द्वापर युग में महाभारत (Mahabharat) के युद्ध से ठीक पहले कुरुक्षेत्र (Kurukshetra) के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) ने इसी पावन तिथि पर अपने मुख से अर्जुन को गीता का दिया था,उपदेश - श्री सेवानिधी गौरंग दास
श्रीमदभागवत गीता पुस्तक भेंट करते सेवानिधी गौरंग दास महराज... |
मोक्षदा एकादशी श्रीमदभागवत गीता जयंती के शुभ अवसर पर आज दोपहर में जिला कारागार प्रतापगढ़ के परिसर में बंदियों और कैदियों के बीच में श्रीहरि नाम सकीर्तन और गीता उपदेश का आयोजन रखा गया। जिला कारागार में आयोजित कार्यक्रम में कोरोना संक्रमण काल का विशेष ख्याल रखा गया। बंदियों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बृन्दावन से पधारे श्री सेवानिधी गौरंग दास जी ने बंदियों को मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कलयुग में बंदियों को महामंत्र का पाठ पढ़ाया और मोक्षदा एकादशी करने से मोक्ष की प्राप्ति होने की बात कही।
जिला कारागार में बंदी को श्रीमदभागवत गीता भेंट करते सेवानिधी गौरंग दास महराज... |
इस एकादशी का उपवास करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ती होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अजुर्न को गीता का उपदेश दिया था, इसलिए मोक्षदा एकादशी का महत्व और बढ़ जाता है। इसी दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी का व्रत रखने से एक दिन पहले से ही प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन, जौ आदि का सेवन न करें। व्रत करने के लिए मन, वचन व कर्म की शुद्धि जरूरी है। ऐसे में अपनी वाणी या कर्म से किसी भी व्यक्ति को दुख न दें। साथ ही, इस दिन किसी के बारे में बुरा न सोचें। इस दिन बाल कटाना, दाढ़ी बनाना, नाखून काटना नहीं चाहिए।
दुशाला ओढ़ाकर जेलर डॉ राजेंद्र प्रताप चौधरी का स्वागत करते ब्यापारी नेता अनिल कुमार... |
मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी व गीता जयंती एक दिन मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत के प्रभाव से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्रतियों के सभी पापों का नाश होता है और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण रूप से पूरी होती है।श्रीमदभागवत गीता में इंसान के जन्म से लेकर मौत तक के चक्र और मृत्यु के बाद के चक्र को विस्तार पूर्वक बताया गया है। कहा जाता है कि गीता में दिए गए उपदेश जीवन के हर मोड़ पर व्यक्ति के मार्गदर्शन में काम आते हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में महाभारत (Mahabharat) के युद्ध से ठीक पहले कुरुक्षेत्र (Kurukshetra) के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) ने इसी पावन तिथि पर अपने मुख से अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
जिला कारागार में जेलर डॉ राजेंद्र प्रताप चौधरी को माल्यार्पण करते सेवानिधी गौरंग दास... |
इसलिए माना जाता है कि इसी दिन श्रीमदभागवत गीता का जन्म हुआ था। यही वजह है कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। हालांकि द्वापर युग में श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया गीता का ज्ञान आज के जीवन में हर किसी पर बिल्कुल सटीक बैठता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि श्रीमदभागवत गीता में इंसान के जीवन का सार छुपा है और इसमें हर व्यक्ति के जीवन की समस्याओं का समाधान स्थित है। दरअसल, श्रीमदभागवत गीता की बात करें तो इसमें कुल 18 अध्याय हैं, जिसमें पहले के 6 अध्यायों में कर्मयोग, दूसरे के 6 अध्यायों में ज्ञानयोग और आखिरी के 6 अध्यायों में भक्तियोग के उपदेश दिए गए हैं। कुरुक्षेत्र में इन्हीं उपदेशों के जरिए भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मार्गदर्शन किया था। कहा जाता है कि आज भी गीता के ये उपदेश मुश्किल हालात में इंसानों का मार्गदर्शन करने में मददगार साबित होते हैं।
यही वजह है कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। हालांकि द्वापर युग में श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया गीता का ज्ञान आज के जीवन में हर किसी पर बिल्कुल सटीक बैठता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि श्रीमदभागवत गीता में इंसान के जीवन का सार छुपा होता है और इसमें हर व्यक्ति के जीवन की समस्याओं का समाधान स्थित है। परन्तु समस्या का समाधान तभी संभव हो सकेगा जब ब्यक्ति उसे अपने जीवन में धारण करने का संकल्प ले।
1- वासना, क्रोध और लालच ये तीनों नर्क के द्वार हैं।
2- जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है, इसलिए जो होना ही है उस पर शोक मत करो।
3- जो मन को नियंत्रित नहीं करते हैं, उनके लिए उनका मन शत्रु के समान कार्य करता है।
4- व्यक्ति अपने विश्वास से निर्मित होता है, वो जैसा विश्वास करता है वैसा ही बन जाता है।
5- इंसान की इच्छाएं ही उसकी सभी परेशानियों की जड़ है, इसलिए अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखें।
6- सच्चा मित्र वही होता है जो आपके बुरे वक्त में साथ न छोड़े, दुख और परेशानी में सदा साथ दे।
7- स्वार्थ व्यक्ति को अन्य लोगों से दूर नकारात्मक हालातों की ओर धकेलता है, इसलिए स्वार्थी न बनें।
8- चंचल मन को नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
9- जो कर्म प्राकृतिक नहीं है, वह हमेशा तनाव पैदा करता है।
10- अपने कर्म पर अपना दिल लगाएं, उसके फल की चिंता न करें।
बंदियों को प्रेरणा देते हुए श्री सेवानिधी गौरंग दास जी ने कहा कि अपने कर्म को सुधारो और आचरण को ठीक करो। सारे दुःख कट जायेंगे। इस अवसर पर उनके सहयोगी शिवा विश्वकर्मा, आकाश पाण्डेय, संगम लाल विश्वकर्मा, अनिल विश्वकर्मा, पतंजली योगपीठ के दुर्गेश जी, खुलासा इंडिया के संपादक रमेश तिवारी राज़दार, जिला कारागार के जेलर डॉ राजेंद्र प्रताप चौधरी, डिप्टी जेलर अवधेश प्रसाद राय एवं सुनील कुमार द्विवेदी सहित सैकड़ों बंदी श्रीहरि नाम के कीर्तन में शामिल रहे। जेल में निरुद्ध बंदियों को जेल मैनुअल के मुताविक उन्हें श्रीमद्भगवत गीता की पुस्तक भेंट की गई और उन्हें कहा गया कि वह उसे पढ़कर अपने जीवन में उतार लें। ताकि उनका कष्ट दूर हो सके। आयोजन के अंत में प्रसाद स्वरुप सभी को फल में केला और सेब दिया गया।
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