत्रिय जिसके साथ रहता है, उसके साथ दिल खोलकर रहता है। अखिलेश यादव की इतनी औकात नहीं है कि वह राजा भईया और ब्रजभूषण शरण सिंह को हाथ भी लगा सके। हाथ लगाने से पहले अखिलेश यादव को अपना इतिहास देखना चाहिए, न कि उन्हें क्षत्रियों का इतिहास बताना चाहिए। 


संक्षेप में बीएस इतना ही कह देना अखिलेश यादव के लिए पर्याप्त है कि जो अपने बाप और सगा चाचा का नहीं हुआ, वह किसी और का क्या होगा ? भारत एक लोकतांत्रिक देश है मर्यादा में रहकर सामाजिक ताने-बाने को बांये रखते हुए अपनी बात रखनी चाहिए। बात चाहे चुनावी मंच पर चुनाव प्रचार के दौरान कहना हो अथवा डिजिटल जमाने में सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर कहनी हो ! मंच की मर्यादा और वाणी पर संयम रखना एक राजनेता का विशेष गुण होता है जो अखिलेश यादव में नहीं है। जमकर चुनाव प्रचार करो, लोकतंत्र का सम्मान करो। परन्तु शब्दों का चयन और वाणी परे नियंत्रण को देखने से ही लगता है कि तुम्हारे अंदर घमंड कूट-कूट कर भरा है। बिना मेहनत के मुख्यमंत्री की कुर्सी पा गए तुम क्या जानोगे कि राजपूतों ने मुलायम सिंह यादव के लिए क्या नहीं किया ? चंद्रशेखर जी की अंगुली पकड़कर मुलायम सिंह यादव ने राजनीति का ककहरा सीखा और उनके बेटे नीरज शेखर का बलिया से टिकट काट दिया। समाजवादी पार्टी में सवर्णों को केवल दिखाने के लिए अपने साथ रखा जाता है। जबकि मुलायम सिंह यादव के दौर में जनेश्वर मिश्र छोटे लोहिया, माता प्रसाद पाण्डेय, ठाकुर अमर सिंह, चन्द्रनाथ सिंह आदि लोगों का पार्टी के बड़ा प्रभाव रहता था, जो अखिलेश यादव के दौर में खत्म हो चुका है।  


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