आज पांचवें चरण के नामांकन के दूसरे दिन भी जनपद प्रतापगढ़ और सुल्तानपुर में नहीं हुए एक भी नामांकन,पहले दिन में सिर्फ 46 और दूसरे दिन 43 नामांकन प्रपत्र उम्मीदवारों ने लिए, नामांकन रहा शून्य, देखिये तीसरे दिन खाता खुलता है या तीसरे दिन रहता है,सन्नाटा...!!!
➤केंद्रीय चुनाव आयोग स्वतंत्र बॉडी है, परंतु चुनाव की आड़ में इतना भ्रष्टाचार है कि उसी से उसको फुर्सत नहीं लग पाती, चुनाव की नीतियों में संशोधन की बात तो दीगर है...!!!
➤दल बदल और उम्मीदवार होने के लिए टिकट की खरीद फरोख्त से बचना है तो चुनाव की नीतियों में बदलाव करना होगा ताकि आदर्श चुनाव संहिता लागू होने के बाद राजनीतिक दलों द्वारा टिकट नहीं दिया जा सके...!!!
➤भारत निर्वाचन आयोग से जनता की अपील है कि वह ऐसा नियम बनाये ताकि आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद कोई भी दल उम्मीदवार तय न कर सके, इससे दल बदल पर रोक लग सकेगी...!!!
➤राष्ट्रीय पार्टियां को जाने दीजिये, क्षेत्रीय पार्टियां भी उम्मीदवार तय नहीं कर पा रही हैं, इसे मतदाता किस रूप में क्या समझे ? जब राजनीतिक पार्टियां नामांकन होने के दूसरे दिन तक अपनी विधानसभाओं के उम्मीदवार तय नहीं कर पा रही हैं तो इनकी सरकार बनने पर यह नीतिगत फैसले किस इच्छाशक्ति से लेंगी...???
भारत निर्वाचन आयोग... |
राजनीतिक दलों ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को तमाशा बनाकर रख दिया है। पांचवें चरण का आज नामांकन का पहला दिन था और राजनीतिक दलों द्वारा अभी तक अपने दलों से उम्मीदवार तक तय न करा पाना ये सिद्ध करता है कि राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व कितना गैर जिम्मेदार हैं ? जिन्हें वह उम्मीदवार बनायेंगे वह अपनी विधानसभा का एक बार परिक्रमा तक नहीं लगा सकेगा। जब वह विधानसभा चुनाव जीत जायेगा तो उसे अपने विधानसभा की भौगोलिक स्थिति भी नहीं पता रहेगी। जिस जनता को ये निकम्मे नेतागण यह कहते हैं कि मतदाता हमारे लिए देवतुल्य है, उसे चुनाव जीतने के बाद नेताजी पहचानते तक नहीं। इसमें नेताजी की भी गलती नहीं होती। क्योंकि नेताजी नामांकन के दौरान तक पार्टी से टिकट लेने के लिए साम, दाम, दंड, भेद के साथ 24 घंटे पार्टी कार्यालय से लेकर बड़े नेताओं के चक्कर लगाने में ही अपनी सारी एनर्जी खर्च देते हैं।
नेताजी को जब पार्टियों से टिकट मिलता है तो नामांकन के अंतिम दौर के बाद विधानसभा में भ्रमण करने का मौका ही नहीं बचता। मतदाता मजबूरी में राजनैतिक दलों के उम्मीदवारों में से किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में अपना अमूल्य मत देकर उन्हें अपना भाग्य विधाता बना लेता है, परन्तु भाग्य विधाता बनने वाला वह उम्मीदवार अपने उस मतदाता को पहचानता ही नहीं, जिसने उसे आम आदमी से खास आदमी बनाता है। जब वह माननीय हो जाते हैं तो उन्हीं मतदाताओं का उत्पीड़न शुरू कर देते हैं, जिनके मतदान से वह माननीय बनते हैं। इस तरह राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं पर अपना उम्मीदवार थोपने का कार्य किया जा रहा है। पार्टियों द्वारा चयनित उम्मीदवार चाहे चोर हो अथवा अपराधी हो या बलात्कारी हो ! मतदाता उसको हर हाल में स्वीकार कर, उसको अपना अमूल्य मत देकर माननीय बनाये। गजब का प्रचलन राजनीतिक दलों ने शुरू किया है। पहले छः माह से पहले राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों का चयन कर लिया जाता था और उम्मीदवार अपनी विधानसभा में एक बार नहीं, कई बार चक्कर लगाकर जनता के बीच उनके सुख-दुःख में भाग लेता था।
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