उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवार का समय से चयन न करना, नामांकन के अंतिम दौर में उम्मीदवार तय करना, जनता के साथ छलावा है और उम्मीदवार थोपने जैसा है...!!!
विधानसभा चुनाव- 2022 को भाजपा और सपा ने मजाक बनाकर रख दिया है। सदर, रानीगंज और विश्वनाथगंज विधानसभा सीट से अभी तक उम्मीदवार न उतारना क्षेत्र की जनता के साथ एक तरह से मजाक करने जैसा है। नामांकन में सिर्फ दो दिन शेष बचे हैं और भाजपा व सपा द्वारा उम्मीदवार के नाम की घोषणा न करना यह दर्शाता है कि इन पार्टियों के नेता कितने गैर जिम्मेदार हैं ? वह यह मान बैठे हैं कि वे जिन्हें भी टिकट देंगे उसे क्षेत्र की जनता सहज स्वीकार कर लेगी और गले लगाकर अपने सिर पर बिठाकर पूरी विधानसभा घुमाकर अपने अमूल्य मतों से जिताकर विधायक बना देगी। जबकि यह सपा और भाजपा दोनों दल के नेताओं की भूल है। जनता यदि सिर पर बिठाना जानती है तो सिर से उतारकर फेंकना भी जानती है। जब राजनीतिक दल घुरहू और कतवारू को उम्मीदवार बनाकर क्षेत्र में भेजेगी तो जनता भी ऐसे उम्मीदवार को नकार कर दोनों दलों के नेताओं की बोलती बंद करने की माद्दा रखती है।
राजनीतिक दलों ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को तमाशा बनाकर रख दिया है। केंद्रीय चुनाव आयोग स्वतंत्र बॉडी है, परंतु चुनाव की आड़ में इतना भ्रष्टाचार है कि उसी से उसको फुर्सत नहीं लग पाती, चुनाव की नीतियों में संशोधन की बात तो दीगर है। दल बदल और उम्मीदवार होने के लिए टिकट की खरीद फरोख्त से बचना है तो चुनाव की नीतियों में बदलाव करना होगा, ताकि आदर्श चुनाव संहिता लागू होने के बाद राजनीतिक दलों द्वारा टिकट नहीं दिया जा सके। भारत निर्वाचन आयोग से जनता की अपील है कि वह ऐसा नियम बनाये ताकि आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद कोई भी दल उम्मीदवार तय न कर सके, इससे दल बदल पर रोक लग सकेगी। राष्ट्रीय पार्टियां को जाने दीजिये, क्षेत्रीय पार्टियां भी उम्मीदवार तय नहीं कर पा रही हैं, इसे मतदाता किस रूप में क्या समझे ? जब राजनीतिक पार्टियां नामांकन होने के दूसरे दिन तक अपनी विधानसभाओं के उम्मीदवार तय नहीं कर पा रही हैं तो इनकी सरकार बनने पर यह नीतिगत फैसले किस इच्छाशक्ति से लेंगी...???
बहुत ही विचारणीय प्रश्न और गम्भीर टिप्पणी की है आपने चुनाव आयोग को जरुर इसका संज्ञान लेना चाहिए।
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