प्रभु नाम संकीर्तन से जीवन हो जाता है,धन्य...
हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे। हरे राम, हरे राम, राम-राम, हरे हरे॥
प्रभु का सुमरन करें व भगवत् प्रेमी बने... |
हम भाग्यशाली हैं कि हमें प्रभु का दिया हुआ मानव जीवन उपहार रूप में मिला है, परंतु दुर्भाग्य से हम दुनियादारी में रहकर कंकड-पत्थर बटोरने में इतने मशगूल हो गए हैं कि अपने जन्म की सार्थकता को भूल चुके हैं। अभी तक हम अपने और अपनों के लिए ही जियें। अब कुछ परहित के लिए भी जियें। यदि हम लोगों के चेहरे पर हंसी ला सकते हैं, उन्हें जीवन का उद्देश्य समझा सकते हैं तो समझिए कि हमारा जीवन सार्थक है। जीवन का जब अंत समय आएगा तो हमसे यह नहीं पूछा जाएगा कि हमने कितनी पढ़ाई की है, बल्कि यह पूछा जाएगा कि जीवन भर हमने क्या किया ? भगवान की भक्ति की, प्रभु के नाम स्मरण किया ? तो जवाब क्या होगा ? इसलिए बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुध लेई। जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ। बात जोई बनि आवै। दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै। कह 'गिरिधर कविराय, यहै करु मन परतीती। आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती।
झूठी अकड़, झूठे दिखावे में कुछ नहीं रखा है। आपसी प्रेम से हम अप्रतिम संगठन तैयार कर सकते हैं, दूसरों को सम्मान देकर अपने और पराये का भेद मिटा सकते हैं। ध्यान रहे जिंदगी हर पल वैसे ही ढ़ल रही है। जैसे मुट्ठी से रेत फिसलती है। एक दिन ऐसा भी जरुर आएगा, जब लोग जगाएंगें। पर हम सदा के लिए सो चुके होंगे। फिर कभी नहीं उठ पाएंगे। इसलिए हम आज ही कुछ अच्छा करने के लिए उठें, जागें और चल पडें। क्योंकि सब कुछ इस धरा का है और धरा पर रह जाएगा। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि आखिर अच्छा करना क्या है ? "हरि नाम" के सुमरन से और ज्यादा अच्छा क्या हो सकता है, क्या मधुर हो सकता है ? सच तो यह है कि इससे अच्छा कुछ भी नहीं है।जैसे गन्ने का रस, सब जानते हैं कि वह बहुत मीठा होता है, लेकिन पीलिया के रोगी को वह बहुत कड़वा लगता है।परन्तु लगातार पीने से रोगी का रोग दूर होता है और उसे मिठास भी आने लगती है। कलयुग के लिए मीठा और मधुर एक मंत्र जिसे स्वयं श्रीकृष्ण भगवान-चैतन्य महाप्रभु के रूप में उसका शुभारंभ किया था।
हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे। हरे राम, हरे राम, राम-राम, हरे हरे॥
➤प्रस्तुति : सेवा निधि गौरंगदास संतोष शर्मा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें