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बुधवार, 6 अक्तूबर 2021

सभी मृतकों के परिजनों को ₹45 लाख, 1-1 सदस्य को सरकारी नौकरी, पूरे क्षेत्र में नेताओं के प्रवेश पर पहले प्रतिबंध, आज कई नेताओं को लखीमपुर खीरी जाने के लिए दी गई अनुमति

मृतकों के साथ भी होता है,सौतेला ब्यवहार ! जो मामले मीडिया ट्रायल में हाईलाइट हो जाते हैं, उसे ही आर्थिक अनुदान मिलता है ! सामान्य ब्यक्तियों की जघन्य हत्या में परिजनों को नहीं मिलता आर्थिक अनुदान !जिला प्रशासन और शासन की नीतियां हैं, अस्पष्ट 


मृतक के परिजनों को 45-45लाख रुपये व परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी...

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में हुई हिंसा में मारे लोगों के लिए सरकार ने मुआवजे की घोषणा की है। प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने हिंसा में मारे गए प्रत्येक मृतक के परिजनों को 45-45 लाख रुपये और परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है। वहीं, घायलों को 10-10 लाख रुपये देने का ऐलान किया गया है। वहीं, घटना की निष्पक्ष जाँच के लिए सरकार उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से मामले की न्यायिक जाँच कराएगी। लखीमपुर घटना के बाद प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। तमाम दलों के नेता अपनी-अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस मुद्दे को अपने हित में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। इसको देखते हुए उत्तर प्रदेश शासन ने जिले में राजनीतिक दलों के नेताओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है।


उत्तर प्रदेश के एडीजी (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा कि हिंसाग्रस्त लखीमपुर खीरी जिले में सीआरपीसी की धारा- 144 लागू कर दी गई है और किसी भी राजनीतिक दल के नेता को यहाँ आने की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि किसान संगठनों के सदस्यों को यहाँ आने पर कोई रोक नहीं है। लखीमपुर खीरी में किसानों से मिलने निकली कॉन्ग्रेस नेता प्रियंका गाँधी को सीतापुर पुलिस ने हरगांव में सुबह 4 बजे हिरासत में ले लिया गया था, जिन्हें शांति भंग के आरोप में चालान किया गया और बाद में उन्हें छोड़ दिया गया। पुलिस हिरासत में प्रियंका उपवास पर बैठ गईं थी। उन्होंने कहा कि जब तक किसानों के परिवारों व अन्य किसानों से वे नहीं मिलेंगी, तब तक अन्न ग्रहण नहीं करेंगी। इधर, समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव को लखीमपुर जाने से रोक दिया, जिसके बाद वे अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गए। कुछ देर बाद अखिलेश को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। 


वहीं, इस बीच गौतमपल्ली थाने के पास कुछ अराजक तत्वों ने एक पुलिस वाहन को आग के हवाले कर दिया। विपक्ष का काम है शासन की गलत नीतियों का विरोध करना न कि जलती हुई आग में घी डाल देना। जब प्रदेश में सामान्य विधान सभा अथवा सामान्य लोक सभा चुनाव आसन्न रहता है तो विपक्ष के सभी नेता लखीमपुर खीरी जैसी घटना पर राजनीतिक रोटी सेंकने से बाज नहीं आते। उन्हें एक पैसे का न तो गम रहता है और न मृतकों के परिजनों के प्रति कोई सहानुभूति ही रहती है। उन्हें सिर्फ अपनी बंद पड़ी राजनीतिक दुकान चमकाने की होंड़ रहती है। चुनाव में अपने-अपने जनाधार को बढ़ाने और खोये हुए जनाधार को वापस पाने की ललक सभी दलों के नेताओं में होती है। नेताओं की घड़ियाली आँसू देखते ही बनता है। नेताओं में नैतिकता का पतन होता जा रहा है। अपनी जिम्मेदारियों के प्रति घोर उदासीनता आधुनिक नेताओं में देखी जा रही है। समाज और जनहित की बातें सिर्फ भाषणों तक ही सीमित रह गई हैं   


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