सत्तालोलुप के वशीभूत नरेश अग्रवाल कई राजनीतिक दलों में रह चुके हैं, वर्तमान समय में वह भगवा खेमे में हैं और सत्ता की मलाई खाने के लिए वह कभी भी दल बदल एक्सप्रेस पर सवार हो जाते हैं...
दलबदलू नरेश अग्रवाल और उनके बेटे नितिन अग्रवाल की इस बार नहीं दिख रही राह आसान... |
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पड़ोसी जिले हरदोई का जिक्र करने पर एक नाम दिमाग में आ जाता है और वह नाम है, दलबदलू नरेश अग्रवाल का, जो हमेशा चर्चा में रहता है। नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल हरदोई की सदर विधानसभा से चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। जिले की राजनीतिक जमीन पर अपनी तूती बोलवाने वाले नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल के लिए इस बार सदर विधानसभा में राह आसान नहीं दिख रही है। पूरा अग्रवाल परिवार नितिन को सदर में जीत दिलाने के लिए सड़क पर उतर चुका है। समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक अनिल वर्मा भी जातीय गणित और अपने पुराने काम के दम पर पूरे आत्मविश्वास से भरे नजर आ रहे हैं।
हरदोई सदर विधानसभा में जातीय समीकरण कुछ ऐसा हैं कि भगवा खेमे और नरेश अग्रवाल की टेंशन बढ़ गई हुई है। जातीय गणित के अनुसार सदर विधानसभा में सबसे अधिक मतदाता 16 फीसदी मतदाता पासी जाति की हैं, 15 फीसदी मतदाता मुस्लिम है तो 10.32 फीसदी मतदाता रैदास है। ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी 10.94 फीसदी है, क्षत्रिय मतदाता 14.92 फीसदी हैं तो मतदाता वैश्य भी 4.87 फीसदी हैं। यादव मतदाता की बात करें तो उनकी तादात 4.5 फीसदी है। सदर सपा प्रत्याशी अनिल खुद पासी बिरादरी से आते हैं। ऐसे में अगर PMY समीकरण के साथ वोटों में तब्दील हो गया तो नितिन अग्रवाल के सपनों पर नदी की धारा बह सकती है। इसीलिए नरेश अग्रवाल का पूरा परिवार सड़क पर उतरकर नितिन अग्रवाल के लिए चुनाव प्रचार में जुटा हुआ है। हरदोई सदर विधानसभा में नरेश अग्रवाल की साख दांव पर लगी हुई है।
अगर चुनावी नतीजों में जरा सा भी ऊपर-नीचे हुआ तो सीधे नरेश की बोल रही राजनीतिक तूती और जनता में उनकी स्वीकार्यता पर सवाल खड़ा हो जाएगा। अगर ऐसा होता है तो सूबे से लेकर देश की राजनीति में नरेश अग्रवाल के बने हुए आभामंडल पर नकारात्मक असर पड़ेगा। सपा प्रत्याशी पूर्व विधायक अनिल वर्मा हरदोई सदर विधानसभा से चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। अनिल इससे पहले साल 2002 में भगवा खेमे से बावन हरियावां के विधायक रह चुके हैं। साल 2012 में बालामऊ से सपा विधायक रहे। साल 2017 में टिकट नहीं मिला। टिकट न मिलने पर वापस भगवा खेमे में शामिल हो गए थे। अनिल कुछ महीने पहले ही सपा में शामिल हुए और नितिन के खिलाफ टिकट की मांग कर डाली। अनिल का कहना हैं कि नितिन को नहीं, बल्कि नरेश के वर्चस्व को चुनौती दे रहे हैं। अनिल ने कहा कि हमने अखिलेश यादव से कहा था कि मुझे इस बार नितिन के खिलाफ लड़ाइए और अगर 50 हजार वोटों के अंतर से कम जीतूं तो मेरी जीत को हार मान लीजिएगा।
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