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रविवार, 3 अक्तूबर 2021

लाशों पर राजनीतिक दलों के सुप्रीमों द्वारा दिखावा और वोटबैंक के लिहाज से बहायी जाती है,घड़ियाली आँसू

अपनी राजनीतिक दुकान को पुनः चमकाने का मौका पाते ही  अखिलेश यादव का वैश्य समाज के प्रति प्रेम जग पड़ा, वैश्य समाज के वोटबैंक को समाजवादी पार्टी में कंवर्ट करने के फिराक में सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव गोरखपुर में पुलिस के हाथों मारे गए कारोबरी मनीष गुप्ता के घर परिजनों से मुलाकात करने कानपुर पहुंचे थे 


मृतक मनीष गुप्ता के परिजनों से मिलकर उन्हें सांत्वना देते सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव 

अखिलेश यादव से वैश्य समाज का सवाल उनकी यह हमदर्दी उस दिन कहा गयी थी, जब आगरा के लस्सी विक्रेता भरत यादव को शांतिदूतों ने दिन दहाड़े पीट पीट कर मार डाला था। अखिलेश यादव जी, भरत यादव के परिजनो से मिलना तो छोड़ो उनकी सहानुभूति में दो-शब्द भी नहीं बोले थे जानते हैं, क्यों ? क्योंकि हत्यारे शांतिदूत (मुस्लिम समाज) थे। जी हां, वहीं शांतिदूत जो समाजवादी पार्टी का परम्परागत वोटबैंक रहा है। वोटबैंक नाराज न हो, इसलिए यादव समाज के तथाकथित कुलभूषण अखिलेश यादव को एक यादव की हत्या पर भी सांप सूँघ गया था। जो यादव होकर यादव का न हुआ वह बनिया या किसी और का कैसे होगा ? जो सत्ता की खातिर सगे चाचा शिवपाल यादव का न हुआ वो सर्व समाज का नहीं हो सकता। इसीलिए अखिलेश यादव को टीपू सुल्तान की संज्ञा मिली  


मृतक मनीष गुप्ता के घर कानपुर जाकर अखिलेश यादव का उनकी मौत पर उनके परिजनों से संवेदना प्रकट करना तो एक बहाना है। असल में वैश्य समाज को भाजपा से जुदा करना असल उद्देश्य है। अखिलेश यादव को अपनी सरकार में घटित अपराध के ग्राफ पर एक नजर डाल लेना चाहिए। प्रतापगढ़ के कुंडा में सीओ जियाउल हक की हत्या और हत्यारे योगेन्द्र यादव उर्फ बबलू दोनों को आर्थिक सहायता दी गई और अपनी सरकार पर लगे बदनुमा दाग को देश की सर्वोच्च एजेंसी सीबीआई से कराने की सिफारिश कर दिए। अखिलेश यादव जिस सीबीआई को भ्रष्ट और केंद्र सरकार के हाथ की कठपुतली कहते थे, उसी भ्रष्ट और केंद्र सरकार की कठपुतली से अपनी सरकार पर लगे बदनुमा दाग को अखिलेश यादव ने साफ सुथरा कर अपना और अपनी सरकार का दामन बचाया था।    


संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव पर विशेष कृपा बनाये रखना और उन्हीं से पश्चिम के यादव जाति को सरकारी नौकरी में रखना स्वयं में जीता जागता उदाहरण है। कानपुर से लेकर गोरखपुर तक शासन और प्रशासन को घेरना विपक्ष का कार्य है और मृतक के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ना भी बढ़िया विपक्ष के कर्तब्य निर्वहन की संज्ञा में आता है। परन्तु राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए किये जाने वाले कार्य दिख जाते हैं और वह अधिक दिनों तक नहीं चल पाती सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव का मृतक मनीष गुप्ता के परिजनों से कानपुर जाकर मिलाना सिर्फ अखिलेश यादव की नौटंकी है। अपनी राजनीतिक दुकान चमकाने की महज एक रणनीति है, उसे जनता अच्छे से जानती और समझती है।


राजनीतिक दलों के नेताओं और उस दल के मुखिया की संवेदना सिर्फ दिखावा और छलावा होता है चाहे वह वैश्य समाज का मामला हो अथवा किसी अन्य समाज का मामला हो अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव-2022 के लिए बढ़िया मौका देखकर मृतक मनीष गुप्ता के परिजनों की आँसू पोंछने का कार्य किया है, जो वैश्य समाज के साथ सिर्फ और सिर्फ महज दिखावा और छलावा है। ये समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव द्वारा वोटबैंक बढ़ाने की एक चाल है वैश्य समाज को भाजपा से नाराज करने की अखिलेश यादव की यह एक रणनीति है क्योंकि वैश्य समाज हमेशा ही भाजपा समर्थक माना जाता रहा है। परंतु अखिलेश यादव जी, यह पब्लिक है सब जानती है। समाजवादी पार्टी का नारा है खाली प्लॉट हमारा है, साधू संतों पर लाठी गोली चलाना...!!! 


अयोध्या में हिन्दुओं के अराध्य देव प्रभु श्रीराम जी के मंदिर की राह में बाधा बनना, बलात्कारियों और आतंकवादियो का समर्थन करना, जानता के खून पसीने की टैक्स के रूप में जमा की गयी राशि के अरबों रुपये सैफई में मुजरा करवा कर खर्च करने जैसे आपके सैकड़ों कुकर्म प्रदेश की जनता भूली नहीं है अपनी सरकार में यादव और मुसलमानों को विशेष तवज्जों देना और पश्चिम के यादवों को सरकारी नौकरी में बोरे में अनाज की तरह भर दिया। यह कोई आरोप नहीं बल्कि हकीकत है जो प्रमाणिक है। वर्ष-2012 में जब सूबे में बसपा को सूबे की जनता चुनाव में सत्ता से बेदखल कर दिया और समाजवादी पार्टी को विकल्प के तौर पर पूर्ण बहुमत 224 विधायकों की संख्या प्रदान की थी। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह को धृतराष्ट्र प्रेम जग गया और वह अपनी पहली बीबी से उत्पन्न पुत्र अखिलेश यादव को सूबे की कमान सौंप दी और पाँच वर्ष मुलायम परिवार में इसे लेकर ज्वालामुखी फटती रही 


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