अटल विहारी बोल रहा है,इंदिरा गाँधी डोल रहा है...
ये उस जमाने की बात है जब लोगों में नैतिकता और मानवता का संचार उसके मन मस्तिष्क में हुआ करता था।जनप्रतिनिधियों को अपने मान सम्मान और स्वाभिमान का भान उनके जीवन का मूल मंत्र हुआ करता था। सार्वजनिक जीवन में लोग जब आते थे तो पूरा समाज उनका परिवार हुआ करता था। विशेष कर सांसद, विधायक और मंत्री तो सोते जागते जो वचन दे देते थे वह ब्रह्मवाक्य की तरह अकाट्य हुआ करता था।
वर्तमान हालात तो बद से बद्तर होते जा रहे हैं। सबसे निकृष्ट आज नेता ही हैं। उनमें नैतिकता मर चुकी है। स्वाभिमान को वह अपनी हबेली में एक किनारे खूँटी में टाँग चुके हैं। दिनभर झूठ बोलना। अपना और अपने परिवार के अतिरिक्त आधुनिक स्वार्थी नेताओं को दिखता ही नहीं। वो सिर्फ पांच वर्ष में अकूत दौलत एकत्र करने के लिए 24घण्टे हैरान व परेशान रहता है। उससे देश दुनिया और समाज से सरोकार नहीं रहता। सर्व समाज के लिए काम करने की बात मन में लाना ही पाप है।
अभी कुछ दिन पहले तक जब गैस सिलेंडर के दाम 20 से 40 रुपये बढ़ जाते थे तो घर की महिलाएं चौका और बेलन लेकर सड़क पर प्रदर्शन करती थी और सरकार को मजबूर होकर अपने फैसले पर विचार करना पड़ता था।इसी तरह वर्ष-1973 में पेट्रोल के दाम में सिर्फ 7 पैसे प्रति लीटर बढ़ोत्तरी पर स्व. अटल विहारी बाजपेई बैलगाड़ी से संसद भवन गये। विरोध का उनका यह तरीका लोगों को बहुत रास आया था।
आज गैस सिलेंडर जो 400 रुपये में मिलता था,वह मोदी सरकार में 800 सौ रुपये से अधिक हो गया। यह बढ़ोत्तरी सिर्फ 7सालों में हुई है। परन्तु विरोध करने लिये कोई आगे नहीं आना चाहता। इसी का फायदा मोदी सरकार उठा रही है। वर्तमान परिवेश में सरकार की नीतियों का विरोध करना सबसे बड़ा देशद्रोह बन चुका है। राजनीतिक दलों में जनहित की रक्षा के संदर्भ में सरकार का विरोध करने की इच्छाशक्ति का अंत हो चुका है। सभी दलों को सिर्फ चुनाव में जनता का मत चाहिए। वह भी सरकार बनायेंगे तो वह भी वही कृत्य करेंगे। ऐसी मानसिकता बन चुकी है।
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