शिव पुराण में बताया गया है,सावन सोमवार के व्रत का ये खास महत्व...
ॐ नमः शिवाय के जाप मात्र से देवों के देव महादेव हर लेते हैं, सारे कष्ट...
श्रावण मास में होस सके तो रुद्राभिषेक जरुर करें... |
जिस समय का अपना महत्व होता है, ठीक उसी तरह महीने और दिन का भी महत्व माना गया है। समय, काल, परिस्थिति का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी समय के महात्म को माना है और श्रीरामचरितमानस में लिखा है कि धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी। इसलिए समय के हिसाब से ही ब्यक्ति को चलना चाहिए अन्यथा उसे भारी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
सनातन (हिन्दू) धर्म में श्रावण मास हिंद पंचांग के अनुसार 5वां महीना माना जाता है। श्रावण मास शिवजी को विशेष प्रिय है। शिव पुराण के अनुसार, शिवजी ने स्वयं श्रावण मास के बारे में बताया है।
द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ: । श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत: ।।
श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:। यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत: ।।
अर्थात मासों में श्रावण मास मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है। अतः इसीलिए इसे श्रावण कहा जाता है। इस मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है। इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है। इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है। इसीलिए लिए सभी शिवालयों में शिवभक्तों द्वारा जलाभिषेक, भंडारा, रुद्राभिषेक सहित ॐ नमः शिवाय का जाप कराया जाता है।
सनातन धर्म में पुराण का अपना अलग महत्व है। 18 पुराण में शिव पुराण का अपना विशेष महात्म है। शिव पुराण में बताया गया है कि श्रावण मास में शिवजी की पूजा करने से हर प्रकार के शुभ फलों की प्राप्ति होती है। श्रावण मास में अकाल मृत्यु दूर कर दीर्घायु की प्राप्ति के लिए तथा सभी व्याधियों को दूर करने के लिए विशेष पूजा की जाती है। मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए श्रावण माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे। श्रावण मास में मनुष्य को नियमपूर्वक सात्विक भोजन करना चाहिए। मांस, मदिरा सहित मादक पदार्थों से बहुत दूर रहना चाहिए। इसके सेवन से जीवन में अनिष्टकारी कार्य हो सकते हैं।
श्रावण मास के प्रदोष से युक्त सोमवार को यानी सावन के महीने में प्रदोष यदि सोमवार को पड़े तो इस दिन शिव पूजा का विशेष माहात्म्य है। जो केवल सोमवार को भी भगवान शंकर की पूजा करते हैं, उनके लिए इहलोक और परलोक में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं। सोमवार को उपवास करके पवित्र होकर इंद्रियों को वश में रखते हुए वैदिक अथवा लौकिक मंत्रों से विधिपूर्वक भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। ब्रह्मचारी, गृहस्थ, कन्या, सुहागिन स्त्री अथवा विधवा कोई भी क्यों न हो, भगवान शिव की पूजा करके मनोवांछित वर पाया जा सकता है। पुराणों में बताया गया है कि श्रावण मास के दोनों पक्षों में प्रत्येक सोमवार को प्रयत्नपूर्वक केवल रात में ही भोजन करना चाहिए। शिव के व्रत में तत्पर रहने वाले लोगों के लिए यह अनिवार्य नियम है। सोमवार की अष्टमी तथा कृष्णपक्ष चतुर्दशी इन दो तिथियों को व्रत रखा जाए तो वह भगवान शिव को संतुष्ट करने वाला होता है, इसमें अन्यथा विचार करने की आवश्यकता नहीं है। ॐ नमः शिवाय के जाप मात्र से सारे कष्ट देवों के देव महादेव हर लेते हैं।
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