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गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

राम सिंह पटेल जैसा बुजदिल और कमजोर जिलाध्यक्ष समाजवादी पार्टी में कोई न था, कर्वी और रायबरेली से होती थी, जिलाध्यक्षी

बीहड़ का खूंखार डकैत ददुआ के भतीजे हैं,पूर्व विधायक राम सिंह पटेल...!!!

मीडिया के समक्ष नहीं रख पाते अपना पक्ष, अपना पक्ष रखने में भी हकलाते थे,सपा जिलाध्यक्ष राम सिंह पटेल...!!!

पूर्व जिलाध्यक्ष राम सिंह पटेल...
लखनऊ में एयरपोर्ट पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को प्रयागराज न जाने देने पर उनके सम्मान की लड़ाई में प्रतापगढ़ के जिलाध्यक्ष राम सिंह पटेल के अगुवाई में इकट्ठा हुए सपाई... 

अक्सर जिला से बाहर रहने वाले सपा जिलाध्यक्ष राम सिंह पटेल कल अचानक जिले में आ धमके और सपाई कार्यकर्ताओं और पार्टी पदाधिकारियों को बुलाकर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की इज्जत बचाने के लिए धरना की औपचारिकता पूरी किये। वर्तमान में राम सिंह पटेल की अध्यक्षता में प्रतापगढ़ की समाजवादी पार्टी सबसे खराब दशा में चल रही है। पूरा दल मृतप्राय हो चुका है। जबकि अखिलेश यादव ने राम सिंह पटेल को युवा समझकर जिले की कमान उनके हाथों में सौंपी थी। चूँकि राम सिंह पटेल, अखिलेश यादव की सरकार में पट्टी से विधायक रहे। परंतु उनकी शिथिलता को देखकर यही लगता है कि सपा को समाप्त करके ही राम सिंह दम लेंगे। आज भी सपा प्रतापगढ़ से तो पूरी तरह साफ ही है। पिता बाल कुमार पटेल को टिकट न मिलने पर लोकसभा चुनाव-2019 में पिता-पुत्र दोनों कांग्रेस के पंजे से हाथ मिला लिए थे। परन्तु लोकसभा चुनाव बाद  फिर से अखिलेश की सायकिल पर पिता-पुत्र दोनों सवार हो गए।  


समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव बसपा की सुप्रीमों मायावती की तरह 90 फीसदी जिलों में यादव को अपना जिलाध्यक्ष बनाते हैं, परन्तु कहीं न खिन वोट बैंक की लालच में अखिलेश यादव दूसरी जातियों पर दांव चल देने में परहेज नहीं करते। पट्टी विधान सभा से समाजवादी पार्टी के सिम्बल से विधायक बने राम सिंह पटेल के ऊपर जिलाध्यक्ष का दांव अखिलेश यादव ने इसलिए चला था, क्योंकि उस पहले जिलाध्यक्ष भईया राम पटेल रहे।  इसलिए पटेल वोट विदक न जाये, इस डर से राम सिंह पटेल को जिला अध्यक्ष बनाया गया था। साथ ही इस बात को आजमाने की कोशिश की गई थी कि राम सिंह पूर्व विधायक हैं और खुंखार डकैत के भतीजे हैं। उनके रहते पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं होगी। परन्तु पार्टी मुखिया के उस इरादे पर राम सिंह खरे नहीं उतर सके। वैसे तो अखिलेश यादव कुंडा के बाहुबली विधायक राजा भईया से बहुत जलते हैं। अपनी कैबिनेट में स्थान देने के बाद भी अखिलेश यादव कुछ दिन पहले जब पट्टी आये थे तब पत्रकारों के सवाल पर्दों टूक में जवाब दिया था कि ये कौन हैं ? ये किसका नाम आप लोगों ने ले लिया ? इन्हें तो हम नहीं जानते। 


अब अखिलेश यादव से कौन पूँछे कि लोकसभा चुनाव-2019 के बाद अपने सगे चाचा जो समाजवादी पार्टी से जसवंत नगर से वर्ष-2017 में विधायक निर्वाचित हुए थे और पार्टी में विद्रोह होने के बाद बिना समाजवादी पार्टी और विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दिए ही एक राजनीतिक दल बनाकर लोकसभा चुनाव भी लड़ लिया। चुनाव में नुकसान उठाने के बाद अखिलेश यादव ने विधानसभा अध्यक्ष से शिवपाल यादव की सदस्यता को रद्द करने की प्रार्थना की थी, परन्तु बाद में पिता मुलायम सिंह से मैनेज कर उस शिकायत को ठंडे बसते में डलवा दिया था। कुछ इसी तरह प्रतापगढ़ में भी MLC अक्षय प्रताप सिंह गोपाल जी भले ही सपा के सिम्बल से निर्विरोध निर्वाचित हुए थे, परंतु वो अब जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के पदाधिकारी हो चुके हैं और वर्ष-2019 के लोकसभा चुनाव में जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के उम्मीदवार हो गए थे। जबकि एमएलसी पद से त्याग पत्र नहीं दिया थाकमोवेश यही दशा जिला पंचायत अध्यक्ष उमा शंकर यादव की भी है। वो भी सपा के सिब्बल से भले जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे, पर आज वो भी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के पदाधिकारी हो चुके हैं। जिलाध्यक्ष राम सिंह पटेल की औकात नहीं हुई कि वो MLC गोपाल जी और जिला पंचायत अध्यक्ष उमाशंकर यादव को सपा से निष्कासित करने की घोषणा कर सके।  


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