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गुरुवार, 2 सितंबर 2021

सतीश चंद्र मिश्र के बाद अब उनकी पत्नी, बेटा और दामाद भी ब्राह्मणों को अपना बनाने में जुटे,परन्तु वह भूल गए कि ब्राह्मण काठ की वह हाड़ी है जो दूसरी बार नहीं चढ़ती

स्वनाम धन्य में मस्त रहने वाले सतीश चन्द्र मिश्र को आगे करके ब्राह्मणों को बसपा में जोड़ने का सपना मायावती का इस बार सपना ही रह जायेगा 


ब्राह्मणों को साधने सतीश मिश्र की पत्नी कल्पना मिश्रा भी उतरी मैदान में...

बसपा सुप्रीमों मायावती के बाद बसपा में अब सतीश चंद्र मिश्र ही सबसे ताकतवर नेता हैं बहन जी ने उन्हें वर्ष-2007 की तरह ही फिर से यूपी चुनाव में करिश्मा करने की जिम्मेदारी दी है तो इस काम में उनकी पत्नी कल्पना, बेटे कपिल और दामाद परेश भी मजबूती से साथ दे रहे हैं। जब मायावती यूपी की मुख्यमंत्री थीं तो उनकी एक बहन आभा महिला आयोग की अध्यक्ष तो दूसरी बहन आशा मानवाधिकार आयोग की सदस्य और उनके रिश्तेदार अनंत मिश्र कैबिनेट मंत्री थे सतीश चन्द्र मिश्र वर्ष-2007 से वर्ष- 2012 तक सिर्फ अपना और अपने नात रिश्तेदार का ही भला किये उस समय सतीश चन्द्र मिश्र के लिए सारे ब्राह्मण तेल लेने चले गए थे 

 

बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र की समधन अनुराधा शर्मा भी झांसी से बीएसपी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी हैं तब बीजेपी की उमा भारती ने उन्हें हराया था सोशल मीडिया में इन दिनों सतीश चंद्र मिश्र की पत्नी कल्पना मिश्र की तस्वीरें खूब वायरल हो रही हैं ये तस्वीरें इसी हफ्ते की हैं, जब लखनऊ में उनके घर पर ब्राह्मण महिलाओं का सम्मेलन हुआ था तब उनके पति सतीश चंद्र मिश्र दूसरे शहर में प्रबुद्ध सम्मेलन कर रहे थे। सालों बाद लोगों ने उनकी पत्नी के किसी राजनैतिक कार्यक्रम में देखा था। वैसे इससे पहले मायावती के सीएम रहते हुए वे कुछ मौकों पर बीएसपी के प्रोग्राम में भी शामिल हो चुकी हैं 


कन्नौज की रहने वाली कल्पना ने वही सारे मुद्दे उठाये जो उनके पति कहते रहे हैं उन्होंने कानपुर की खुशी दुबे को इंसाफ दिलाने की बात कही कल्पना मिश्र जब ब्राह्मण महिलाओं की बात करती हैं तो समाज की औरतें उन्हें ध्यान से सुनती हैं सतीश चन्द्र मिश्र के ब्राह्मण सम्मेलनों में महिलाओं की भागीदारी कम होती है तो उसकी भरपाई अब उनकी पत्नी भीड़ जुटाकर कर रही हैं। मायावती की सिर्फ ब्राह्मण वोटों की सियासत के लिए पूरी ताकत झोंक देने की बात अब धीरे-धीरे लोगों को समझ में आ रही होगी। सार्वजनिक जीवन में बड़ा ही त्याग करना पड़ता हैं, जो सबके बस का नहीं होता। सतीश चन्द्र मिश्र सिर्फ अपने लिए और अपने सगे सम्बन्धियों के लिए राजनीति किये और सारा लाभ निजी तौर पर उठाया है। सतीश चन्द्र मिश्र किसी सामान्य परिवार के एक ब्राह्मण परिवार की मदद नहीं की है


उत्तर प्रदेश में राजनीति का जो वर्तमान परिदृश्य है, उसमें मायावती कहीं दूर-दूर तक फिट बैठती नजर नहीं आ रही हैं। वह वर्ष-2007 की तरह इतिहास दोहराने की फिराक में जोर आजमाईश करते हुए पूरी ताकत सिर्फ ब्राह्मण वोटों के लिए झोंक रखी हैं। जबकि सच्चाई यह है कि उनका कोर वोट बैंक अब उनसे खिसकता नजर आ रहा है। और ब्राह्मण भी खुद को मायावती के साथ जाने में असहज दिखाई दे रहा है। जिसका अंदाज कई सम्मेलन कर चुके सतीश चन्द्र मिश्रा को हो गया है। लेकिन यही तो सियासत है, चट भी मेरी पट भी मेरी। ब्राह्मणों को रिझाने के लिए सतीश चन्द्र मिश्र को बसपा सुप्रीमों मायावती ने वर्ष-2022 के लिए जरुर लगा रखा है, परन्तु मायावती यह भूल गई कि ब्राह्मण काठ की वह हाड़ी है जो दूसरी बार नहीं चढ़ती। बसपा महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र जी एक तरफ ब्राह्मण को प्रबुद्ध वर्ग से जोड़कर देख रहे हैं और दूसरी तरफ ब्राह्मण को मूर्ख भी समझ रहे हैं, जो बसपा में ब्राह्मण से मतदान की इच्छा पाल रखे हैं 


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