कांग्रेस भी खेलना चाहती है उत्तर प्रदेश में 'ब्राह्मण कार्ड', सीएम चेहरे के लिए अभी से मंथन शुरू...!!!
सत्ताधारी दल भाजपा सहित कांग्रेस, सपा और बसपा भी इस बार ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने में दिन रात कर रही, मंथन...!!!
प्रमोद कुमार को जन्मदिन की बधाई देने पहुँची प्रियंका वाड्रा... |
लखनऊ। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव खत्म होते ही विधानसभा चुनाव-2022 की तैयारी के लिए सभी राजनैतिक दलों में उथल-पुथल शुरू हो गया है। विधानसभा चुनाव में भले ही अभी छह माह से ज्यादा का समय है, लेकिन प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इस बार सत्ता के केंद्र बिंदु में सभी राजनीतिक पार्टियां जातीय समीकरणों को आधार बनाकर ही चुनाव में उतरना चाहती हैं। बसपा सुप्रीमों मायावती एकबार फिर से सतीश मिश्र के कंधे पर ब्राह्मण को रिझाने का दायित्व सौंप चुकी हैं और सोशल इंजीनियरिंग में एक बार पुनः ब्राह्मण को ही केंद्र विन्दु रखकर चुनावी रणभूमि में उतरना चाहती हैं। बहुजन समाज पार्टी अभी से ही ब्राह्मण सम्मेलन का प्लान कर रही है।
वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव भी भगवान परशुराम जी की मूर्ति स्थापित करके ब्राह्मणों को आकर्षित करने की जुगत में जुटी है। जबकि भारतीय जनता पार्टी को पहले से ही ब्राह्मणों के झुकाव वाली पार्टी माना जाता रहा है। अब इन्हीं पार्टियों के नक्शेकदम पर कांग्रेस पार्टी भी चल पड़ी है। पार्टी का प्लान है कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा ब्राह्मण रखा जाए, जिससे कभी कांग्रेस के हितैषी रहे ब्राह्मण वापस लौट आएं। कांग्रेस पार्टी का इतिहास रहा है कि अब तक कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश को 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिए हैं, जो किसी भी पार्टी में सबसे ज्यादा हैं।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल...
गोविंद वल्लभ पंतः 26 जनवरी 1950 से 27 दिसंबर 1954 तक
संपूर्णानंदः 28 दिसंबर 1954 से 6 दिसंबर 1960 तक
चंद्रभानु गुप्ताः 7 दिसंबर 1960 से 1 अक्टूबर 1963 तक
चंद्रभानु गुप्ताः 26 फरवरी 1969 से 17 फरवरी 1970 तक
त्रिभुवन नारायण सिंहः 18 अक्टूबर 1970 से 3 अप्रैल 1971 तक
कमलापति त्रिपाठीः 4 अप्रैल 1971 से 12 जून 1973 तक
नारायण दत्त तिवारीः 21 जनवरी 1976 से 30 अप्रैल 1977 तक
नारायण दत्त तिवारीः 3 अगस्त 1984 से 24 सितंबर 1985 तक
वीर बहादुर सिंहः से 24 सितंबर 1985 से 24 जून 1988 तक
नारायण दत्त तिवारीः 25 जून 1985 से 5 दिसंबर 1989 तक
राजनीतिक पंडितों का मानना हैं कि प्रमोद कुमार कांग्रेस के बहुत पुराने और सेटिंग-गेटिंग के माहिर नेताओं में से एक हैं। प्रमोद कुमार के समर्थकों की कांग्रेस के आलाकमान से रहती है कि प्रमोद कुमार को बहुत दिनों से हासिये पर रखा गया है। प्रमोद कुमार के समर्थक मानते हैं कि उन्हें जो महत्व मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। जबकि पंजाब जैसे राज्य में भाजपा से आयातित नवजोत सिंह सिद्धू को कांग्रेस ने प्रदेशध्यक्ष पद से नवाज कर यह साबित कर दिया कि पार्टी में वफादारी का कोई महत्व नहीं है। महत्व होता तो प्रमोद कुमार को कांग्रेस उसके स्तर का कोई न कोई पद अवश्य दी होती।
इस बात को लेकर पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक दबी जुबान से कहते भी हैं। प्रमोद कुमार की तरह के नेताओं को महत्व देकर चुनावी मैदान में उसे परखने का अब समय आ गया है। उन्हें भी मौका देना चाहिए। पश्चिम बंगाल में 43 सीट से थी, परन्तु इस बार भाजपा की सरकार न बने इसलिए कांग्रेस ने अपनी सीट निकले चाहे न निकले, परन्तु टीएमसी की सीट निकल जाए और सरकार टीएमसी की बन सके। नतीजा यह रहा कि कांग्रेस की सीट शून्य हो गई। फिर भी कांग्रेस पार्टी खुश थी। पश्चिम बंगाल की तरह उत्तर प्रदेश की दशा है। पाँच साल में एक बार ये समय आता है। कांग्रेस के पास जितिन प्रसाद जैसे युवा नेता थे और राहुल गाँधी के अति करीबियों में से थे। उन्हें लगा कि उनकी योग्यता और कद के अनुसार उन्हें कांग्रेस में पद और सम्मान नहीं मिल रहा है तो वह पिछले महीने भाजपा में शामिल हो गए और अपनी पीड़ा भी जनमानस को बताई।
यह सच है कि योगी सरकार में ब्राह्मण भाजपा से नाराज हुआ है। ब्राह्मण एक बार बसपा सुप्रीमों मायावती के सोशल इंजीनियरिंग में अपने को ठगा चुकी है। हाथी नहीं गणेश है, ब्रम्हा विष्णु महेश है। ब्राह्मण शंख बजायेगा, हाथी बढ़ता जाएगा। चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर। बसपा के ये नारे जनता को वर्ष-2007 में बहुत रास आये थे। जबकि बसपा के पुराने नारे सुनकर ब्राह्मण ही नहीं बनिया और ठाकुर भी बसपा से दूर भागता था।क्योंकि बसपा का नारा हुआ करता था कि तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार ! परन्तु वर्ष-2007 में विकल्प में कांग्रेस और भाजपा के न होने पर सपा मुखिया मुलायम सिंह की सरकार से आजिज आकर जनता ने बसपा की हाथी को ही चुन लिया और सतीश मिश्र के नाम के आगे ब्राह्मण भी बसपा के पुराने नारे को भूल गया।
वर्तमान में कांग्रेस पार्टी के पास ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ने का एक अच्छा अवसर है। पार्टी को पुराने ब्राह्मण नेता को पेश करना चाहिए। इससे इस वर्ग के लोग भी पार्टी के साथ जुड़ेंगे। क्योंकि इस वर्ग का जुड़ना किसी भी पार्टी के लिए बहुत मजबूत रणनीति का हिस्सा रहा है और आगे अगर कांग्रेसी भी यह करती है तो उसके लिए भी बेहतर होगा। मध्य प्रदेश की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया को नाराज कर मध्य प्रदेश की सरकार गिरा लेना कांग्रेस की बड़ी भूल रही। कांग्रेस के पास अपना एक बड़ा नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चला गया। भाजपा भी उसे हाथोंहाथ लिया और मंत्रिमंडल विस्तार में मोदी कैबिनेट का हिस्सा बना। यही हाल उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण चेहरा रहे जितिन प्रसाद भी कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा भी उत्तर प्रदेश में नाराज ब्राह्मण को मनाने में जुटी हुई है। जितिन प्रसाद को एमएलसी बनाकर योगी कैबिनेट में जगह देने की कवायद चल रही है।
इस बार प्रमोद कुमार और उनकी लड़की अराधना मिश्रा मोना विधायक रामपुर खास को कांग्रेस बड़ी जिम्मेदारी न दी तो उनका भी मन कांग्रेस से विदक सकता है। यदि उत्तर प्रदेश में प्रियंका वाड्रा ही कांग्रेस का चेहरा बनती हैं तो एक बार उन्हें प्रमोद और मोना स्वीकार कर लेंगे। कहीं गलती से किसी अन्य को कांग्रेस उत्तर प्रदेश के चुनाव में दूसरे नेता को तवज्जों देती है तो प्रमोद और मोना भी कांग्रेस से बगावत करने पर विचार कर सकते हैं। कांग्रेस मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को कांग्रेस में बड़ा पद देने पर विचार कर रही हैं। अभी हाल ही में प्रमोद कुमार के जन्मदिन पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा अचानक प्रमोद कुमार के राजधानी लखनऊ के आवास पर अचानक पहुँच कर प्रमोद और मोना को सरप्राइज दे दिया। उसी के बाद से प्रमोद समर्थक मानने लगे हैं कि इस बार उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रमोद को बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है।
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