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सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

जनपद की सबसे बड़ी विधानसभा विश्वनाथगंज में फंसा है सबसे बड़ा पेंच, निर्दलीय उम्मीदवार संजय पाण्डेय और जनधिकार पार्टी उम्मीदवार अशफाक अहमद बिगाड़ सकते हैं, बसपा उम्मीदवार संजय त्रिपाठी और सपा उम्मीदवार सौरभ सिंह की चुनावी गणित

भाजपा व अपना दल एस के संयुक्त उम्मीदवार जीतलाल पटेल के लिए वहां के विधायक रहे डॉ आर के वर्मा ने अगड़ा-पिछड़ा की बात करके बची खुची सवर्ण मतदाताओं की नाराजगी में ऐसा जातीय विष बोया कि पूरी चुनावी गुणा गणित ही हो चुकी है,खराब...


यदि तीन विधानसभाओं रानीगंज, सदर प्रतापगढ़ और पट्टी में पटेल/कुर्मी/वर्मा विरादरी के मतदाता समाजवादी के हाथों को मजबूत करते हैं तो भाजपा और अपना दल एस अनुप्रिया पटेल को भारी नुकसान होने से कोई रोक नहीं सकता। अनुप्रिया पटेल की साख दांव पर होगी और पटेल मतदाता उसके हाथ से निकल जायेंगे...

जनपद प्रतापगढ़ की सबसे बड़ी विधानसभा विश्वनाथगंज में मचा है,जातीय घमासान...

जनपद की सबसे बड़ी विधानसभा की बात करें तो विश्वनाथगंज का नाम आता है। आइये विश्वनाथगंज विधानसभा की राजनीति को समझने का प्रयास करते हैं और इस चुनाव में जातीय समीकरण कितना फिट बैठता है इस बार विश्वनाथगंज विधानसभा में प्रत्याशियों को लेकर मतदाताओं में मतभेद भी साफ-साफ देखने को मिल रहा है। मतदाताओं का मतभेद इतने बड़े पैमाने पर है, जिसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। फिर भी पिछले विधानसभा के ग्राफ को देखा जाए तो विश्वनाथगंज विधानसभा में भाजपा गठबंधन,  सपा गठबंधन व बसपा की ही लड़ाई बनी थी। जिसका हश्र हुआ कि भाजपा व अपना दल एस गठबंधन के प्रत्याशी डॉ आर के वर्मा अपने प्रतिद्वंदी व वर्तमान में निर्दलीय प्रत्याशी संजय पाण्डेय को हराकर विजय हासिल किया था। जिसमें सबसे बड़ा रोल उत्तर प्रदेश में परिवर्तन की लहर भी रही। जिसका फायदा डॉ आर के वर्मा को मिला। 


भाजपा अपना दल एस गठबंधन की बात की जाए तो जहां अभी तक कुर्मी समाज के लोग अपना मुखिया अनुप्रिया के रूप में देखते थे। वहीं प्रतापगढ़ की सदर विधानसभा सीट को अनुप्रिया द्वारा अपनी मां के लिए छोड़े जाने पर मतदाताओं में चर्चा का विषय बना हुआ है। जबकि माँ कृष्णा पटेल यह कहकर मामला साफ किया कि अनुप्रिया पटेल डर वश सीट भाजपा के पाले में कर अब अपनी इज्जत बचा रही हैं। अनुप्रिया इमोशनल ब्लैकमेल न करें, क्योंकि उनका घिनौना चेहरा जनता जान चुकी है। यदि माँ के प्रति प्रेम होता तो उसे किनारे न करती।साथ ही सीट भाजपा के खाते में देकर उम्मीदवार न उतरवाती। भाजपा भी उम्मीदवार न उतारी होती तो मैं मानती कि माँ के प्रति अनुप्रिया ने अपना भाव प्रकट किया है। इस बार पटेल/कुर्मी/वर्मा वर्ग के मतदाताओं में बहुत ही कन्फ्यूजन है। 


पट्टी विधानसभा में रामसिंह पटेल तो रानीगंज विधानसभा में डॉ आर के वर्मा और सपा व अपना दल कमेरावादी की संयुक्त उम्मीदवार कृष्णा पटेल के साथ जाने का मन बना रहा है तो विश्वनाथगंज विधानसभा में भाजपा और अपना दल एस के उम्मीदवार जीतलाल पटेल के साथ जाने के लिए सोच रहा है। इससे पटेल मतदाता प्रतापगढ़ में तीन विधानसभा में सपाई मतदाता कहलायेगा तो विश्वनाथगंज में भाजपाई और अपना दल एस का मतदाता कहलायेगा साथ ही उस पर घोर जातिवादी का ठप्पा अलग से लगेगा वर्तमान में यादवों और दलितों के बाद प्रतापगढ़ में पटेल/कुर्मी/वर्मा विरादरी के मतदाता अधिक विरादरीवाद के मोह में फंसते नजर आ रहे हैं। यदि तीन विधानसभाओं रानीगंज, सदर प्रतापगढ़ और पट्टी में पटेल/कुर्मी/वर्मा विरादरी के मतदाता समाजवादी के हाथों को मजबूत करते हैं तो भाजपा और अपना दल एस अनुप्रिया पटेल को भारी नुकसान होने से कोई रोक नहीं सकता। अनुप्रिया पटेल की साख दांव पर होगी और पटेल मतदाता उसके हाथ से निकल जायेंगे।   


अब बात करते हैं विश्वनाथगंज विधानसभा की इस समय जो स्थित कुछ और ही बयां कर रही है इस विधानसभा में भाजपा और अपना दल एस से जीतलाल पटेल संयुक्त उम्मीदवार के सामने सपा और अपना दल कमेरावादी के संयुक्त उम्मीदवार सौरभ सिंह हैं। मजे की बात यह है कि विश्वनाथगंज विधानसभा में पटेल विरादरी के लोग जीतलाल पटेल के साथ जाना चाहते हैं। ब्राह्मण विरादरी के लोग दो भागों में बटे हुए हैं। कुछ ब्राह्मण बसपा के उम्मीदवार पूर्व विधायक संजय के साथ जाना चाहते हैं तो कुछ ब्राह्मण निर्दल उम्मीदवार संजय पाण्डेय के साथ जाना चाहते हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में हालात कुछ और हैं। इस बार भी पब्लिक महंगाई, बेरोजगारी व छुट्टा पशु आदि जैसे मुद्दे मतदाताओं के सामने बने हुए हैं। जनता इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए कुछ और करने का फैसला कर सकती है। 


वहीं विश्वनाथगंज विधानसभा को देखा जाए तो इस विधानसभा में सबसे ज्यादा वोटर बैकवर्ड समाज से है तो दूसरे नम्बर पर सवर्ण वोटर की संख्या हैं। तीसरे पायदान एससी तो चौथे नम्बर पर अल्पसंख्यक है। बसपा उम्मीदवार पूर्व विधायक संजय त्रिपाठी बहुत ही सरल और सुलभ है। साथ ही 248-प्रतापगढ़ के विधायक रहते हुए मानधाता क्षेत्र उस वक्त प्रतापगढ़ सदर विधानसभा का हिस्सा हुआ करता था, जिस कारण लोग उनसे उस समय से जुड़े हुए हैं और संजय त्रिपाठी मूलतः मानधाता क्षेत्र के रहने वाले भी हैं। कुछ इसी तरह गड़ावारा और परिसीमन के बाद विश्वनाथगंज नाम से हुई इस नई विधानसभा से पहले विधायक राजाराम पाण्डेय जी वर्ष- 2012 में विधायक निर्वाचित हुए थे। दुर्भाग्यवश उनकी आसमयिक मौत हो गई और वह पूरा कार्यकाल पूर्ण न कर सके। उप चुनाव-2014 में स्व. राजाराम पाण्डेय के पुत्र संजय पाण्डेय को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया, परन्तु मोदी लहर में लोकसभा के आम चुनाव में अपना दल से डॉ आर के वर्मा चुनाव जीत गये।  


वर्ष-2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और अपना दल एस के उम्मीदवार विश्वनाथगंज विधानसभा से पुनः जीत हासिल की। दूसरे नम्बर पर सपा और कांग्रेस के गठबंधन उम्मीदवार संजय पाण्डेय दूसरे नम्बर पर रहे। इस बार विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने संजय पाण्डेय का अंतिम दिन टिकट काटकर सौरभ सिंह पर भरोसा जताया, वह भी उस समय जब वह अपना नामांकन करने अपने समर्थकों के साथ नामांकन स्थल के लिए निकलने वाले थे तो सूचना मिली कि नामांकन न करिए, चूँकि आपका टिकट कट गया है और आपकी जगह सौरभ सिंह नामांकन करेंगे और वही समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़ेंगे। जैसे ही यह सूचना संजय पाण्डेय को हुई और समर्थकों से उन्होंने चुनाव न लड़ने की बात कही तो उनके समर्थक उग्र हो गए और उनकी गाड़ी पर लगे सपा के झंडे और कार्यालय में सपा के चुनाव प्रचार सामग्री को आग लगा दिया।     


इस घटना से संजय पाण्डेय भावुक हो गए और समर्थकों के बीच रोने लगे तो समर्थक भी उन्हें निर्दल चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर दिया और संजय पाण्डेय समर्थकों की इच्छा पर विश्वनाथगंज विधानसभा से निर्दलीय नामांकन कर दिया। ये संयोग ही है कि जिस कैंची चुनाव निशान ने संजय पाण्डेय के पहले चुनाव में उनके राजनैतिक भविष्य को काट दिया था, अब निर्दलीय उम्मीदवार संजय पाण्डेय उसी कैंची चुनाव निशान को पसंद किया है। अब देखना है कि सहानुभूति के इस सैलाब में कैंची कितना कमाल दिखाती है ? फिलहाल यह तो आने वाला समय तय करेगा, परन्तु विश्वनाथगंज विधानसभा का चुनाव रोमांचक हो चुका है। संजय पाण्डेय को सभी वर्ग और धर्म के लोगों का मत मिलता दिख रहा है। संजय पाण्डेय सबसे अधिक समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सौरभ सिंह को नुकसान पहुँचा सकते हैं।         


इस बार विश्वनाथगंज विधानसभा में सवर्ण मतदाता बसपा उम्मीदवार संजय त्रिपाठी, निर्दलीय उम्मीदवार संजय पाण्डेय और समाजवादी पार्टी उम्मीदवार सौरभ सिंह में विभाजित होता है तो पार्टी के कैडर मतदाता ही जीत हार के लिए निर्णायक भूमिका में होंगे। भाजपा और अपना दल एस के विधायक रहे डॉ आर के वर्मा ने इतना ठाकुर, पंडित कर दिया है कि जीतलाल पटेल के लिए उन्हें मना पाना बहुत कठिन दिख रहा है। भाजपा और अपना दल एस के उम्मीदवार जीतलाल पटेल संयोग से डॉ आर के वर्मा के रिश्तेदार भी हैं। जन अधिकार पार्टी से अशफाक अहमद भी स्थानीय नेता होने के कारण कई दलों का खेला बिगाड़ सकते हैं। विश्वनाथगंज विधानसभा में इस बार सवर्ण मतदाता जहाँ एकराय होकर जिस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करेंगे, वही उम्मीदवार ही जीतेगा। अभी तो सभी उम्मीदवार जोड़तोड़ में लगे हुए हैं राजनीतिक समीकरण दिन प्रतिदिन बदलते चला जा रहा है यह कह पाना मुश्किल है कि किस पार्टी के प्रत्याशी को भारी मतों से 10 मार्च को विजय मिलेगी। 


ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि विश्वनाथगंज विधानसभा में स्वर्गीय राजाराम पांडे के लड़के संजय पाण्डेय यदि ऐसे ही पत्नी के साथ क्षेत्र में सहानुभूति की आँधी को बनाये रखते हैं तो सपा के उम्मीदवार सौरव सिंह को भारी नुकसान हो सकता है। वह विधायक बनने से वंचित रह जायेंगे। निर्दलीय उम्मीदवार संजय पाण्डेय और सपा उम्मीदवार सौरभ सिंह की इस लड़ाई में बसपा उम्मीदवार संजय त्रिपाठी लाभ उठा सकते हैं सपा के बिखराव को किस प्रकार से सपा प्रत्याशी सौरभ सिंह संभालेंगे, यह भी उनके लिए बड़ी चुनौती है। अन्यथा 75 हजार आबादी वाले अनुसूचित जाति बसपा के साथ जाने में परहेज नहीं करेंगे। इस बार बैकवर्ड मतदाता जैसे पटेल/वर्मा/कुर्मी विश्वनाथगंज विधानसभा में जीतलाल पटेल यानि अपना दल एस व भाजपा गठबंधन प्रत्याशी के साथ मत शेयर करना चाहते हैं तो दूसरी तरफ यादव, ब्राह्मण, ठाकुर, सरोज व अल्पसंख्यक समाज सहानुभूति में निर्दलीय उम्मीदवार संजय पाण्डेय को वोटिंग करने का मन बना रही है वहीं बसपा उम्मीदवार संजय त्रिपाठी के लिए ब्राह्मण, दलित व अल्पसंख्यक मतदाता मतदान करने में एतराज नहीं कर सकते हैं। 


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