आइए जानें कि इस बार 250रानीगंज विधानसभा क्षेत्र में कमल का फूल, साइकिल और हाथी में से जनता किसको बनायेगी साथी, कमल का फूल फिर खिलेगा या सरपट दौड़ेगी साइकिल या फिर इन पर भारी पड़ेगी हाथी...
जनपद प्रतापगढ़ में 250-विधानसभा सभा की वर्तमान स्थिति... |
प्रतापगढ़। जिले की 250-रानीगंज विधानसभा इस बार चर्चा का केंद्र विन्दु रही है। विधानसभा चुनाव- 2022 की सरगर्मी के बीच दिग्गजों की खींचतान, बयानबाजी का बवंडर, दल-बदलने की प्रतिस्पर्धा, अंतिम समय तक टिकट को लेकर कहीं खुशी-कहीं गम का माहौल, मतदाताओं के साथ-साथ सियासी पंडितों का दिमाग भी चक्करघिन्नी बन बैठा। प्रमुख राजनीतिक दलों ने भी टिकटार्थियों के धैर्य की परीक्षा लेने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। जिले की 250-रानीगंज सीट पर नामांकन से पूर्व तक होने वाली उठा-पटक पर पूरे जिले की नजरें टिकी रहीं। आख़िरकार सियासी अखाड़े के सूरमाओं का चयन हो चुका है। अब वे अपने हुनर और दांव-पेंच दिखाने को बेताब हैं।
प्रत्याशियों द्वारा मतदाताओं की परिक्रमा का क्रम दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार पर है। सियासी रहनुमा सत्ता की उर्वरक भूमि में मतरुपी हरियाली काटने हेतु वादों की दरांती लिए गतिमान है। अचानक से नेताओं के बदलते रंग देखकर गिरगिट भी शर्म से पानी-पानी हो रहा है। जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, स्थानीय नेताओं की नजरअंदाजी करने में सियासी दलों के आकाओं ने जैसे पीएचडी कर रखी हो। राजनीति का क्षोभमंडल घोषणाओं की आर्द्रता पाकर वादों के मेघ से आच्छादित हो चुका है जो पश्चिमी हवा संग पश्चिम के मतदाताओ को भिगोकर पूरब की ओर अग्रसर है।
भाजपा और समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवार तय करने में काफी समय लिया। समाजवादी पार्टी ने उभरते नेता विनोद दूबे को टिकट दिया था तो इस बात पर प्रो. शिवाकांत ओझा नाराज हुए और समाजवादी पार्टी को त्यागकर भाजपा की कश्ती पर सवार होने में देर नही लगाई, किन्तु भाजपा से भी बात न बन पाई। क्योंकि वर्ष-2017 में रानीगंज से विधायक निर्वाचित हुए धीरज ओझा ने इस बार भी येन केन प्रकारेण भाजपा से टिकट प्राप्त कर ही लिया। चर्चाओं के प्रचंड दौर की शुरुआत यहीं से हुई कि यदि प्रो. शिवाकांत ओझा ने जल्दबाजी में दल बदलने का निर्णय नहीं लिए होते तो उत्पन्न परिस्थितियों में वह समाजवादी पार्टी से उम्मीदवार बनने के प्रमुख चेहरे होते। क्योंकि धीरज ओझा के भाजपा से टिकट पाते ही समाजवादी पार्टी ने विनोद दुबे का टिकट काटकर विश्वनाथगंज के विधायक डॉ आर के वर्मा को उम्मीद्वार बना दिया।
बसपा ने अजय यादव को हाथी के सहारे विधानसभा पहुँचने का अवसर दिया है। किन्तु रानीगंज विधानसभा के कद्दावर और अनुभवी नेताओं की काट खोजना अजय यादव के लिए आसान न होगा। भले ही वह प्रचार-प्रसार के दौरान भूतपूर्व मुख्यमंत्री बसपा अध्यक्षा मायावती के सुशासन का जिक्र तथा विकास की गंगा बहाने का संकल्प कर रहे हैं। देखना यह है कि रानीगंज की जनता हाथी की चाल पर मोहित होती है या नहीं। ब्राह्मण मतदाताओं की बहुलता वाली सीट रानीगंज विधानसभा में प्रत्याशियों की विजय-पराजय के समीकरण में ब्राह्मणों की प्रमुख भूमिका होती है। साथ ही जातिगत आंकड़ो में अन्य जातियों के मतदाताओं का समर्थन भी महत्वपूर्ण होगा।
वर्ष-2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से सीटिंग विधायक प्रो. शिवाकांत ओझा और भाजपा से धीरज ओझा के बीच कांटे की टक्कर हुई थी, जिसमे धीरज ओझा ने बाजी मारी थी और प्रो. शिवाकांत ओझा को तीन नम्बर पर ले जाकर गिराया था। जबकि बसपा से शकील अहमद दो नंबर पर रहे। पांच वर्ष युवा विधायक धीरज ओझा ने चुनाव में सहयोग किये योगेश मिश्र "योगी" और शिवगढ़ विकास खंड पर लगभग 35 सालों से आधिपत्य जमाये रमाकांत दुबे और उनके लड़के विनोद दुबे से अनबन हो गई और दूरियां इस कदर बढ़ी कि फिर एक न हो सकी। योगेश मिश्र "योगी" और विनोद दुबे एंड ब्रदर्स इस बार समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार डॉ आर के वर्मा की साइकिल के केरियल और आगे वाले डंडे पर सवार हो लिए हैं और जीत दिलाने का दम्भ भर रहे हैं।
विधानासभा चुनाव- 2022 में इस बार ब्राह्मण प्रत्याशी के तौर पर भाजपा ने धीरज ओझा पर पुनः दाँव खेला है। यदि ब्राह्मण मतदाता आपसी खींचतान भुलाकर धीरज ओझा के समर्थन में आ जाते हैं तो धीरज ओझा के लिए कमल खिलाने की राह आसान हो जाएगी। डॉ आर के वर्मा समाजवादी पार्टी की साइकिल लिए रानीगंज में निरंतर भ्रमणशील हैं। भाजपा और अपना दल एस की संयुक्त गठबंधन से विश्वनाथगंज से दो बार के विधायक रहे डॉ आर के वर्मा अब भाजपा के मुखर विरोधी होकर सपा की माला जप रहे हैं। यादव सहित सभी ओबीसी वर्ग और मुस्लिम मतदाताओं का रुझान यदि समाजवादी पार्टी की तरफ हुआ तो साईकिल सीधे लखनऊ ही रुकेगी।
फिलहाल कमल के फूल के प्रहरी उसकी आभा चहुँदिश फैलाने को आतुर हैं। साइकिल गली-कूंचो, पगडंडियों से ऊबकर सड़क पर सरपट दौड़ लगाने को व्याकुल है। बसपा की शांत हाथी पुनः अपनी मदमस्त चाल दिखाने को बेचैन है तो वहीं लगभग पांच दशक तक उत्तर प्रदेश में एकछत्र राज करने वाला हाथ का पंजा अपनी खोई रंगत को फिर से पाने को लालायित है। आम आदमी पार्टी की कहानी उत्तर प्रदेश में वैसे ही प्रतीत हो रही है, जैसे योद्धाओं के बीच एक शस्त्रहीन सैनिक। बहरहाल राजनीतिक दलों की पैतरेबाजी देखकर स्थानीय नेता, कार्यकर्ता और मतदाता एक पुराना गीत बरबस ही गुनगुना रहा है, खिलौना जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो...!!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें