नवाबगंज थाना की पुलिस पूरी तरह नकारा साबित हो रही है, जब प्रतापगढ़ में पत्रकारों का जीवन सुरक्षित नहीं है तो आम जनमानस की बात करना बेईमानी है...
फिसड्डी साबित हो रही है बेल्हा की स्थानीय पुलिस... |
प्रतापगढ़। जिला विगत कुछ वर्षो से अपराधियों के कारगुजारियों से त्रस्त और शर्मशार है। अपराधी घटनाओं को अंजाम देकर अपने बुलंद हौसले का परिचय दे रहे हैं और पुलिस-प्रशासन बेफिक्र बनी हुई है। जिले में किसका कब, अपहरण हो जाए और किसे, कब कोई गोली का शिकार बना ले, कुछ कहा नहीं जा सकता। पुलिस तो बस आश्वासन देकर अपने कर्तब्यों की इतिश्री कर लेना जानती है। घटना के बाद जनता आक्रोशित होती है, धरना-प्रदर्शन चलता है, सड़क जाम होता है और बात कुछ ही दिन बाद थम सी जाती है और फिर सामने आ जाता है, अपराधियों का एक और कारनामा। विगत कुछ वर्षो से जिले में जैसे हत्या का दौर सा चल पड़ा है। जिलेवासी दहशत में हैं और अपराधी बेखौफ होकर अपने कारनामे को अंजाम दे रहे हैं। घटना घटित हो जाने के बाद पुलिस की चहल-कदमी बढ़ती है। ज्यों-ज्यों दिन बीतता है, मामला ठंडा पड़ जाता है। पुलिस भी निष्क्रिय हो जाती है। चोरी, लूट, सड़क लूट तो जैसे आम बात हो चली है। ताजा मामला नवाबगंज थाना क्षेत्र के परियावां का है।
पुलिस भी उसी को अपने कानूनी शिकंजे में कसती है, जिसका कोई राजनैतिक संरक्षण नहीं होता। वर्ना राजनैतिक संरक्षण प्राप्त अपराधी को देखकर पुलिस अपना मुंह फेर लेती है। स्थानीय पुलिस के निकम्मेपन का ताजा उदाहरण देखने को मिला है। दो दिन पूर्व स्थानीय पत्रकार शिवेंद्र तिवारी के साथ सरेआम हुई मारपीट पुलिस की शिथिलता को उजागर करता है। सरेआम पत्रकार की पिटाई का वीडियो वायरल होने के बाद भी पुलिस दबंगों की गिरफ्तारी नहीं कर पाई। जिससे नवाबगंज पुलिस पर उंगली उठ रही है। अब सवाल उठता है कि जिस जनता के सुरक्षा की गारंटी पुलिस-प्रशासन पर है और वहीं पुलिस प्रशासन बेफ्रिक रहे तो जनता की सुरक्षा कितनी और कैसे होगी ? ऐसे में सुरक्षा ब्यवस्था पर यक्ष प्रश्न तो बनता ही है। फिलहाल पत्रकार के साथ हुई मारपीट के मामले में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई न होने से जिले के पत्रकारों में आक्रोश व्याप्त है। जिले की कानून ब्यवस्था इतनी खराब हो चुकी है कि यहाँ देश के चौथे स्तम्भ का जीवन भी सुरक्षित नहीं है। नवाबगंज थाना की पुलिस पूरी तरह नकारा साबित हो रही है। जब प्रतापगढ़ में पत्रकारों का जीवन सुरक्षित नहीं है तो आम जनमानस की बात करना बेईमानी है।
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