Breaking News

Post Top Ad

Your Ad Spot

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

विधानसभा चुनाव-2022 के इस चुनाव में 248-प्रतापगढ़ विधानसभा की रणभूमि में इस बार कौन, किस पर भारी होगा और मतदाता द्वारा किसके सिर पर बांधा जायेगा ताज

आइये जाने प्रतापगढ़ विधानसभा की ताजा स्थिति, बाहरी बनाम स्थानीय भी होगा इस बार चुनाव में मुद्दा...


248-प्रतापगढ़ विधानसभा की रणभूमि में इस बार ऊंट किस करवट बैठेगा, किसकी सिर पर ताज सुशोभित होगा, जनादेश किसके पक्ष में होगा, यह तो मतदाताओं के रुख पर कायम है कि वह मतदान के दिन अपना अमूल्य मत किसके झोली में डालते हैं,फिलहाल EVM रुपी पिटारा जब 10 मार्च को खुलेगा तभी पता चल सकेगा...

248-प्रतापगढ़ में भी आसान नहीं है, चुनाव जीतना...

उ. प्र. विधानसभा चुनाव- 2022 का जोरदार आगाज पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रथम और द्वितीय चरण के मतदान से हो चुका है। सियासी रणभेरी के मध्य मतदाता उन्मुक्त भाव से लोकतंत्र के महापर्व में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। राजनीतिक दल जनता की नब्ज टटोलते हुए वादों के जाल फेंककर, दुःखहीन सब्जबाग प्रतिबिंबित करने को आतुर हैं। किन्तु मतदाता भी मुट्ठी से फिसलती सूखी रेत की भांति अथवा बंदरों की तरह गुलाटी मारने को व्याकुल है। बड़े दल रूपी सागर में छोटे दल रूपी नदियाँ/नाले शामिल होकर फूले नहीं समा रहे हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के कुल 75 जिलों में से एक जिला प्रतापगढ़ है। पूर्वी उ.प्र. के अंतर्गत आने वाले इस जिले में कुल सात विधानसभा सीटें हैं, इनमें से एक सीट 248- प्रतापगढ़ की है किसी भी जिले की सदर सीट अति महत्वपूर्ण मानी जाती है। पांचवे चरण के अंतर्गत 27 फरवरी को यहाँ मतदान की प्रक्रिया संपन्न होनी है। कई मायनों में यह सीट इस बार चर्चा में रही है। सभी उम्मीदवार अपनी जीत को लेकर आशान्वित हैं।   


248-प्रतापगढ़ विधानसभा के प्रत्याशियों पर एक नजर...


भाजपा और अपना दल एस के संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर राजेन्द्र मौर्य चुनावी मैदान में हैं काफी ऊहापोह और अटकलों के बाद अंततः नामांकन के अंतिम दिन, अंतिम समय में इनका पर्चा भरा जा सका राजेन्द्र मौर्य कमल का फूल लिए चुनावी युद्धभूमि में कूद चुके हैं दिलचस्प मामला यह भी था कि भाजपा के बैनर तले कई महारथियों ने भी पर्चे दाखिल किए थे क्षेत्रीय नेताओं की उपेक्षा, संगठन में आपसी खींचतान, आरोप-प्रत्यारोप के तूफानी दौर के मध्य बिखराव की स्थिति बन गयी थी। सपा और अपना दल कमेरावादी गठबंधन की संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर स्वयंभू राजमाता कृष्णा पटेल ने अपना नामांकन अंतिम दिवस के अंतिम क्षण पर ही किया। एक बार तो लगा कि रामपुरखास की तरह 248- प्रतापगढ़ में भी सपा वाकओवर दे दिया है भाजपा और अपना दल एस शीर्ष नेतृत्व की ही तरह सपा और अद कमेरावादी का शीर्ष नेतृत्व भी अंतिम समय तक किंकर्तव्यविमूढ़ की चरम अवस्था में था, जिसको लेकर बयानबाजी का दृश्य देखने को मिला एक ओर जहाँ कृष्णा पटेल की इज्जत का सवाल है तो दूसरी तरफ भाजपा की साख का सवाल है मौर्य-पटेल अन्य जाति के मतदाताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि पार्टी के उम्मीदवारों को तवज्जों दें या स्थानीय प्रत्याशियों में से किसी एक का चुनाव करें 


विधायक संगमलाल गुप्ता के सांसद चुने जाने के कारण वर्ष- 2019 में हुए 248- प्रतापगढ़ विधानसभा के उप चुनाव में भले ही राजकुमार पाल ने बाजी मार ली थी, किन्तु उस चुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने वाले कांग्रेस उम्मीदवार डा. नीरज त्रिपाठी पर  इस बार भी कांग्रेस पार्टी ने दांव खेला है। ब्राह्मण वोटों के साथ युवा वर्ग के मध्य काफी लोकप्रिय डा. नीरज त्रिपाठी को अन्य दलों के प्रत्याशी इस बार कमतर आंकने की भूल नहीं करेंगे। सदर की जनता के सामने बसपा ने इस बार आशुतोष त्रिपाठी के रूप में नए चेहरे से रूबरू कराया है। बसपा के कोर वोटर के साथ यदि अन्य जातियों के मतदाताओं ने थोड़ा सा भी रुझान दिखाया तो लड़ाई दिलचस्प होने की संभावना रहेगी। लोकसभा चुनाव- 2019 में बुआ और बबुआ का गठबंधन था, परन्तु वह गठबंधन चुनाव के नतीजों के साथ टूट गया लोकसभा चुनाव बाद बसपा सुप्रीमों मायावती के भाई आनन्द के यहाँ आयकर का छापा पड़ा, जिसके बाद से बसपा पूरी तरह से भाजपा के हाँ में हाँ मिलाकर अपनी राजनीति करने में अपनी भलाई समझी उस घटना के बाद से हाथी की रफ्तार धीमी होती गई और विधानसभा चुनाव में अभी भी गति नहीं पकड़ पा रही है। देखना है कि समय के साथ गति पकड़ती है या ऐसे ही रह जाती है।  


आम आदमी पार्टी के जिलाध्यक्ष दिनेश उपाध्याय भी झाड़ू चुनाव चिन्ह से ताल ठोंक रहे हैं किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि  दिल्ली अभी बहुत दूर है एआईएमआईएम ने अपने पुराने सिपाही इसरार अहमद को पुनः रणक्षेत्र में भेजा है, जिन्होंने विधानसभा उपचुनाव- 2019 में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करके बीस हजार से अधिक मत अपनी झोली में डाले थे और तीसरा स्थान बनाया था। किन्तु इस बार मुस्लिम मतदाताओं में भी बिखराव की स्थिति दिख रही है। समाजवादी पार्टी जो अपने को मुसलमानों की हितैसी पार्टी बताती है और उसका शत प्रतिशत मत अकेले पाना चाहती है, वह भी इस बार प्रतापगढ़ में एक भी चेहरा मुस्लिम का नहीं उतारा है, जिससे जनपद प्रतापगढ़ के मुसलमान मतदाता भी नाराज हैं। पर अधिकतर मुस्लिम मतदाताओं की विचारधारा यही होती है कि जो दल भाजपा उम्मीदवार को हराने की स्थिति में दिखता है, वह उसी के साथ खड़ा हो जाता है और अपना मतदान उसी के पक्ष में कर देता है निर्दलीय उम्मीदवारों की बात करें तो इस चुनाव में इनकी भूमिका वोटकटवा की ही तरह मानी जा रही है। ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि इन्होंने किसका खेल बिगाड़ा और इनके चुनाव लड़ने से कौन उम्मीदावर लाभान्वित हुआ ? 


भाजपा शीर्ष नेतृत्व द्वारा नामांकन के अंतिम दिन और अंतिम क्षण प्रत्याशी के नाम के अपने पत्ते खोलना कहीं न कहीं आपसी सामंजस्य का अभाव दर्शाता है साथ ही शीर्ष नेतृत्व द्वारा जिला इकाई को यह निर्देशित करना कि यहाँ से किसी ओबीसी प्रत्याशी को ही टिकट देना, यह समझने के लिए काफी है कि ओबीसी बाहुल्य क्षेत्र में ओबीसी चेहरे के साथ बाजी मार ली जाए। मौर्य-कुर्मी-पटेल वोटरों के साथ-साथ अन्य पिछड़ी जाति व एससी मतदाताओं का झुकाव बाहरी या स्थानीय प्रत्याशी, किसकी तरफ होगा यह कहना मुश्किल है। प्रबुद्ध वर्ग ब्राह्मण भी असमंजस में है ब्राह्मण मत तीन जगह जातीय समीकरण के आधार पर बटेगा ऐसे भी ब्राह्मण मतदाता हैं जो भाजपा को ही मतदान करेंगे ब्राह्मण का सबसे कम समाजवादी पार्टी और अपना दल कमेरावादी की उम्मीदवार कृष्णा पटेल के खाते में जायेगा। क्योंकि इस बार सपा मुखिया अखिलेश यादव जिले की सातों सीटों में एक भी ब्राह्मण चेहरे को टिकट नहीं दिया है। रानीगंज विधानसभा में विनोद दुबे को दिया भी तो बाद में काटकर डॉ आर के वर्मा पर दाँव लगा दिया वैसे प्रतापगढ़ रियासत के राजा अनिल प्रताप सिंह के नामांकन वापस लेने और भाजपा प्रत्याशी को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा करने से क्षत्रिय वोटरों की अच्छी तादात कमल के फूल को रंगत प्रदान कर सकती है 


समाजवादी पार्टी और अपना दल (कमेरावादी) की संयुक्त उम्मीदवार कृष्णा पटेल पूरे जोर शोर से चुनावी मैदान  में हैं। जिनकी सुपुत्री अपना दल एस की सुप्रीमों अनुप्रिया पटेल ने अपनी माताजी के सम्मान में इस सीट से उम्मीदवार न उतारने का निर्णय लिया ऐसा सन्देश वह मीडिया के जरिये समाज को दी थी, परन्तु दूसरे दिन ही उनकी माँ कृष्णा पटेल ने उनकी धुलाई मीडिया के ही जरिये जवाब देकर दे दिया माँ कृष्णा पटेल का कहना है कि अनुप्रिया पटेल उनकी लड़की है और उसके हर रग से वह वाकिफ हैं अनुप्रिया डर वश 248-प्रतापगढ़ की सदर सीट भाजपा के पाले में सरेंडर किया है माँ से इतना ही प्रेम था तो भाजपा से भी उम्मीदवार न उतारने देती।तब मैं समझती कि अनुप्रिया मेरे लिए कुछ किया है फिलहाल देखना अब यह है कि समाजवादी पार्टी के सहारे कृष्णा पटेल के लिफाफे में कितने वोट भरे जा सकेगें। फिलहाल गाँव-शहर, गली, नुक्कड़, चौराहों पर लोगों के इकठ्ठा होकर निवर्तमान और पूर्ववर्ती सरकार के गुणों-अवगुणों की समीक्षात्मक टिप्पणियों की बौछारों से सियासी मानसून गति पकड़ रहा है। शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार के बुनियादी मुद्दों से परे जाति  और संप्रदाय के गर्म तावे पर सियासी नुमाइंदे अपनी रोटियां सेंकने को लालायित हैं  


➤पुनीत भास्कर की कलम से...


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Top Ad

Your Ad Spot

अधिक जानें