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मंगलवार, 3 अगस्त 2021

राजधानी लखनऊ में बीच सड़क पर कैब ड्राईवर को पीटती रही युवती और लड़का उसकी पिटाई को सहता रहा, सिर्फ अपने मोबाइल को तोड़ देने की देता रहा दुहाई

कभी-कभी लड़कों के लिए अबला अब बन जाती हैं, बहुत बड़ी बला...!!!


महिलाएं अब महिला अधिकार का कर रही हैं, दुरुपयोग जो सभ्य समाज के लिए सिद्ध हो सकता है अनिष्टकारी...!!!


लखनऊ में बीच सड़क पर एक लड़की एक कैब चालक को पीटती रही,लोग देखते रहे... 

आधुनिकता की चकाचौंध में अब लड़कियाँ भी गुंडई पर उतारू होने लगी हैं। लड़के गुंडई करते हैं तो वह गुंडे कहलाते हैं और यही कार्य जब एक लड़की करे तो उसको क्या कहा जाए ? यदि बात समानता की करें तो उस दृष्टिकोण से लड़की को गुंडी कहना चाहिए। आज उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ एक लड़की एक कैब ड्राइवर को बीच सड़क गुंडों की भांति पीटती रही, जिसने भी देखा वह लड़की को सभ्य घर की लड़की न मानते हुए उसे और उसके परिवार के संस्कार को दोषी मानकर आगे बढ़ गया। उस दृश्य को देखने वालों का मन बड़ा खिन्न हो गया। लड़की के हाथ पिटने वाला लड़का कैब का ड्राइवर रहा वह तो अपना बचाव करने की भी स्थिति में नहीं था। वो बार-बार चिल्ला रहा था कि मेरा मोबाइल तोड़ दिया, सेठ को क्या जवाब दूंगा ?


पता नहीं फेमिनिज्म के पाठ पढ़ती यह लड़कियां उन लड़कों का दर्द क्यों नहीं समझ पाती ? भरे बाजार में एक लड़का तड़ातड़ चांटे खा रहा है, क्योंकि वो मजबूर है। मारने वाली विक्टम कार्ड प्लेयर मेम... आपको क्या लगता है वो आपको मार नहीं सकता था ? जी नहीं ! वो आपसे कहीं ज्यादा और बेहतर आपको पीट सकता था पर उसे यह पता था कि उसके बाद जो होगा, वो इन चांटो से कई गुना होगा। उसकी नौकरी जा सकती थी। उस पर कार्यवाही हो सकती थी। उसके खिलाफ माहौल बनकर मोर्चा निकल सकता था। और तो और उसे सम्भावित बलात्कारी घोषित किया जा सकता था। इसलिए लड़का अपमान सहते हुए मार खाने में ही अपनी भलाई समझी। क्योंकि यह ही एकमात्र चीज थी जो वो गरीब 'अफोर्ड' कर सकता था। 


इन दिनों लड़कियों का एक ट्रेंड चाल निकला है। बात-बात में पुलिसकर्मियों की तरह गाली देना और जरा सी बात में अपने पैरों से अपनी सैंडिल अथवा जूती को निकाल कर किसी भी सभ्य पुरुष पर अपनी दादागीरी चमकाने की लत लगती जा रही है। वैसे तो कहने के लिए ये लड़कियां अबला हैं, परन्तु लखनऊ की इस लड़की को देखकर अबला नहीं बल्कि बला कहना गलत न होगा। कई महिलाएं और लड़कियां देश में उन्हें मिले अधिकारों का दुरुपयोग करने का ट्रेंड तक बना डाला है। कभी-कभी तो ऐसे महिलाएं दिख जाती हैं जो स्वयं अपने कपड़े फाड़ लेती हैं और शरीर पर जख्म भी बना लेती हैं और उल्टे अबला बनकर न्याय की गुहार लगाने लगती हैं और हमारी न्याय ब्यवस्था भी उन्हीं की सुनकर एक तरफा कार्रवाई भी करने लगता है। कारागारों में कई बंदी और कैदी ऐसे मिल जायेंगे जो ऐसी ही महिलाओं के चंगुल में फंसकर आज सजा भुगत रहे हैं।  


समय रहते पुरुष और समाज में इस पर नहीं चेता तो एक दिन इसका दायरा बढ़ेगा और चौराहों पर ऐसे ही नज़ारे देखने को मिलते रहेंगे। लड़कियों के हाथों लड़कों को पिटने की शुरुवात हो चुकी है। कई जगह देखा गया है कि लड़की किसी लड़के का गिरेबान पकड़कर खींचती रहती है और लड़का चुपचाप सहता रहता है। यह समझ में नहीं आता कि ऐसा करके वो लड़कियां क्या सिद्ध करना चाहती हैं ? आज राजधानी लखनऊ में एक लड़की द्वारा एक लड़के की पिटाई कम बल्कि एक मजबूर और गरीब की पिटाई हुई है। यदि वह लड़का सम्पन्न परिवार से होता तो उसके साथ शायद ऐसा न हुआ होता। समाज में इसका जमकर विरोध होना चाहिए। सभ्य समाज में ऐसा कृत्य स्वीकार नहीं है। इसलिए इस पर चुप्पी साधना ठीक न होगी। इस घटना को उल्टा करके सोचिए कि यदि लड़का भी उस लड़की पर हाथ चला दिया होता तो मामला उल्टा हो जाता। देश के लिये ओलंपिक मेडल जीतकर सम्मान बढ़ाने वाली महिलाओं से सीखती तो ऐसे उछल कूदकर के स्वयं को ताकत वाली बताने की जरूरत नहीं पड़ती।


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