जनहित याचिका के आदेश को योगी सरकार की भ्रष्ट नौकरशाही ठंडे बस्ते में डालकर अनुपालन करने में करती हैं,हीलाहवाली
माननीय उच्च न्यायालय में योजित रिट याचिका संख्या-975/2021पी आई एल में पारित आदेश दिनांक-7/7/2021का आदेश का अनुपालन न करने पर याचिकाकर्ता ने दाखिल की अवमानना याचिका
प्रयागराज। सूबे में प्रयागराज मंडल में कुल चार जनपद हैं, जिनमें प्रयागराज जनपद स्वयं भी शामिल है और प्रयागराज मंडल में मंडलायुक्त प्रयागराज में ही विराजमान रहते हैं। मजेदार बात यह है कि प्रयागराज में हाईकोर्ट इलाहाबाद भी स्थापित है और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी प्रयागराज में ही निवास करते हैं। इतने के बावजूद योगी सरकार की भ्रष्ट नौकरशाही की दशा देखकर दांतों तले अंगुली दबा लेने का मन करता है। चूँकि मामला ही कुछ ऐसा है। अब बात करते हैं उस प्रकरण की, जिसमें हाईकोर्ट का आदेश भी प्रयागराज में तैनात अधिकारियों के लिए बौना साबित हो रहा है।
सोरांव तहसील का एक मौजा ग्राम देवरिया है, जहाँ के रहने वाले राम अवध पुत्र मथुरा एवं अन्य ग्रामवासी अपने ही गाँव के एक तालाबी आराजी को बचाने के लिए सोरांव के उप जिलाधिकारी महोदय के समक्ष एक प्रार्थना पत्र दिनांक- 17/05/2021 को देते हुए फरियाद किया कि उन्हीं के गाँव के ही नन्दलाल पुत्र स्व. भागीरथी व अनूप पुत्र शम्भूनाथ एवं अविनाश पुत्र नन्दलाल एकराय होकर सरकारी भूमि के तालाबी आराजी में मिट्टी डालकर उसे पाट रहे हैं। यदि तालाब को पाटने से रोका न गया तो अन्य ग्रामीणों को सिंचाई और पालतू जानवरों को नहलाने और उन्हें पानी पिलाने आदि कार्यों में समस्या उत्पन्न होगी। तालाब में साल के 365 दिन पानी रहता है और उसे गाँव के लोग ही अपने उपभोग में लेते हैं।
माननीय सुप्रीम कोर्ट और केंद्र व राज्य सरकार कहती है कि तालाब को मनरेगा के तहत उसकी खुदाई कराकर उसका सौंदर्यीकरण कराकर सार्वजनिक उपयोग में लाया जाये, जिसके लिए पंचायत स्तर पर बड़े पैमाने पर धन आवंटित होता है और ग्राम प्रधान व सेक्रेटरी की जिम्मेदारी होती है कि उस तालाब का कायाकल्प करके उसे ग्राम वासियों को सौंप दें। यदि तालाबी आराजी पर किसी का अवैध कब्जा हो तो राजस्व विभाग उसे मयफोर्स उस अतिक्रमण को खाली कराकर उसे ग्राम प्रधान को सुपुर्द कर दे। क्योंकि ग्राम प्रधान उस ग्रामसभा की समस्त सरकारी भूमि का प्रबंधक होता है। प्रत्येक गाँव में भूमि प्रबंधक समिति होती है और उस ग्रामसभा का प्रधान ही उसका प्रबंधक होता है। शिकायतकर्ता राम अवध की शिकायत को उप जिलाधिकारी सोरांव ने सोरांव के एसएचओ और हल्का लेखपाल को आदेशित किया कि तत्काल अविलम्ब जाँच कर लें, सार्वजनिक उपयोग की भूमि पर अवैध अतिक्रमण न होने पाए। उक्त आदेश दिनांक- 17/05/2021 को उप जिलाधिकारी सोरांव द्वारा दिया गया, परन्तु उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
शिकायतकर्ता को प्रतीत हुआ कि सिस्टम में बैठे भ्रष्ट लोग ग्रामसभा की सार्वजनिक उपयोग की भूमि को अंदर ही अंदर अतिक्रमणकर्ताओं से मिलकर उसे बेंच खायेंगे। ऐसा सोचकर और उस सार्वजनिक भूमि को बचाने के लिए राम अवध पुत्र मथुरा द्वारा माननीय हाईकोर्ट इलाहाबाद में एक रिट याचिका संख्या-975/2021पी आई एल दाखिल की, जिसमें माननीय हाईकोर्ट ने प्रकरण की सुनवाई करते हुए दिनांक-07/07/2021 को आदेश पारित करते हुए उप जिला मजिस्ट्रेट सोरांव को निर्देशित किया कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता कोड-2006 की धारा-67 के तहत अवैध रूप से ग्राम- देवरिया, परगना-मिर्जापुर चौहारी, तहसील-सोरांव, जनपद-प्रयागराज की गाटा संख्या-324-ख, रकबा-0.2100 हेक्टेयर, गाटा संख्या-358, रकबा-0.0200 हेक्टेयर, गाटा संख्या-363, रकबा-0.0700 हेक्टेयर, गाटा संख्या-361, रकबा-0.0500 हेक्टेयर एवं गाटा संख्या-419, रकबा-0.0330 हेक्टेयर पर अतिक्रमण को खाली कराएं। उक्त हाईकोर्ट इलाहाबाद के आदेश की प्रति लगाकर याचिकाकर्ता राम अवध ने सोरांव के उप जिला मजिस्ट्रेट को पुनः एक प्रार्थनापत्र दिनांक-10/07/2021 को दिया कि माननीय हाईकोर्ट इलाहाबाद द्वारा पारित आदेश का अनुपालन कराएं।
याचिकाकर्ता के प्रार्थना पत्र पर इस बार सोरांव के उप जिला मजिस्ट्रेट महोदय ने आदेश जारी किया कि तहसीलदार सोरांव कृपया संलग्नक माननीय न्यायालय के आदेश के अनुपालन में समयांतर्गत कार्यवाही करायें।मजे की बात यह रही कि इस बार भी योगी सरकार के निकम्मे अफसरों ने माननीय हाईकोर्ट के आदेश को अपने पिछवाड़े दबाकर रख लेना ही उचित समझा। थक हारकर याचिकाकर्ता राम अवध ने इस बार माननीय हाईकोर्ट इलाहाबाद के समक्ष कोर्ट ऑफ कंटेम्प्ट अप्लिकेशन सिविल नम्बर-4862 दाखिल की जिसमें सोरांव के उप जिला मजिस्ट्रेट अनिल चौधरी को पार्टी बनाया। उक्त कोर्ट ऑफ कंटेम्प्ट अप्लिकेशन सिविल नम्बर-4862 में दिनांक-29/10/2021 को माननीय हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि गया कोर्ट ऑफ कंटेम्प्ट अप्लिकेशन सिविल अधिनियम-1971 की धारा-12 के तहत क्यों न कार्यवाही की जाए ? यानि माननीय हाईकोर्ट के आदेश और कोर्ट ऑफ ऑफ कंटेम्प्ट अप्लिकेशन सिविल के आदेश का भी भय योगी सरकार के नौकरशाहों में लेशमात्र नहीं है। फिर एक सामान्य प्रार्थना पत्र पर कैसे विश्वास किया जाए कि ये भ्रष्ट और निकम्मी नौकरशाही कार्यवाही करती होगी ? तभी तो नाराज होकर सुप्रीम कोर्ट के कई माननीय जस्टिस यह कहने के लिए विवश हुए कि इस देश का भला भगवान भी नहीं कर सकते।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें