कभी प्रतापगढ़ जिले में बजता था,ब्राह्मणों का डंका और आज खतरे में है,ब्राह्मणों का वजूद...!!!
बैंडबाजे में जिस तरह सारे बाजे बजते हैं तो एक ब्यक्ति झुनझुना बजाता है,उसी तरह प्रतापगढ़ की राजनीति में ब्राह्मण बजाएगा झुनझुना...!!!
पहली बार लोकसभा चुनाव में प्रतापगढ़ सांसद निर्वाचित होकर स्व. मुनीश्वर दत्त उपाध्याय बन गए थे,ब्राह्मणों के मसीहा, रजवाड़ों के खिलाफ बजाया था,विगुल...!!!
कथित दिग्गज नेता प्रमोद कुमार का ब्राह्मणों के प्रति धृतराष्ट्र प्रेम की हकीकत... |
प्रतापगढ़। यूं तो प्रतापगढ़ की गिनती भले ही बीमारू और गरीब जिले के रूप में होती हो, लेकिन जब बात राजनीति की होती है तो प्रतापगढ़ का नाम यूपी क्या समूचे उत्तर भारत के राज्यों में एक अलग स्थान के रूप जाना जाता है। इस जिले की राजनीतिक दखल राज्य से लेकर केंद्र तक में रहती है। सभी राजनैतिक दल प्रतापगढ़ में अपनी बिसात बिछाकर एक-दूसरे को मात देने की फिराक में हमेशा रहतें हैं। जिले के दो कथित दिग्गज नेताओं रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और प्रमोद कुमार के राजनैतिक गढ़ के रूप में भी प्रतापगढ़ को लोग जानतें हैं।
रानीगंज विधायक धीरज ओझा भी ब्राह्मणों के नहीं बन सके नेता... |
देश में कोई भी चुनाव हो, वो विकास-रोजगार से शुरू होकर अंत में जाति और धर्म पर आधारित होकर ही खत्म होता है। प्रतापगढ़ जिले की राजनीति भी समय के साथ बदलती जा रही है। जिले में राजनैतिक रूप से जहां अन्य जातियां सशक्त और मजबूत होती जा रही हैं, वहीं कभी जिले की राजनीति में अपना दबदबा रखने वाली ब्राह्मण जाति एकदम शून्यता की ओर चली जा रही है। अपने राजनैतिक अस्तित्व को तलाश करती ब्राह्मण जाति की राजनीति एकदम हाशिए पर है। जिले में शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो ब्राह्मण जाति के प्रति वैसी सहानुभूति रखता हो, जो वो अपने जाति के प्रति रखता हो। जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर उम्मीदवारों को टिकट देने में राजनैतिक पार्टियां भी ब्राह्मणों को कोई ज्यादा तवज्जों नहीं देती हैं।
लोकसभा प्रतापगढ़ के प्रथम सांसद निर्वाचित हुए थे, स्व. मुनीश्वर दत्त उपाध्याय... |
इस बात की समझने के लिए वर्तमान में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पार्टियों द्वारा बाँटे गए टिकट से तय की जा सकती है। जिला पंचायत अध्यक्ष का पद अनारक्षित महिला के लिए है। सभी प्रमुख दलों ने अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा की। समाजवादी पार्टी का मूल आधार यादव और मुसलमान है। समाजवादी पार्टी MY फैक्टर से आगे सोच ही नहीं पा रही है। उसी में फंसी हुई है। बसपा बात तो सोशल इंजीनियरिंग की करती है, परन्तु असल में वह भी दलित चेहरे से अपने को ऊपर न ले सकी। सपा के संगठन में यादव सर्वोपरि होता है और दो नम्बर पर मुस्लिम चेहरा होता है। बसपा के संगठन में तो जिलाध्यक्ष पद पर दलित चेहरा ही चाहिए। जो मेरी बातों से संतुष्ट न हो वह सूबे के 75 जनपदों पर सपा और बसपा का संगठनात्मक चेहरा देखकर आत्म संतोष कर सकता है।
प्रतापगढ़ का परिदृश्य... |
अब नजर डाल लें देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों के चाल, चेहरे और चरित्र पर ! कांग्रेस पार्टी जो देशा की सबसे पुरानी पार्टी है वह सभी जातियों को लेकर चलने का प्रयास पहले करती थी, परन्तु सोनिया गांधी और राहुल गांधी के कार्यकाल में कांग्रेस में भी वोटबैंक को लेकर जातीय संतुलन साधने में काफी गिरावट आई है। सूबे में कांग्रेस की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। संगठन में मजबूत नेता को कमान न देकर जेब में रहने वाले और तेल लगाने वाले को संगठन की कमान सौंपी जाती है। नरसिंह प्रकाश मिश्र, बृजेन्द्र मिश्र और अब डॉ लालजी त्रिपाठी के हाथ में कमान कांग्रेस ने दी है। परन्तु बृजेन्द्र मिश्र को छोड़ दें तो ऐसा कोई कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बना जो प्रमोद कुमार का जेब का न रहा हो !
प्रतापगढ़ की राजनीति में ब्राह्मण बन चुका है बैंड बाजे वाला झुनझुना... |
सत्तापक्ष भाजपा भी संगठन की कमान किसी न किसी ब्राह्मण नेता के हाथों में होती है, परन्तु वह ब्राह्मण नेता सिर्फ अपनी जेब भरने और संगठन के शीर्ष नेतृत्व के नेताओं और संघ के पदाधिकारियों को तेल लगाकर अपनी कुर्सी बचाने तक ही सीमित रह जाते हैं। भाजपा में गणेश नारायण मिश्र, स्वामी नाथ शुक्ल, ओम प्रकाश त्रिपाठी और वर्तमान में हरिओम मिश्र के हाथ में भाजपा जिला संगठन की कमान सौंपी है, परन्तु ये ब्राह्मण के नाम पर कलंक हैं। इन्हें अपनी जेब भरने से मतलब रहता है। अपने कार्यकाल में इतना धन संचय कर लो कि सात पुस्त बिना कुछ किये हाथ-पैर धोकर भोजन करती रहेगी। उसे भोजन के लिए तरसना न होगा। कांग्रेस और भाजपा के जिलाध्यक्ष ऐसे काठ की भवानी के समान हैं। इनकी पूजा की जा सकती है, परन्तु इनसे कुछ माँगा नहीं जा सकता।
जनपद प्रतापगढ़ में एक नेता ऐसा पैदा हुआ जो सूबे में क्षत्रिय समाज में अपनी छवि राजपूत ठाकुर नेताओं में बना रखी है। इसीलिए क्षत्रिय समाज में स्वयं को स्थापित नेता बनाने के लिए एक राजनीतिक दल का गठन किया और नाम रखा जनसत्ता दल लोकतांत्रिक ! जनसत्ता दल लोकतांत्रिक में भी जातीय संतुलन साधने का कार्य किया जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी के फार्मूले पर जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह अपनी पार्टी में पदाधिकारियों का चयन कर रहे हैं। यहीं नहीं जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में भी राजा भईया जनसत्ता दल लोकतांत्रिक महिला सीट यानि सामान्य महिला होने के बावजूद पिछड़ी जाति पटेल विरादरी से चुनाव में उतार कर पिछड़ी जाति के मतदाताओं में सेंधमारी की है।
राजनीतिक पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व ब्राह्मण को आलू समझ बैठा है। जिस तरह 90 फीसदी सब्जियों में आलू डालकर ही सब्जी बनती है, उसी तरह राजनीतिक दल किसी भी चुनाव में ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं बनाना चाहते।सिर्फ ब्राह्मण का मत अपने पार्टी के पक्ष में चाहते हैं। इसीलिये जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में किसी भी पार्टी ने ब्राह्मण उम्मीदवार की घोषणा नहीं की। सपा ने अपने कैडर वोटरों को ध्यान में रखकर यादव जाति और राजा भैया ने भी पटेल जाति (पिछड़ा वर्ग) को उम्मीदवार बनाया था। बीजेपी ने भी अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को सत्यता के करीब ले जातें हुए ठाकुर जाति से क्षमा सिंह को उम्मीदवार बनाया। वर्तमान में बीजेपी सरकार पर यह आरोप लग रहा है कि सरकार में महज ठाकुरों की चल रही है। जिले में क्षत्रिय नेताओं का बोलबाला है। राजनीति में ब्राह्मण हासिये पर जाता दिख रहा है।
वर्तमान समय में ब्राह्मण जाति के महज दो ही नेता जिले में हैं। एक हैं प्रमोद कुमार और दूसरे धीरज ओझा, लेकिन ये भी महज अपने ही क्षेत्र तक सीमित हैं। शासन और प्रशासन में शायद ही इनकी उतनी चलती हो जितनी की अन्य बड़े नेताओं की। धीरज ओझा भले ही सत्ताधारी दल के नेता हैं, लेकिन शासन में उनकी हनक महेंद्र सिंह और कैबिनेट मंत्री मोती सिंह जैसी नहीं है। जिले में सभी जातियों के पास उसके खुद के कोई न कोई नेता या राजनैतिक दल जरूर हैं और वे राजनैतिक दल अपने जातियों के साथ खड़े भी रहतें हैं, लेकिन स्व घोषित बुद्धिजीवी जातियों में एक ब्राह्मणों का जिले में उसका कोई नेता ही नही है, जो उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो सके।
जिले में ठाकुरों के साथ सभी ठाकुर जाति के नेता, यादवों के लिए उनकी पूरी सपाई फौज, वर्मा के लिए अनुप्रिया पटेल, डॉ आर.के. वर्मा, दलितों और मुस्लिमों के लिए सभी राजनैतिक दल चौबीसों घण्टे खड़े रहतें हैं। लेकिन ब्राह्मणों के लिए शायद ही जिले में कोई नेता मिले तो उनके लिए आत्मीयता से खड़ा हो सके। जिस तरह से जिले में ब्राह्मणों को राजनैतिक रूप से एकदम कमजोर कर दिया जा रहा है, शायद एक दिन ऐसा भी आएगा कि ब्राह्मण राजनीतिक दलों का महज पिछलग्गू बनकर अपना बचा हुआ राजनैतिक वजूद भी खो देगा। समय रहते ब्राह्मण समाज में एकजुटता न आई और अपने वोटबैंक की ताकत राजनीतिक दलों के आकाओं को न दिखाई तो वह दिन दूर नहीं कि ब्राह्मण राजनीति के परिदृश्य से ही गायब हो जाएगा।
प्रस्तुति :- विश्व दीपक त्रिपाठी
Thanky
जवाब देंहटाएंजनसत्तादल में ब्राह्मण का सम्मान सर्वाधिक है,पार्टी में ब्राह्मण को भरपूर सम्मान एवं हिस्सेदारी मिलती है।
जवाब देंहटाएंये सर्वविदित है।