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गुरुवार, 4 नवंबर 2021

प्रतापगढ़ सांगीपुर की घटना के आरोपियों की गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट ने बिना ठोस साक्ष्य एकत्र किये लगाई रोक, विवेचना में आरोपियों को विवेचना अधिकारी को सहयोग करने का दिया निर्देश

माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की खंडपीठ लखनऊ द्वारा जारी आदेश की अभियुक्तगण करा रहे गलत ब्याख्या, कांग्रेस नेता प्रमोद कुमार के विरुद्ध दर्ज मुकदमों में उनके द्वारा प्रस्तुत रिट याचिका संखया- 22637/ /2021एमबी अभी भी न्यायालय में है,लम्बित 


प्रतापगढ़ सांसद संगम लाल गुप्ता के विधवा विलाप का हाईकोर्ट ने कर दिया पोस्टमार्टम, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, देश के गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से जानमाल की गुहार लगाना, नहीं आया काम 

हाईकोर्ट लखनऊ ने सशर्त जारी किया गिरफ्तारी पर रोक के आदेश... 

लालगंज। सांगीपुर ब्लॉक परिसर में बीती पच्चीस सितंबर को हुई हाईप्रोफाइल घटना में हाईकोर्ट ने एक तरफ से दर्ज की गई छः एफआईआर पर आरोपियों की गिरफ्तारी पर बिना ठोस साक्ष्य के एकत्र किये रोक लगा दी है।सांगीपुर ब्लॉक परिसर में पच्चीस सितंबर को ब्लॉक मुख्यालय पर हुए सरकारी कार्यक्रम के दौरान भाजपा तथा कांग्रेस समर्थकों मे भिडंत हो गयी थी। इस घटना को लेकर सांसद संगम लाल गुप्ता के सेक्रेटरी सुनील कुमार, देवेन्द्र प्रताप सिंह, अभिषेक कुमार मिश्रा, ओमप्रकाश पाण्डेय द्वारा पूर्व राज्यसभा सदस्य प्रमोद कुमार तथा क्षेत्रीय विधायक आराधना मिश्रा उर्फ मोना समेत कांग्रेस समर्थकों के खिलाफ मारपीट व हमले की एफआईआर दर्ज करायी गयी थी। जिसमें पुलिस ने कुछ आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया है फिलहाल पूरी घटना राजनीति से प्रेरित रही कमजोर लोगों को पुलिस भी जल्दी उठाकर जेल भेज देती है और प्रभावशाली लोगों को खुलेआम घूमने के लिए आजाद छोड़ देती है   


वहीं सांगीपुर के तत्कालीन कोतवाल तुषार दत्त त्यागी द्वारा भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं के द्वारा सरकारी कार्य में बाधा डालने और पुलिस के साथ अभद्रता एवं मारपीट करने की एफआईआर लिखाई गई है। हालांकि कोतवाल तुषार दत्त त्यागी ने दर्ज कराये गये मुकदमें में कांग्रेस नेता प्रमोद कुमार तथा विधायक मोना मिश्रा की घटना में किसी भी प्रकार की भूमिका नहीं दर्शायी। यहाँ भी सांगीपुर थानाध्यक्ष तुषार दत्त त्यागी ने खेल कर दिया पुलिस ने इस मामले में नौ आरोपियों को अज्ञात के रूप में चिन्हित कर जेल भेज दिया। जबकि एक अन्य आरोपी को बाद में गिरफ्तार किया गया। पुलिस द्वारा आरोपयों के यहां दबिश को लेकर चंद्रशेखर सिंह समेत कई अन्य ने पुलिस कार्रवाई को गलत ठहराते हुए हाईकोर्ट इलाहाबाद की खंडपीठ लखनऊ में याचिका दायर कर दी। हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय एवं न्यायमूर्ति सरोज यादव की डिवीजन बेंच ने एफआईआर दर्ज कराने वालों के मेडिकल रिर्पोट का भी अवलोकन किया। 


हाईकोर्ट के आदेश में सिर्फ यही उल्लेख किया गया है कि दर्ज मुकदमें की विवेचना में आरोपियों द्वारा विवेचना अधिकारी की मदद करें। विवेचना में सहयोग करके विवेचना को पूर्ण कराये। साथ ही बिना ठोस साक्ष्य एकत्र किये किसी आरोपी की गिरफ्तारी न की जाए। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने अपने छः पृष्ठीय आदेश में सभी पहलुओं पर ध्यान देते हुए अपना आदेश जारी किया, परन्तु राजनीतिक मामला होने के कारण याचिकाकर्ता चन्द्रशेखर सिंह की तरफ से सोशल मीडिया पर आदेश से हटकर अपने फायदे के लिए खबर चलवाकर वाहवाही लूटने का कार्य किया। सोशल मीडिया पर चल रही खबर को पढ़कर और हाईकोर्ट के आदेश को पढ़कर लगता है कि याचिकाकर्ता अपना पक्ष जनमानस में बढ़ा चढ़ाकर पेश करना चाहते हैं। ताकि कांग्रेस और उसके नेता की छवि साफ सुथरी रहे और आगामी विधानसभा चुनाव में उससे नुकसान न हो सके। भीड़ के द्वारा पीट पीट कर हत्या करने के मामले ऐसे ही तो होते रहे हैं। जिसे मॉब लिंचिंग कहा जाता है मॉब लिंचिंग में बिना किसी हथियार और औजार के ही भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार दिया जाता है उसका प्रत्यक्ष उदाहरण सांगीपुर ब्लॉक परिसर की घटना रही, जिसे लोग हल्के में ले रहे हैं 


सांगीपुर ब्लॉक परिसर में हुई घटना के सम्बन्ध में दर्ज एफआईआर में आरोपी चंदशेखर सिंह की रिट संख्या- 24204/2021 एमबी में कोर्ट ने सिर्फ आंशिक राहत दी है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि दोषियों को पुख्ता और ठोस सबूत मिलने तक गिरफ्तारी न हो। जबकि उच्च न्यायालय के आदेश को तोड़ मरोड़ कर आरोपीगण प्रस्तुत कर रहे हैं उच्च न्यायालय के आदेश की गलत ब्याख्या कर प्रशासन को गुमराह करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में वादी/पीड़ित भाजपा नेता ओम प्रकाश पाण्डेय उर्फ गुड्डू एसएलपी दाखिल करने की बात की है आरोपियों की लंबी क्रिमिनल हिस्ट्री और ब्लॉक परिसर में दौड़ा दौड़ाकर बीडीओ को पीटने वालों की हकीकत और उनको संरक्षण देने वाले कांग्रेस नेता की करतूतों को शीर्ष अदालत के सामने रखने का दावा किया है। साथ ही फर्जी खालिस्तान के समर्थन में भगोड़े सैनिकों से खतरा जताकर हाई सिक्योरिटी लेने के मामले को भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखने की बात की है। उच्च न्यायालय के आदेश पर जश्न मनाने मुल्जिमानों के घर पहुँचे कांग्रेस नेता को अदालत के संज्ञान में लाकर कार्यवाही कराने की बात दोहराई है


मेडिकल रिर्पोट में साधारण चोटों को प्रदर्शित देख हाईकोर्ट ने इस पर पुलिस द्वारा धारा- 307 लगाये जाने को लेकर खासी नाराजगी जताई। याचिका का विरोध कर रहे अधिवक्ता ने जब कोर्ट के सामने यह दलील दी कि घटना में सांसद संगम लाल गुप्ता के कपड़े फट गये थे तो अदालत ने पूछा कि क्या सांसद जी के कपड़े फटने पर धारा- 307 का मुकदमा होगा ? कोर्ट ने पुलिस द्वारा साधारण चोटों पर जानलेवा हमला की धारा- 307 की धाराएं लगाये जाने पर गहरी नाराजगी जताई। वहीं डिवीजन बेंच ने सरकारी पक्ष से यह भी सवाल पूछा है कि वह बताए कि एक ही समय पर घटी एक ही घटना में छः एफआईआर लिखाये जाने का क्या औचित्य है ? हाईकोर्ट खंडपीठ लखनऊ ने आरोपियों की गिरफ्तारी पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाते हुए पुलिस की भूमिका पर भी कड़ी फटकार लगाई है। परन्तु अभी यह मामला आम नागरिक का होता तो उसे न तो पुलिस सुनती और न ही हाईकोर्ट की डबल बेंच सुनती। हाईप्रोफाइल मामला होने की वजह से हाईकोर्ट भी सुनवाई की, वर्ना पुलिस द्वारा ऐसे प्रकरण अक्सर किये जाते हैं और बिना कुसूर के ही लोग जेल की हवा खाने को मजबूर होते हैं।   


चेहरा, पद और प्रतिष्ठा देखकर आजकल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी सुनवाई करने लगी गई। आम जनता के ऊपर ऐसे पुलिस उत्पीड़न पर न्यायालय भी कहती है कि निचली अदालत जाओ वहाँ से राहत लो ! जहाँ से उस ब्यक्ति को राहत ही नहीं मिलती ! पुलिस द्वारा अदालत में रिमांड पेश किया जाता है तो निचली अदालत उसे संज्ञान में नहीं लेती, बस पुलिस की रिमांड देखकर आरोपी को बिना सुने उसे 14 दिन की जेल की हवा खिलाने का हुक्म सुना देती है भारतीय न्याय ब्यवस्था का असली स्वरूप यही है। प्रभावशाली लोगों के लिए अलग ब्यवस्था और जनसामान्य लोगों के लिए दूसरी ब्यवस्था। जबकि कहने के लिए देश में मौलिक अधिकार में देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त है। परन्तु वह सब किताबों में पढ़ने के लिए होते हैं, प्रैक्टिकल लाइफ के लिए नहीं। यही हकीकत है जो ब्यवहारिक रूप में मानते तो सब हैं, परन्तु कहने की हिम्मत सबमें नहीं होती। जिसके पास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए धन नहीं होता, उसे न्याय नहीं मिल पाता। वह आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण अपनी बात शीर्ष कोर्ट तक पहुँचा ही नहीं पाता और उसका न्याय वहीं दम तोड़ देता है।   


लखनऊ हाईकोर्ट द्वारा गिरफ्तारी पर रोक के आदेश का हवाला देते हुए पूर्व राज्यसभा सदस्य प्रमोद कुमार के मीडिया प्रभारी अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश शुक्ल ने दावा किया है कि सांगीपुर ब्लॉक परिसर में हुई मारपीट के प्रकरण में दर्ज एफआईआर के खिलाफ हाईकोर्ट लखनऊ में दायर याचिका की बहस करते हुए हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सीबी पाण्डेय तथा सहायक अधिवक्ता शैलेन्द्र कुमार ने घटना के सभी तथ्यों को प्रस्तुत किया। हाईकोर्ट लखनऊ की डिवीजन बेंच ने सांगीपुर घटनाचक्र को लेकर अख्तियार किये गये कड़े व गंभीर रूख तथा आरोपियों की गिरफ्तारी पर रोक लगाए जाने के आदेश को लेकर बुधवार को यहां कांग्रेसी खेमे में खुशी देखी गई। कांग्रेसियो का कहना है कि यह दीपावली के पूर्व असत्य पर सत्य की जीत का एक और न्यायिक मार्ग प्रशस्त हुआ है। कांग्रेसियो का यह कहना कि सत्य वह है जो वह कह रहे हैं तो इससे जनसामान्य में एक राय नहीं है। सिर्फ हाईकोर्ट से गिरफ्तारी पर रोक लग जाना ही असत्य पर सत्य की जीत नहीं हो जाती। दोनों पक्षों में मारपीट हुई और कई वीडियों सोशल मीडिया के माध्यम से देखने को मिले, जिसमें प्रमोद कुमार स्वयं हाथापाई करते देखे गए। फिर असत्य पर सत्य की जीत कहना गलत होगा।       


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