Breaking News

Post Top Ad

Your Ad Spot

शनिवार, 21 अगस्त 2021

कानून का राज कायम करने के लिए भारत में संचालित पुलिस ब्यवस्था को जानिये और समझिये

पुलिस "नागरिक शासन" का एक महत्वपूर्ण अंग है और भारत में आंतरिक कानून ब्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में होती है  


एक तरह से पुलिस "नागरिक शासन" का एक महत्वपूर्ण अंग है...

देश की 70 फीसदी जनता को यह नहीं पता होता कि पुलिस का कार्य और पुलिस का अधिकार कितना ब्यापक होता है ? सर्वप्रथम यह जान लेना अति आवश्यक है कि पुलिस शब्द की उत्पत्ति कब और कैसे हुई ? पश्चिमी देशों के विद्वानों का मत है कि लेटिन भाषा के शब्द पोलिटिया से पुलिस शब्द की उत्पत्ति हुई है। पोलिटिया का अर्थ है, "नागरिक शासन"। एक तरह से पुलिस "नागरिक शासन" का एक महत्वपूर्ण अंग है। इस प्रकार ईसा पूर्व तीसरी सदी में पुन्निस और पुलिस उपयोग अधिकारी के रूप में किया गया है। पुलिस शब्द से जनता में एक भय ब्याप्त रहता है, परन्तु अपराधी किस्म के ब्यक्तियों में पुलिस और कानून दोनों के प्रति कोई डर नहीं होता। इसकी जिम्मेदार स्वयं पुलिस ही है। कभी-कभी तो पुलिस अपने पद और अधिकार का बेजा इस्तेमाल करके स्वस्थ समाज से अपराधी को जन्म देती है 


वर्ष-1860 में ही उत्तर प्रदेश की पुलिस का कर दिया गया था, गठन...

शासन चाहे गुलामी का रहा हो अथवा वर्तमान में लोकतंत्र की बहाली का हो, परन्तु नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेवारी शासक की होती है वर्तमान परिवेश में जनता के जान-माल और शांति की रक्षा का प्रबंध करने वाली ब्यवस्था को ही पुलिस ब्यवस्था की उपाधि मिली पुलिस ब्यवस्था के तहत ही राज्य की कानून ब्यवस्था का संचालन किया जाता है पुलिस विभाग में मुख्य रूप से आरक्षी के कन्धों पर ही कानून ब्यवस्था की जिम्मेदारी का बोझ दिया गया है, जिसे बोलचाल की भाषा में सिपाही कहा जाता है। पुलिस फ़्रेंच भाषा है जिसे अंग्रेजी में Police कहा जाता है और शुद्ध हिन्दी की बात करें तो उसे आरक्षी कहा जाता है। यही पुलिस सुरक्षा बल का कार्य करती है, जिसका उपयोग किसी भी देश की अन्दरूनी नागरिक सुरक्षा के लिये ठीक उसी तरह से किया जाता है, जिस प्रकार किसी देश की बाहरी अनैतिक गतिविधियों से रक्षा के लिये सेना का उपयोग किया जाता है।


पुलिस के कन्धों पर होती है,राज्य में कानून ब्यवस्था की जिम्मेदारी... 

भारत में पुलिस विभाग की स्थापना वर्ष-1843 में उस समय हुई, जब सर चार्ल्स नेपियर ने औपनिवेशिक आयरिश कांस्टेबुलरी की तर्ज पर सिंध में एक पुलिस प्रणाली की स्थापना की। नेपियर की पुलिस ने ईस्ट इंडिया कंपनी को आयरिश कॉन्स्टेबुलरी की तर्ज पर पुलिस की एक सामान्य प्रणाली स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। भारत में आंतरिक कानून ब्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में होती है प्रत्येक राज्य में उस राज्य की पुलिस ही आंतरिक सुरक्षा और उस प्रदेश के नागरिकों को देश के संविधान और कानून के दायरे में रहने के लिए उसे बाध्य करती है और जो नागरिक उसका उल्लंघन करता है तो पुलिस उसके किये गए अपराध के मुताविक उसके खिलाफ मुकदमा लिखकर चालान करती है और सक्षम मजिस्ट्रेट उसकी सुनवाई कर उस पर दंड का निर्धारण करते हैं 


वर्ष- 1859 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद वर्ष- 1860 में पुलिस कमीशन बैठा, जिसकी संस्तुति पर वर्ष- 1861 को पुलिस अधिनियम तैयार किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य जनता को दबाकर रखना था। खर्च कम हो, इस उद्देश्य से हर थाने का प्रभारी अधिकारी हेड-कांस्टेबल को बना दिया गया। उस समय कांस्टेबल की तीन श्रेणियां थीं और उनका वेतन 6, 7, 8 रू० प्रति माह था। कलकत्ता में काम कर रहे वर्ष- 1860 के पुलिस आयोग की संस्तुतियां प्राप्त होने के पूर्व वर्ष- 1860 में ही उत्तर प्रदेश की पुलिस का गठन कर दिया गया था। पुलिस का कार्य और पुलिस के उस कार्य को सम्पन्न करने के तरीके के बीच जो समस्याएं उत्पन्न होती हैं, उसी से उस राज्य की जनता और कानून को चुस्त व दुरुस्त रखने की जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाली पुलिस के बीच मनमुटाव और वैमनस्यता का बीजारोपण होता है  


उत्तर प्रदेश का नाम उत्तरी पश्चिमी प्रान्त था। सातों मडंलों में एक-एक पुलिस अधीक्षक व जिले में सहायक पुलिस अधीक्षक नियुक्त किए गए। नवम्बर, 1860 में प्रान्त में पुलिस महानिरीक्षक की नियुक्ति की गई। साथ ही छः उप महानिरीक्षक के पद सृजित हुए। उस समय उत्तर प्रदेश में कुल 39 जिले थे। प्रत्येक 6 मील पर थाना खुलने का आदेश हुआ और एक हेड कॉन्सटेबल तथा छः कॉन्सटेबलों की नियुक्ति प्रत्येक थाने पर किये जाने का फैसला हुआ। उसके बाद पुलिस आयोग गठित हुए। स्वतंत्रता की लड़ाई प्रारम्भ हो गई। लड़ाई के दौरान जनता में पुलिस की छवि गिर गई, क्योंकि पुलिस का प्रयोग स्वतंत्रता सेनानियों के विरूद्ध किया गया। थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ भारतीय पुलिस का शासन चलता रहा। वर्ष- 1949 में स्वराज्य के बाद वास्तविक परिवर्तन का सूत्रपात हुआ और आज तक पुलिस प्रशासन में सुधार का क्रम जारी है। अंग्रेजों के जमाने का बना कानून और पुलिस ब्यवस्था में अमूलचूर्ण परिवर्तन करना होगा, तभी जाकर पुलिस की छवि और कार्य प्रणाली में सुधार संभव हो सकेगा   


2 टिप्‍पणियां:

  1. जिस देश मे पुलिस का उपयोग चुनाव जीतने के लिए किया जाता विपक्षी के ऊपर दबाव बनाने के ले होता हो उस देश की पुलिस को कदापि नागरिक पुलिस नही कह सकता। क्योंकि जब सरकारे पुलिस का दुरूपयोग करेगी तो पुलिस भी भ्रष्टाचार करेगी इसलिए कदापि पुलिस नागरिक पुलिस नही कही जायेगी। कमोबेश यह स्थित प्रत्येक सरकार मे रहती है

    जवाब देंहटाएं

Post Top Ad

Your Ad Spot

अधिक जानें