कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व घोड़ा बेंचकर सोया हुआ है, उसके एक से बढ़कर एक बड़े चेहरे कांग्रेस से पल्याँ करते जा रहे हैं और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व है कि वह किं कर्तब्य विमूढ़ की स्थिति में है...
दिल्ली आकर राहुल गांधी से मिले झारखंड प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर |
रांची। भारतीय जनता पार्टी में आरपीएन सिंह के अचानक पार्टी छोड़कर शामिल हो जाने से कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा है। अब कांग्रेस लगे झटकों को कम करने में जुट गई है। झारखंड कांग्रेस को डर है कि आरपीएन सिंह के भगवा खेमे में जाने से सरकार को अस्थिर करने की गतिविधियां कहीं जोर न पकड़ ले। इस आशंका को देखते हुए कांग्रेस डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। झारखंड प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने बुधवार को राहुल गांधी से दिल्ली में मुलाकात कर वहां की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। बता दें कि बीते महीनों में दो बार झारखंड में सरकार को अस्थिर करने की साजिश हो चुकी है। पहली बार कांग्रेस विधायक अनूप सिंह ने कतिपय लोगों के खिलाफ थाने में लिखित सूचना दी। दूसरी बार झामुमो के रामदास सोरेन ने थाने में शिकायत दर्ज करायी। माना जाता है कि झारखंड का महासचिव रहने के नाते आरपीएन सिंह के कई करीबी अभी भी पार्टी में हैं।
कुछ विधायक और नेता आरपीएन के पार्टी छोड़ने से खुश हैं तो कई निराश और क्षुब्ध भी हैं। ये क्षुब्ध नेता और विधायक सही समय के इंतजार में हैं। आने वाले समय में ऊंट किस करवट बैठेता है, अभी कुछ कहना मुश्किल है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद आरपीएन सिंह का भगवा खेमे में शामिल होना झारखंड में कहीं कोई सियासी बड़ा खेल न कर दे, इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता है। वर्ष-2019 विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड में कांग्रेस की ओर से आरपीएन सिंह ने हेमंत सोरेन को पूरी दमखम के साथ राजधानी रांची के सिंघासन पर बैठाया था। कांग्रेस का मंत्री कौन-कौन होगा, किसे क्या विभाग मिलेगा और सरकार किस फार्मूले पर चलेगी, यह सब तय करने में आरपीएन सिंह की भूमिका खास रही थी। सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ वह लगातार मंत्रणा करते, नीति और कार्यक्रमों पर कांग्रेस की ओर से निर्णायक संवाद करने वाले शख्स थे।
आरपीएन सिंह सरकार की रीति, नीति और योजनाओं के क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभाते थे और कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों पर सीधा नियंत्रण था। विधायक अपने गिले-शिकवे उनके सामने ही रखते थे। वह विधायकों का दुख-दर्द भी बांटते थे। आरपीएन के कामकाज के तरीके से कांग्रेस के कई बुजुर्ग नेता उनके खिलाफ रांची से दिल्ली तक विरोध का झंड़ा लहराते रहे। फिर भी चार प्रदेश अध्यक्षों के साथ आरपीएन सिंह ने काम किया। डा. अजय कुमार को अध्यक्ष पद से हटाने और रामेश्वर उरांव को बिठाने में आरपीएन सिंह की उल्लेखनीय भूमिका रही और वर्तमान अध्यक्ष राजेश ठाकुर को अध्यक्ष बनाने में उनकी ही चली थी। दोनों सत्तारुढ़ विधायकों की शिकायतों का लब्बोलुआब यही था कि कोई ताकत है, जो सरकार को अस्थिर करना चाह रही है। विपक्ष भाजपा के खिलाफ सियासी बयान भी दागे गए। बैरहाल दोनों मामला कोर्ट और थाने का चक्कर काट रहा है।
मंगलवार को झारखंड में झामुमो और कांग्रेस गठबंधन सरकार को सत्तारुढ़ कराने वाले आरपीएन सिंह ने एक झटके में कांग्रेस छोड़कर भगवा खेमे में शामिल होकर सबको चौंका दिया। आरपीएन सिंह ने भगवा खेमे में शामिल होकर झारखंड, यूपी और दिल्ली तक जबरदस्त सियासी सुनामी ला दी है। जहां भाजपा आनंदित है तो वहीं सत्तारुढ़ कांग्रेस-झामुमो बेहद सकते में है। कई तरह की आशंका सत्तारुढ़ दल के नेताओं को कई तरह की आशंकायें परेशान कर रही है। आरपीएन सिंह के कांग्रेस छोड़ने पर पार्टी के एक विधायक इरफान खान ने मिठाइयां बांटी, तो वहीं विधायक अंबा प्रसाद ने आरपीएन सिंह पर साफ आरोप लगाया है कि सरकार को गिराने की वह साजिश रच रहे थे। फिलहाल देखा जाए तो देश की सबसे पुराने पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस में एक-एक करके सारे काबिल नेता उसके पलायन करते जा रहे हैं और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व उस पर नियंत्रण करने में असमर्थ है। वह किं कर्तब्य विमूढ़ की स्थिति में है। यही हाल रहा तो कांग्रेस की दशा रावण के खानदान वाली हो जायेगी, जिसके एक लाख पूत, सवा लाख नाती ता रावण घर दिया न बाती की स्थिति हो गई।
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