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शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

राजनीति में आने के बाद रघुराज प्रताप सिंह "राजा भैया" ने भाषा की मर्यादा और मंच की गरिमा को रखा, बरकरार

प्रतापगढ़ राष्ट्रीय लोकतांत्रिक जनसत्ता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजा भैया ढाई दशक से अधिक सार्वजनिक जीवन में बहुत उतार चढ़ाव देखे,परन्तु अपनी वाणी पर संयम रखते हुए ही अपनी बात रखकर लोगों के दिलों पर राज किया - अनुभव यादव, पूर्व ब्लॉक प्रमुख- बिहार 

अखिलेश यादव ने कहा था कि कौन राजा और अपनी सरकार में कैबिनेट का हिस्सा बना चुके हैं...

प्रतापगढ़। राजनीति की बात हो और उसमें कुंडा पीछे रह जाए, यह हो नहीं सकता। कुंडा विधानसभा जनपद प्रतापगढ़ की 7 विधानसभाओं में से एक है और पश्चिम दिशा में रायबरेली, कौशाम्बी, फतेहपुर और प्रयागराज की सीमा से लगी है, जिससे कुंडा की राजनीति में चार चाँद लग जाता है। कुंडा की राजनीति में ढाई दशक पहले रघुराज प्रताप सिंह "राजा भैया" का राजनीति में उदय हुआ और उन्हें उस समय प्यार से तूफ़ान से कहते थे। वास्तव में कुंडा की राजनीति में तूफ़ान सिंह ने तूफान ला दिया और कुंडा ही नहीं बगल बिहार विधानसभा जो वर्तमान में वर्ष-2009 के परिसीमन के बाद बाबागंज विधानसभा के नाम से जाना जाता है। कुंडा विधानसभा पर वर्ष-1993 में स्वयं और बिहार विधानसभा में अपने सहयोगी और समर्थक रामनाथ सरोज को वर्ष-1996 में विधायक बनाया। दोनों सीटों पर आजतक राजा भैया का कब्ज़ा रहा है। दोनों सीटें निर्दलीय उमीदवार के तौर पर राजा भैया और उनके समर्थक व सहयोगी विनोद सरोज जो रामनाथ सरोज के लड़के हैं, वह भी राजा भैया की मदद से लगातार चुनाव जीतते रहे।  

राजा भैया का जनता से रहता है,सीधे सरोकार...

कुंडा और बाबागंज में पहली बार राजा भैया और उनके समर्थक व सहयोगी विनोद सरोज इस बार निर्दलीय चुनाव न लड़कर अपनी राजनीतिक पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक से चुनाव लड़ेंगे। आज दोनों लोग अपने नामांकन करेंगे। इसके पहले राजा भैया से सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव से राजा भैया के अच्छे सबंध थे, इसलिए समाजवादी पार्टी कुंडा और बाबागंज सीट पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारती थी और निर्दलीय उम्मीदवार राजा भैया और उनके सहयोगी बाबागंज के उम्मीदवार विनोद सरोज का समर्थन कर देती थी। परन्तु समाजवादी में अखिलेश यादव के कमान संभालने के बाद राजा भैया से उनके बीच रिश्ते दिन प्रतिदिन खराब होते गए। लोकसभा चुनाव-2019 के चुनाव से पहले राजा भैया ने एक राजनीतिक पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक का गठन किया और उस दल से कौशाम्बी और प्रतापगढ़ के लोकसभा सीट पर उम्मीदवार उतार कर अपनी दूसरी राजनीतिक पारी की शुरुवात की। उस समय से सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव और राजा भैया में लगातार दूरियां बढ़ती गई।  विधानसभा चुनाव में स्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि राजा भैया का खास आदमी गुलशन यादव को कुंडा विधानसभा से अखिलेश यादव ने सपा का उम्मीदवार घोषित कर कुंडा के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। 

अनुभव यादव के कंधे पर राजा भैया का हाथ...

पूर्व ब्लॉक प्रमुख, बिहार- अनुभव यादव ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक जनसत्ता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजा भैया पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले समाजवादी के प्रत्याशी गुलशन यादव पर पलटवार करते हुए कहा कि विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ कुंडा और बाबागंज में सियासी पारा चढ़ गया है। बताते चलें कि कुंडा और बाबागंज की सीट पर राजा भैया का विशेष प्रभाव रहता है कभी राजा भैया के यहां पले कुंडा के पूर्व चेयरमैन गुलशन यादव को समाजवादी पार्टी ने इस बार प्रत्याशी बनाया है। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी गुलशन यादव अपने चुनावी सभा में विधानसभा क्षेत्र में विकास की बात न करके राष्ट्रीय लोकतांत्रिक जनसत्ता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजा भैया के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करके चुनावी माहौल को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं हालांकि सपा प्रत्याशी की इस टिप्पणी से प्रशासन ने शिकंजा कसते हुए मुकदमा भी पंजीकृत किया है। इस आपत्तिजनक टिप्पणी से कुंडा व बाबागंज में राजा भैया समर्थकों में आक्रोश उत्पन्न हो गया है और माहौल काफी गर्म है। 


इस बारे में विकास खंड बिहार के पूर्व प्रमुख अनुभव यादव का कहना है कि सपा प्रत्याशी गुलशन यादव को इस बात को अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि कुंडा और बाबागंज विधानसभा में लगभग 60 परसेंट यादव का भला राजा भैया के जनता दरबार से ही हुआ है। वर्ष-2022 के इस चुनाव में 60 पर्सेंट से अधिक यादव जाति के मतदाता राजा भैया के साथ रहेंगे। राजा भैया के बारे में विरोधी किस भाषा का प्रयोग करते हैं, उस पर राजा भैया ध्यान नहीं देते और राजा भैया मंच से सदा मर्यादित भाषा का प्रयोग करते हैं। आपत्तिजनक अभद्र बातें करना राजा भैया के संस्कार में नहीं है। जातीय गोलबंदी करके इलेक्शन नहीं जीते जाते। चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी को जनता का विश्वास जीतना चाहिए और उसकी उम्मीदों पर खरा उतरना चाहिए। यह सब गुण राजा भैया के अंदर हैं। इसलिए वह वर्ष-1993 से लगातार रिकॉर्ड मतों से जीत की पताका पहराते हुए चले आ रहे हैं। इससे राजा भैया के विरोधियों में खलबली मच गई है और उन्हें अभी से ही अपनी हार का डर सताने लगा है इसलिए वह जातीय गोलबंदी करके आपत्तिजनक टिप्पणी कर रहे हैं। राजा भैया ने सार्वजनिक जीवन में भाषा की मर्यादा और मंच की गरिमा को बरकरार रखने का पूरा प्रयास किया है।


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