उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ही होंगे,भाजपा का चेहरा
उत्तर प्रदेश में किसकी बनेगी सरकार...???
सूबे में भ्रष्टाचार पर योगी सरकार अंकुश न लगा सकी। विधानसभा चुनाव- 2022 में महज छः माह का समय शेष हैं। सभी राजनीतिक दलों की छटपटाहट देखते ही बन रहा है। फिलहाल सूबे में एक और दो नम्बर की लड़ाई में भाजपा और सपा ही दिख रही है। इन्हीं दोनों दलों में टिकटार्थियों की कतार भी देखने को मिल रही है। परन्तु चुनाव सम्पन्न होने तक सारे राजनीतिक दलों द्वारा सह मात का खेल खेला जाता रहेगा। सारे राजनीतिक दल उछल कूद मचाने में पीछे नहीं रहेंगे।
भाजपा और सपा में होगा घमासान,तीन और चार के लिए कांग्रेस और बसपा में होगी रार...
उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव की तिथि नजदीक आती जायेगी, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले नेताओं की नीति और नियति में भी बदलाव होता दिखेगा। नेताओं को सबसे पहले अपने दल में टिकट के लिए लड़ना होगा और टिकट मिलने के बाद जनता के बीच में जाकर असल परीक्षा पास करना होगा।फिर बात आती है कि दो तिहाई बहुमत प्राप्त दल को माननीय राज्यपाल महोदय सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें और वह दल सरकार बनाये। जीते हुए उस दल के विधायक को अंतिम संघर्ष करना पड़ता है, जिस दल की सरकार बनती है। इसीलिए साम, दाम, दंड, भेद अपनाते हुए मंत्रिमंडल में जगह पाने की होती है।
डेढ़ दशक के बाद उत्तर प्रदेश की कानून ब्यवस्था को बुरी तरह पटरी से उतारकर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव बेपटरी कर दिए थे। सूबे की जनता तंग आकर बसपा सुप्रीमों मायावती के नेतृत्व में वर्ष- 2007 में बसपा को पूर्ण बहुमत देकर सूबे की कानून ब्यवस्था को पटरी पर लाने के उद्देश्य से सभी दलों को नकार दिया। बसपा की सोशल इंजीनियरिंग वर्ष-2007 में काम कर गई। परन्तु मायावती इस बार मुख्यमंत्री के रूप में कानून ब्यवस्था में कोई अमूल चूर्ण परिवर्तन न ला सकी। बल्कि सूबे में बसपा कार्यकाल में भ्रष्टाचार चरम पर पहुँच गया। चुनाव के छः माह पहले बसपा सुप्रीमों मायावती स्वयं अपने मन्त्रियों तक के टिकट काटने और उनके खिलाफ जाँच कराने सहित उन्हें पार्टी से निष्कासित करने तक के निर्णय लिए, परन्तु सूबे की जनता मायावती के इस पैतरें में नहीं फंसी।
सूबे की जनता का मानना था कि यह सब मायावती दिखावा कर रही हैं। साढ़े चार वर्ष तक मायावती जिस मंत्री को अपने कैबिनेट का हिस्सा बनाकर रखी, उसे अब निकालने का मतलब साफ था कि सब मिली मार है। कांग्रेस और भाजपा की स्थिति उत्तर प्रदेश में सुधरने का नाम नहीं ले रही थी, सो वर्ष-2012 में एक बार समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह के चक्कर में सूबे की जनता आ गयी और पूर्ण बहुमत से मुलायम सिंह को सूबे की सत्ता सौंप दी, परन्तु अखाड़े के जानकर मुलायम सिंह अपने जीवन काल में अपना उत्तराधिकारी के तौर पर अपने बड़े बेटे अखिलेश यादव को सूबे की सत्ता की चाबी दे दी। अखिलेश यादव सिर्फ सांसद रहे और सांसद रहते किसी को इतना अनुभव नहीं हो पाता कि वह उत्तर प्रदेश जैसे सूबे की बागडोर संभाल सके। बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अनुभवहीनता का नौकरशाहों सहित उनके चाचा शिवपाल यादव, आजम खान सहित अन्य सहयोगियों ने फायदा उठाया और बदनामी अकेले अखिलेश यादव के खाते में गई।
अब बात करते हैं, सूबे की वर्तमान योगी आदित्यनाथ की सरकार की। देश में वर्ष-2014 में भाजपा के दिन वापस आये और केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। एक तरह से एक दशक बाद देश में भाजपा का बनबास कटा था। दिल्ली की गद्दी पाने के लिए उत्तर प्रदेश की बहुत अहम् भूमिका होती है। 80 संसदीय सीट वाले उत्तर प्रदेश से मोदी ने 73सीट जीतकर इतिहास रच दिया था। जबकि सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और युवा मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की कमान संभाले थे, परन्तु समाजवादी पार्टी को महज 5 सीट तो कांग्रेस को सिर्फ दो सीट मिली। बसपा की हाथी को अंडा मिला था। बिना सीएम चेहरा के ही भाजपा ने पीएम मोदी के चेहरे को आगे करके उत्तर प्रदेश का विधान सभा चुनाव-2017 लड़ा गया और सूबे की जनता ने भाजपा को 325 सीट जिताकर प्रचंड बहुमत दिया।
संघ के दबाव में हिन्दू छवि के नेता योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई। योगी आदित्यनाथ जी को प्रशानिक कार्य का अनुभव नहीं था, क्योंकि योगी भी सिर्फ गोरखपुर से सांसद निर्वाचित होते रहे। कभी मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं रहे। जो दशा अखिलेश यादव की हुई थी, वही दशा उत्तर प्रदेश की भ्रष्ट और निरंकुश नौकरशाही योगी आदित्यनाथ जी के साथ किया। कई पैतरेबाज़ नौकरशाह जो अखिलेश यादव के कार्यकाल में मलाईदार पद पर बने रहे, वही नौकरशाह योगी सरकार में भी आम और खास बने रहे। मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ जी के कार्यों की समीक्षा की जाये तो नौकरशाही पर योगी आदित्यनाथ जी की भी पकड़ कमजोर रही। सूबे की नौकरशाही पूरी तरह बेलगाम थी और आज भी बनी हुई है। बेईमान और फरेबी किस्म के नौकरशाहों पर योगी जी भी अपनी पकड़ नहीं बना सके। पूरे कार्यकाल में कानून ब्यवस्था भी फेल रही।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें