यूपी चुनावों के बारे में चाचा शिवपाल से फोन पर हुई है,बात-अखिलेश यादव, राष्ट्रीय अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी
जसवंत नगर की एक सीट चाचा शिवपाल यादव के लिए सुरक्षित, अन्य सीटों पर बैठकर हो जायेगी बात, जैसा चाचा का छोटा दल है,वैसी ही होगी सीटों पर बात
शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच आज भी सेतु का काम करते हैं,मुलायम...
आखिरकार सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने और चाचा शिवपाल यादव के बीच पक रही खिचड़ी पर पत्ता खोल दिया है और कहा है कि चाचा और चाचा के दल का समाजवादी पार्टी में सम्मान है, चाचा का छोटा सा दल है, उसके मुताविक उन्हें उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव-2022 में सम्मान के साथ कुछ सीटें दे दी जायेगी, जिसमें जसवंत नगर की एक सीट देनी पहले से ही तय है। अखिलेश और शिवपाल यादव सगे चाचा और भतीजे हैं। वर्ष-2012 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर मुलायम सिंह न बैठकर अपने बड़े बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश की कमान सौंप दी। यह बात चाचा शिवपाल यादव के रास न आई और किसी तरह 5 साल का कार्यकाल पूरा किये। अंतिम वर्ष यानि चुनावी साल में समाजवादी पार्टी में ड्रामा होना शुरू हुआ।
चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव में मिलन के आसार हुए तेज... |
अखिलेश यादव को टीपू सुल्तान तक की उपाधि से नवाजा गया। शिवपाल यादव अपने भाई मुलायम सिंह की चाल को समझ न सके। मुलायम सिंह धृतराष्ट्र बन गए और पुत्रमोह में समाजवादी पार्टी के अंदर महाभारत शुरू हो गया। मुलायम सिंह कभी भाई शिवपाल के मंच पर समाजवादी की टोपी लगाकर पहुँच जाते तो कभी अखिलेश यादव को आशीर्वाद देने समाजवादी पार्टी के मंच पहुँच जाते थे। सबसे मजेदार बात उस समय हुई जब भारत निर्वाचन आयोग में समाजवादी पार्टी के सिम्बल को जब्त करने की बारी आयी तो मुलायम सिंह सबको दाँव देते हुए अपना आवेदन ही वापस ले लिया और कहा कि जिस पेड़ को पाल पोसकर बड़ा किये, उसे वह काट नहीं सकते। उस वक्त सबसे धर्म संकट में मुलायम सिंह के अति करीबी अमर सिंह को झटका लगा था।
भाई और पुत्र के बीच में मुलायम बनते थे,संयोजक...
सारा ड्रामा खत्म हुआ तो शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के सिम्बल पर विधायक रहते हुए भारत निर्वाचन आयोग में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया और स्वयं उस दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन बैठे। भारत निर्वाचन आयोग में किसी भी दल का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए 100 सदस्यों का होना आवश्यक है और वह 100 सदस्य किसी भी राजनीतिक दल के प्राथमिक सदस्य भी नहीं होने चाहिए। इसके लिए सभी सदस्यों से हलफनामा लिया जाता है। परन्तु भारत में कानून का मजाक कानून बनाने वाले ही करते हैं। शिवपाल यादव जो स्वयं जसवंत नगर से समाजवादी पार्टी के सिम्बल साईकिल से चुनाव लड़कर विधायक बने थे, वह स्वयं भारत निर्वाचन आयोग में झूठा हलफनामा देकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया और स्वयंभू उस दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए।
धृतराष्ट्र की भूमिका में मुलायम सिंह...
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद अपने चाचा शिवपाल यादव की विधानसभा सदस्यता को खत्म करने के लिए पत्र लिखा, परन्तु अंदर ही अंदर परिवार प्रेम में मुलायम सिंह के दखल के बाद उसे वापस ले लिया गया और शिवपाल यादव की विधान सभा सदस्यता बरकरार रह गई। शिवपाल यादव सिर्फ भारत निर्वाचन आयोग में ही झूठा हलफनामा नहीं दिए बल्कि लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर अपने दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ते समय फिर झूठा हलफनामा जिला निर्वाचन अधिकारी के समक्ष दिए। शिवपाल यादव इस बात को गोल कर गए कि वह समाजवादी पार्टी के विधायक है और विधायक रहते वह प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के लोकसभा उम्मीदवार हैं।
समय रहते मुलायम सिंह यादव ने वर्ष-2012 में तय कर दिया था,अपना उतराधिकार...
उत्तर प्रदेश में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के चुनाव में उतरने के ऐलान के बाद समाजवादी पार्टी और शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में सुलह समझौते की जो स्थिति बन रही है वह चाचा और भतीजे की राजनीतिक मजबूरी भी हो सकती है। यदि शिवपाल यादव विधायक भी न बन सके तो उनकी राजनीतिक रूप से हत्या हो जायेगी। इसलिए अपने वजूद को बचाए रखने के लिए शिवपाल यादव अपने दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को समाजवादी पार्टी में विलय कर सकते हैं और भतीजे के साथ दो बात सुन व सहनकर एक ही दल में रहकर राजनीतिक मजबूती बनाए रखने में ही भलाई है। यह बात महज तीन साल में ही समझ आ गई। इसलिए चाचा शिवपाल यादव और भतीजा अखिलेश यादव में समझौता की राह आसान हुई है।
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