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गुरुवार, 13 जनवरी 2022

पूर्वांचल से ही एक बार फिर निकलेगा यूपी की सत्ता तक पहुँचने का रास्ता

ये सारे नेता सिर्फ सत्तासुख के लिए हैरान व परेशान हैं, जनता के सुख-दुःख से नहीं रहता इनका लेना-देना...

सत्तासुख के लिए सभी हैं, बेचैन...

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सत्ता का रास्ता पूर्वांचल से होकर गुजरता है, चाहे वो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का हो ! चाहे सूबे की राजधानी लखनऊ का हो ! दोनों की दिशा और दशा पूर्वांचल तय करता है। वर्ष- 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने यहां के 10 जिलों में 61 में से 39 सीटें हासिल कर बहुजन समाजवादी पार्टी की मायावती सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था। सपा मुखिया अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार का वर्ष- 2017 के चुनाव में भी यही हाल हुआ था। भारतीय जनता पार्टी ने इसे समाजवादी पार्टी को 12 सीटों पर समेट दिया था। अकेले 34 सीटों पर जीत का परचम लहराते हुए उत्तर प्रदेश की सत्ता पर भगवा रंग का झंडा लहराते हुए केंद्र की सत्ता के बाद सूबे की सत्ता पर कब्जा कर लिया। क्या इस बार भी वही बाजी मारेगा जो पूर्वांचल का गढ़ जीतेगा। आईए जाने कि पिछले विधानसभा चुनाव- 2017 के आंकड़े किस तरफ इशारा कर रहे हैं और अखिलेश-राजभर के गठबंधन के बाद पूर्वांचल में क्या हालत पैदा होंगे...???


समाजवादी पार्टी की तत्कालीन सहयोगी कांग्रेस जिसने वर्ष- 2012 में महज तीन सीट ही जीत पाई थीं और वर्ष- 2017 में शून्य हो गई थी। चुनाव से पहले सीएम पद के उम्मीदवार को पेश नहीं करने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक दबदबे पर उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभाओं में से 325 सीटें जीत कर दो तिहाई की जगह तीन-चौथाई के प्रचंड बहुमत से वर्ष- 2017 का चुनाव जीता था। हालांकि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने वर्ष- 2012 में अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के रूप में नामित किया था। चुनाव आयोग के रिकॉर्ड इस क्षेत्र के सत्ता पैटर्न को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के काशी क्षेत्र के 10 जिलों में 61 सीटें हैं। इनमें वाराणसी 8, आजमगढ़ 10, बलिया 7, जौनपुर 9, मऊ 4, गाजीपुर 7, चंदौली 8, मिर्जापुर 5, सोनभद्र 4, और भदोही की 3 सीटें शामिल हैं।


वर्ष- 2012 में समाजवादी पार्टी ने 39 सीटों पर जीत हासिल की थीं तो वहीं वर्ष- 2017 के विधानसभा चुनाव में मऊ, वाराणसी, भदोही, सोनभद्र और मिर्जापुर सहित कई जिलों में पूरी तरह से सपा का सफाया हो गया था, जबकि इन सीटों पर सपा का गढ़ कहे जाने वाले आजमगढ़, जौनपुर सहित अन्य जिलों में भारी कमी आई थी। समाजवादी पार्टी को बलिया, जौनपुर, और गाजीपुर में चार सीटों का नुकसान हुआ था। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने वर्ष- 2012 में 8 सीटों पर जीत हासिल की थीं तो वर्ष- 2017 के विधानसभा चुनाव में अपनी संख्या बढ़ाने में बसपा भी नाकाम रही। बहुजन समाजवादी पार्टी महज 7 सीट ही पाई। वहीं कांग्रेस की हालत खस्ताहाल रही। कांग्रेस ने वर्ष- 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था। कांग्रेस गठबंधन करने के बाद भी एक बड़े हिस्से को खाकर वर्ष- 2012 में जीती हुई अपनी तीन सीटों को खो दिया। भारतीय जनता पार्टी ने अपना दल एस से गठबंधन कर 4 सीटें जोड़ते हुए अपनी संख्या में 5 की बढ़ोतरी करते हुए सीटों की संख्या 34 कर ली। इसके अलावा उसके पूर्व सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी तीन सीटें जीती थीं।


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