प्रतापगढ़ पुलिस की दोहरी नीति हुई उजागर,अभी भी प्रतापगढ़ की पुलिस शराब माफियाओं की बनी है,हितैषी
शराब माफिया गुड्डू सिंह के बंद पड़े मकान पर कार्रवाई का दिखावा करती हथिगवां पुलिस... |
प्रतापगढ़। उद्योग विहीन जनपद प्रतापगढ़ में नकली शराब कुटीर उद्योग की कमी को पूरा कर रही है। उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में प्रतापगढ़ की नकली और जहरीली शराब की तस्करी बड़े पैमाने पर की जाती है और इस तस्करी में आबकारी विभाग तो शराब माफियाओं के साथ जुगलबंदी का खेल खेला जाता है और उसमें स्थानीय पुलिस एवं सर्किल ऑफिसर सहित एडिशनल एसपी तक के संलिप्त होने का प्रमाण प्रतापगढ़ में मिल चुका है। कुंडा क्षेत्र में एडिशनल एसपी पश्चिमी दिनेश द्विवेदी, सीओ कुंडा, कुंडा कोतवाल, हथिगवां कोतवाल, उदयपुर कोतवाल की भूमिका संदिग्ध मानकर सबके ऊपर विभागीय कार्रवाई की गई। कुंडा एसडीएम और आबकारी विभाग को दोषी मानकर इन पर शासन स्तर से गाज गिरी। फिर भी शराब माफियाओं से आज भी जिला प्रशासन, आबकारी विभाग और पुलिस महकमा सहानुभूति रखकर उसकी मदद में जुटा रहता है। अपर मुख्य सचिव, आबकारी ने सार्वजनिक रूप से माना था कि जिला प्रशासन, आबकारी विभाग और पुलिस महकमें की मिलीभगत से ही शराब की तस्करी शराब माफिया करते हैं।
राजा भईया के क्षेत्र कुंडा में करोड़ों रूपये की नकली और जहरीली शराब पकड़ी गई थी और मजबूर होकर तीन दिन की कार्रवाई के बाद शासन को करोड़ों रूपये की अवैध शराब के भंडारण से पर्दा उठाना पड़ा था। जबकि हकीकत यह थी कि उस समय करोड़ों रूपये की शराब कुंडा में छिपा कर रख दी गई थी और शराब माफियाओं से जुड़े उनके एजेंट शराब की तस्करी करते रहे। पुलिस महकमा और आबकारी विभाग सहित जिला प्रशासन कुम्भकर्णी नींद में सोता रहा। सुधाकर सिंह पर एक लाख का इनाम रखकर उन्हें खुली छूट दी गई थी और वह अपनी इच्छानुसार STF लखनऊ के समक्ष महानगर लखनऊ में सरेंडर कर दिए। नाटकीय अंदाज में प्रतापगढ़ पुलिस शराब माफिया सुधाकर सिंह को प्रतापगढ़ लाकर बिना प्रेस कांफ्रेंस किये अदालत के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया। छोटे से छोटे प्रकरणों में पुलिस अधीक्षक प्रतापगढ़ प्रेस कांफ्रेंस करके वाहवाही लूटने के लिए आरोपी अभियुक्त को मीडिया के सामने पेश कराने के बाद ही अदालत में पेश कराया जाता है, परन्तु सुधाकर सिंह जो एक लाख का इनामिया रहता है, उसे चुपके से अदालत में पेश कर जेल भेज दिया जाता है। ऐसे में पुलिस पर शराब माफियाओं के साथ संलिप्तता का सवाल तो उठेगा।
महीनों बाद जनता में दिखाने के लिए पुलिस ने शराब माफिया सुधाकर सिंह को रिमांड पर लेकर उनके शराब के ठिकानों पर दबिश दी।शराब माफिया गुड्डू सिंह ने पुलिस की आँखों में धूल झोंककर प्रतापगढ़ की अदालत में फिल्मी अंदाज में सरेंडर कर दिया। कई महीने बाद पुलिस को सपना आया कि शराब माफिया के पास एक और मकान है, जहाँ भारी मात्रा में नकली और जहरीली शराब का भारी मात्रा में भण्डारण किया गया है। सपने को हकीकत में बदलने के लिए हथिगवां थाने कि पुलिस शराब माफिया के बंद पड़े मकान पर अचानक भारी पुलिस बल के साथ पहुंच जाती है। पुलिस द्वारा पूरे घर की तालाशी ली जाती है, लेकिन तलाशी के दौरान पुलिस को कुछ भी नहीं मिलता। शराब माफिया के बंद पड़े मकान में कुछ न मिल पाने के कारण पुलिस बैरंग वापस लौट जाती है। कुंडा पुलिस को सबकुछ पहले से जानकारी थी कि किस शराब माफिया का भंडारण किस जगह पर है ? असलियत जानकार हर कोई स्तब्ध रह जायेगा। सूत्रों के अनुसार यदि जिला प्रशासन, आबकारी विभाग और पुलिस महकमा इमानदारी के साथ शराब माफियाओं के भंडारण पर निष्पक्ष रूप से कार्रवाई करता तो घर में पुरुष तो मिलते न और पुरुषों की जगह घर की महिलाएं शराब की तस्करी में नामजद हुई होती।
दरअसल कुंडा क्षेत्र में कुछ महीने पहले पुलिस द्वारा अवैध रूप से रखे भारी मात्रा में नकली और जहरीली शराब बरामद किया था। इस मामले में बाबूपुर कनावा कुंडा के रहने वाले गुड्डू उर्फ संजय प्रताप सिंह का नाम आया था। पुलिस को सूचना मिली थी कि गुड्डू सिंह का एक और मकान कबडियागंज मुहल्ले के जायसवाल धर्मशाला वाली गली में है। शराब माफिया गुड्डू सिंह का वह मकान बंद है और उस मकान में अवैध रूप से शराब रखे होने की जानकारी मिल रही है। अभी तक तलाशी नहीं ली गयी थी। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने इन बातों को रखा गया और उसके बाद सर्च वारन्ट जारी किया गया। पुलिस ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया गया सर्च वारंट को लेकर शराब माफिया के बंद मकान पर छापेमारी की गयी। लेकिन छापेमारी में पुलिस के हाथ कुछ न लग सका और उसे वैरंग वापस जाना पड़ा। सच बात तो यह है कि प्रतापगढ़ की पुलिस हाथी के उस दांत के समान है जो खाने के लिए कुछ और होते हैं और खाने के लिए कुछ और होते हैं। बिना सिस्टम के मिले किसी भी तरह का अवैध कार्य कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो ? वह उसे अंजाम तक पहुँचा नहीं सकता। इसलिए शराब माफियाओं के संरक्षक असल में सिस्टम से जुड़े लोग ही होते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें