सहयोगी पार्टी अपना दल एस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल और निर्वतमान विधायक राजकुमार "करेजा पाल" के चुनाव प्रचार से बाहर रहने के बाद भी प्रतापगढ़ की जनता ने बाहरी सपा समर्थित उम्मीदवार कथित राजमाता कृष्णा पटेल को नकारा...
पूर्व विधायक व चार बार नगरपालिका परिषद् बेला प्रतापगढ़ के अध्यक्ष रहे हरि प्रतापगढ़ सिंह भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र मौर्य के चुनाव में उनके संसाधन से नगरीय क्षेत्र में 9माह बाद निकाय चुनाव का किया रिहर्सल, पूरे चुनाव किया था जमकर भितरघात और चुनाव परिणाम पक्ष में आते ही रथ पर हो गए सवार...
प्रतापगढ़ की राजनीति की बात करें तो 248-प्रतापगढ़ सदर क्षेत्र में विधायकी अपवाद को छोड़ दें तो कभी रिपीट नहीं होती या तो सीटिंग विधायक का टिकट कट जाता है अथवा सीटिंग विधायक यदि प्रत्याशी बनता है तो जनता उसे धूल चटा देती है। प्रतापगढ़ में वर्ष-2002 में भाजपा के टिकट से हरि प्रताप सिंह चुनाव जीतकर विधायक बने। परन्तु वर्ष-2007 और वर्ष-2012 में भाजपा से टिकट पाने के बाद भी हरी प्रताप सिंह चुनाव लगातार हारते रहे। चुनाव हारने की बात करें तो वह अपनी जमानत भी बचाने में नाकाम रहते थे। वर्ष-2117 में जब भाजपा ने प्रतापगढ़ सीट अपना दल एस के खाते में दे दी थी तो संगम लाल गुप्ता के विरोध में यही हरि प्रताप सिंह भाजपा में टिकट बेंचने और कक्षा 8 फेल को उम्मीदवार बनाने का आरोप लगाकर सपा और कांग्रेस गठबंधन से विश्वनाथगंज विधानसभा से टिकट पाने की चाहत में वह कांग्रेस चले गए और जब टिकट नहीं मिला तो अंगूर खट्टे हैं, कहकर प्रतापगढ़ विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन कर दिए।
नामांकन के बाद अपनी वास्तविक स्थिति जान समझकर और भाजपा के स्थानीय नेताओं के मनाने पर अपना नामांकन वापस ले लिया था। इस बार प्रतापगढ़ सदर और विश्वनाथगंज विधानसभा से नामांकन पत्र भरा, परन्तु किस्मत दगा दे गई और अंत में टिकट काटकर राजेंद्र मौर्य को दे दिया गया। विश्वनाथगंज विधानसभा से टिकट की बोली लगी, परन्तु वहाँ भी कैडर को टिकट देकर टिकट बेंचने के आरोप से बचने का प्रयास किया गया। भाजपा नेता हरि प्रताप सिंह मन मसोस कर पूरे चुनाव रह गए और राजेंद्र मौर्य को हराने के लिए गुणा गणित लगाते रहे। भीतरघातियों में हरि प्रताप सिंह, भाजपा सांसद संगम लाल गुप्ता और निर्वतमान विधायक राजकुमार "करेजा पाल" सहित कई नाम हैं। ऐसा नहीं है कि राजेन्द्र मौर्य ये सब बात जान नहीं रहे हैं। सबकुछ जानते हुए भी चुपचाप चुनाव लड़कर विजयश्री हासिल करना ही एक राजनेता की उपलब्धि होती है। राजेंद्र मौर्य को लोग ऐसे ही काका नहीं कहते।उन्हें प्यार से लोग साधू भईया भी कहते हैं। हरि प्रताप सिंह जैसे नेता ही भाजपा का सत्यानाश करने के लिए पर्याप्त हैं।
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