Breaking News

Post Top Ad

Your Ad Spot

बुधवार, 1 दिसंबर 2021

मायावती के ब्राह्मण दांव जब फेल हुए तो अब पश्चिमी यूपी से राजधानी का सफर तय करने पर बनाया प्लान

सूबे में विधानसभा चुनाव-2022 की तैयारी में बसपा सुप्रीमों मायावती भी लगातार पैतरें बदलकर नई-नई चाल चल रही हैं,हालाँकि अभी तक उनकी सारी चालें फेल रही हैं  


भटकती जा रही हैं,बसपा सुप्रीमों मायावती...

लखनऊ। उत्तर प्रदेश वर्ष-2022 विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश में सियासी सरगर्मियां दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। समाजवादी पार्टी के मुखिया व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने समाजवादी विकास यात्रा को बुंदेलखंड से शुरू करने का निर्णय किया है। आज बुधवार से तीन दिन दिनों तक अखिलेश यादव बुंदेलखंड में रहेंगे और इस दौरान महोबा और बांदा में जनसभा को संबोधित भी करेंगे। बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अखिलेश यादव को टक्कर देने के लिए तैयारी कर ली है। अखिलेश यादव के जातीय समीकरण पर बसपा मुखिया की खास नजर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा मुखिया मायावती जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण पर फोकस कर रही हैं। सूबे की राजधानी लखनऊ में मंगलवार को बसपा मुखिया मायावती ने पार्टी ऑफिस में मुस्लिम, जाट, ओबीसी नेताओं के साथ बैठक की। इस बैठक में जाट-मुस्लिम-दलितों को पार्टी से जोड़ने के निर्देश दिए गए हैं। 


प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 86 सीटों में मुस्लिमों और जाट समुदाय को जोड़ने के लिए पार्टी के अभियान की समीक्षा हुई और जमीनी स्तर पर छोटी-छोटी बैठकें करने को कहा गया है। बसपा मुखिया ने भाजपा सरकार पर मुस्लिमों के उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए कहा कि मुसलमानों को फर्जी मामलों में फंसाकर उनका उत्पीड़न किया जा रहा है मुसलमानों में डर पैदा करने की कोशिश की जा रही है। जाट समाज के साथ‌ भी सौतेला व्यवहार किया गया। बसपा मुखिया ने बैठक के दौरान वादा किया कि अगर उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार बनती है तो जाटों के साथ मुस्लिमों और दलितों की मदद की जाएगी। बहुजन समाज पार्टी की सरकार में तीनों जातियों के कल्याण का ध्यान रखा जाएगा। बसपा की सोशल इंजीनयरिंग इस बार फेल होती दिख रही है। परदेश की जनता मायावती के हथकंड़े जान और समझ चुके हैं। अब उन्हें मायावती का कोई दांव पसंद नहीं आ रहा है। एक तरह से कह सकते हैं कि अब बसपा सुप्रीमों मायावती प्रदेश की जनता में अपनी साख हो चुकी हैं।   


मायावती को अखिलेश के जिन्ना प्रेम‌ से टेंशन...


बसपा मुखिया मायावती का सियासी दांव अखिलेश यादव की सपा और जयंत चौधरी की आएलडी के बीच गठबंधन के ऐलान के बाद आया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में जाट, मुस्लिम और दलित मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं और यही वजह है कि सपा ने आरएलडी के साथ सियासी समझौता किया है। मायावती ने भी सपा-आएलडी के गठबंधन से लड़ने की योजना तैयार की है। अखिलेश यादव के जिन्ना पर दिए गए बयान के बाद से मायावती मुसलमानों पर अपनी नजर लगा रखी है। माना जाता रहा है कि अखिलेश यादव ने जिन्ना पर मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखकर बयान दिया है। बसपा का मूल वोटबैंक दलित भी खिसक चुका है। दलित पहले कांग्रेस का वोटबैंक माना जाता रहा,परन्तु बसपा की स्थापना और मायावती के प्रेम में दलित धीरे-धीरे बसपा में आता गया और मायावती इसी का फायदा उठाकर सवर्णों के हाथ दलित वोटबैंक का सौदा करके टिकट देने की चाल चली, जो सफल रही। परन्तु विधानसभा चुनाव-2022 में बसपा से दलित वोट भी खिसकता नजर आ रहा है।    

 

भाजपा समेत दूसरे दल अखिलेश यादव से भले ही जिन्ना वाले बयान पर सवाल पूछ रहे हों, लेकिन मायावती को चिंता है कि अखिलेश यादव के बयान से मुस्लिम वोटर प्रभावित हो सकते हैं। इससे निपटने के लिए मायावती ने ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम चेहरों को चुनाव में उतारना शुरू किया है। आपको बता दें कि प्रदेश की सियासत में पश्चिमी यूपी का अहम  महत्व है। पश्चिमी यूपी में मुरादाबाद, बदायूं, बरेली, आगरा, मथुरा, बागपत, गाजियाबाद, नोएडा, बुलंदशहर, मेरठ, हापुड़, सहारनपुर, अलीगढ़, हाथरस, कासगंज, रामपुर, शाहजहांपुर, फिरोजाबाद, एटा, बिजनौर, इटावा, औरैया, फर्रुखाबाद जैसे जिले आते हैं और लगभग 120 सीटें हैं। पश्चिमी यूपी में जाटों की संख्या 20 फीसदी है। मुस्लिम 30 से 40  फीसदी के आसपास है। यही कारण है कि सभी की नजर पश्चिमी यूपी पर पड़ी हुई है। बसपा और सपा को लगता है कि भाजपा से नाराज मतदाता इस बार भाजपा को मत नहीं देंगे। इसलिए सपा, बसपा और कांग्रेस सभी की निगाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी सीटों पर है।  


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Top Ad

Your Ad Spot

अधिक जानें